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:: प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीय
श्रा० रतनदेवी वि० सं० १२६३
चन्द्रावतीनिवासी गौरवशाली प्राग्वाटज्ञातीय अजित नामक वंश में उपत्म महं० श्री भाभट के पुत्र महं० श्री शान्ति के पुत्र महं० श्री शोभनदेव की धर्मपत्नी महं• श्री माऊ की पुत्री ठ० रत्नदेवी ने अपने माता, पिता के श्रेयार्थ श्री अर्बुदाचलस्थतीर्थ श्री लूणवसतिकाख्य श्री नेमिनाथचैत्यालय में तेतीसवीं देवकुलिका बनवा कर उसमें श्री पार्श्वनाथप्रतिमा को वि० सं० १२६३ चै० ० ८ शुक्रवार को प्रतिष्ठित करवाया ।*
वंशवृक्ष . . अजितसंतानीय महं० प्राभट
महं० शान्ति
महं० शोभनदेव [महं० माऊ]
ठ. रत्नदेवी
श्रे० श्रीधरपुत्र अभयसिंह तथा श्रे० गोलण समुद्धर
वि० सं० १२६३
विक्रम की बारहवीं शताब्दी में चंद्रावती में प्राग्वाटजातीय श्रे० वीरचन्द्र हुआ है। उसकी स्त्री श्रीयादेवी के साददेव और छाहड़ नामक दो पुत्र हुये। - श्रे० साढ़देव के माऊ नामा स्त्री थी। श्रा० माऊ की कुक्षी से आसल, जेलण, जयतल और जसपर नामक चार पुत्र हुये । श्री जेलण के समुद्धर नामक पुत्र हुआ और श्री जयतल के देवधर, मयधर, श्रीधर और बड़ नामक चार पुत्र हुये । श्रे० श्रीधर के अभयसिंह नामक प्रसिद्ध पुत्र हुआ।
श्रे. जसधर के आसपाल और श्रे० आसपाल के सिरपाल नामक पुत्र थे।
श्रे० साढ़देव के कनिष्ठ भ्राता श्रे० छाहड़ की स्त्री थिरदेवी की कुक्षी से घांघस, गोलण, जगसिंह और पाल्हण नामक चार पुत्र हुये।
*अ० प्रा० ० ले० सं० भा०२ ले० ३३४ पृ०११६