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:: प्राग्वाट-इतिहास::
[द्वितीय
कर रक्खा था । मुख्य विभाग येथे- भोजन-विभाग, सैनिक-विभाग, धार्मिक-विभाग, साहित्य-विभाग, गुप्तचर-विभाग, निर्माण विभाग, सेवक-विभाग । इन सर्व विभागों के अलग २ अध्यक्ष, कार्यकर्ता थे।
भोजन-विभाग
यह विभाग दंडनायक तेजपाल की स्त्री अनुपमादेवी की अध्यक्षता में था। महा० वस्तुपाल की स्त्री ललितादेवी संयोजिका थी । भोजन प्रति समय लगभग एक सहस्र स्त्री-पुरुषों के लिए बनता था। जिसमें साधु-सन्त, अभ्यागत, अतिथि,नवकर, चारकर, चारकरणी, प्रमुख कार्यकर्ता,अंगरक्षक,परिजन भोजन करते थे। स्वयं अनुपमादेवी,ललितादेवी, सोख्यकादेवी, सुहड़ादेवी और महामात्यों की भगिनियें नित्यप्रति भक्ति एवं मानपूर्वक अपने हाथों से सर्व को भोजन कराती थीं। भोजन सर्वजनों के लिये एक-सा और अति स्वादिष्ट बनता था। महाराणक वीरधवल भी एक दिन अतिथि के वेष में भोजन कर अत्यन्त प्रसन्न हुआ और अनुपमादेवी, ललितादेवी के मुखों से पुनः २ यह श्रवण कर कि यह सर्व महाराणक वीरधवल की कृपा का प्रताप है कि वे सेवा करने के योग्य हो सके हैं, वस्तुतः इस सर्व का यश और श्रेय महाराणक वीरधवल को है, महाराणक वीरधवल इस उच्चता और श्रद्धा-भक्ति को देखकर गद्गद् हो उठा और अन्त में प्रकट होकर धन्यवाद देकर राजप्रासाद को गया। जैन, जैनेतर कोई भी रात्रि-भोजन नहीं कर सकता था । कंदमूल, अभक्ष्य पदार्थ भोजन में नहीं दिये जाते थे।
निजी सैनिक-विभाग
यह विभाग वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह की अधिनायकता में था । इसके सैनिक दो दलों में विभक्त थेमहामात्य वस्तुपाल के अंगरक्षक और दंडनायक तेजपाल के रणनिपुण सुभट । महा पराक्रमी एवं कुलीन अंगरक्षक अट्ठारह सौ १८०० और सुभट १४०० चौदह सौ थे । इस विभाग में वे ही सैनिक प्रविष्ट किये जाते थे जो उत्तम कुलीन, प्राणों पर खेलने वाले, गूर्जरसम्राट और साम्राज्य के परम भक्त हों तथा जिन्होंने अनेक रणों में शौर्य प्रकट किया हो, आदर्श स्वामिभक्ति का परिचय दिया हो। इस प्रकार यह साम्राज्य के चुने हुये वीर, दृढ़ साहसी, विश्वासपात्र सैनिकों का एक दल था, जिस पर दोनों मन्त्री भ्राताओं, राणक और मंडलेश्वर का पूर्ण विश्वास था। भद्रेश्वरनरेश भीमसिंह के चौदह सौ सुभट राजपुत्र ही तेजपाल के सुभट थे। राज्य का सैनिक-विभाग इससे अलग था। ये सैनिक तो केवल महामात्य वस्तुपाल और दंडनायक तेजपाल के अत्यन्त विश्वासपात्र सुभट थे। ये सदा मन्त्री भ्राताओं की सेवा में तत्पर रहते थे।