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प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीय
इस प्रकार वस्तुपाल ने स्थापत्यकला के उत्तम प्रकार के वे चार मन्दिर वनवाये थे । अतिरिक्त इन चारों मन्दिरों के निम्न कार्य और करवाये थे। १. तीर्थपति नेमिनाथ भगवान् के विशाल मन्दिर के पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के द्वारों पर तीन मनोहर तोरण
करवाये थे तथा इसी मन्दिर के मण्डप में निम्न रचनायें करवाई थीं:(१) मण्डप के दक्षिण भाग में पिता अश्वराज की अश्वारूढ़ मूर्ति । (२) मण्डप के उत्तर भाग में पितामह सोम की अश्वारूढ़ मूर्ति । (३) माता-पिता के श्रेयार्थ भ० अजितनाथ और शान्तिनाथ की कायोत्सर्गस्थ प्रतिमायें । - (४) मण्डप के आगे विशाल इन्द्रमण्डप ।। (५) मन्दिर के अग्रभाग में पूर्वज, अग्रज, अनुज और पुत्रादि की मूर्तियों से युक्त भ० नेमिनाथ की प्रतिमा
वाला सुखोद्घाटनक नामक एक अति सुन्दर और उन्नत स्तम्भ । (६) प्रपामठ के समीप में शत्रुजयावतार, स्तम्भनकावतार और सत्यपुरावतार तथा प्रशस्तिसहित काश्मीरा
वतार सरस्वतीदेवी की देवकुलिकायें करवाई थीं। (७) मन्दिर के मुख्य द्वार पर स्वर्णकलश चढ़ाये थे। २. (१) अम्बिकादेवी के मन्दिर के आगे विशाल मण्डप बनवाया था।
(२) अम्बिकादेवी की मूर्ति के चारों ओर श्वेत संगमरमर का सुन्दर परिकर बनवाया था । ३. अम्बशिखर पर चण्डप के श्रेयार्थ एक देवकुलिका बनवा कर, उसमें भ० नेमिनाथ की एक प्रतिमा, एक चण्डप ___ की प्रतिमा और एक अपने ज्येष्ठ भ्राता मल्लदेव की इस प्रकार तीन प्रतिमायें स्थापित की थीं। ४. अवलोकनशिखर पर चण्डप्रसाद के श्रेयार्थ एक देवकुलिका बनवाकर, उसमें चण्डप्रसाद की, भ० नेमिनाथ की,
और अपनी एक-एक मूर्ति इस प्रकार तीन प्रतिमायें स्थापित करवाई थीं। ५. प्रद्युम्नशिखर पर सोम के श्रेयार्थ एक देवकुलिका बनवाकर उसमें सोम की, भ० नेमिनाथ की और लघुभ्राता
तेजपाल की एक-एक मूर्ति इस प्रकार तीन मूर्तियाँ स्थापित की थीं। ६. शांबशिखर पर पिता आशराज के श्रेयार्थ एक देवकुलिका बनवाकर, उसमें आशराज, माता कुमारदेवी तथा
भ० नेमिनाथ की एक-एक मूर्ति इस प्रकार तीन मूर्तियाँ विराजमान की थीं। __इन तीनों मन्दिरों तथा काश्मीरावतार श्री सरस्वती-देवकुलिका और चारों शिखरों पर बनी हुई देवकुलिकाओं की प्रतिष्ठा वि० सं० १२८८ फा० शु० १० बुद्धवार को मन्त्रि भ्राताओं के कुलगुरु श्रीमद् विजयसेनसूरि के हाथों हुई थी। मन्त्री भ्राता इस प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर विशाल संघ के साथ धवलकपुर से चल कर शत्रुजयमहातीर्थ की यात्रा करते हुये गिरनारतीर्थ पर पहुँचे थे । संघ में मलधारीगच्छीन नरचन्द्रसरि और अन्य गच्छों के भाचार्यगण भी अपने-अपने शिष्यमण्डली के साथ सम्मिलित थे । महाकवि राजगुरु सोमेश्वर भी सम्मिलित थे ।
प्रा० जे
० सं० ले०२८ से ४३ पृ०४८ से ६८ (गरनार -प्रशस्ति)