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:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचलरथ श्री लूणसिंहवसतिकाख्य ::
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सोमसिंह अपने राज-परिवार के साथ उपस्थित था। महाकवि राजगुरु सोमेश्वर तथा पत्तन-राज्य के बड़े बड़े अनेक पदाधिकारि, सामंत और ठकुर महामात्यवस्तुपाल के साथ में संघ में आये थे । जाबालिपुर के चौहान राजा उदयसिंह का प्रधान महामात्य यशोवीर भी जो शिल्पशास्त्र का धुरंधर ज्ञाता था आया था। मंत्रीभ्राताओं ने यशोवीर से वसहिका के निर्माण के विषय में शिल्पशास्त्र की दृष्टि से अपनी सम्मति देने की कही। यशोवीर ने महाकुशल शिल्पशास्त्री शोभन को वसहिका में शिल्प की दृष्टि से रही हुई अनेक त्रुटियाँ बतलाई, जैसे देवमंदिरों में पुतलियों के क्रीडाविलास के आकार, गर्भगृह के सिंहद्वार पर सिंहतोरण और चैत्यालय के समक्ष पुरुषों की मूर्तियों से युक्त हाथियों की रचना निषिद्ध है आदि । चन्द्रावती-राज्य से तथा जाबालिपुर, नाडौल, गौड़वाड़-प्रांत और मेदपाटप्रदेश के राज्यों से इस प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर अनेक संघ और स्त्री-पुरुष आये थे।
प्रतिष्ठोत्सव के अवसर पर ही महामात्यवस्तुपाल, तेजपाल ने श्रीमद् विजयसेनमूरि की अध्यक्षता में एक विराट सभा की थी, जिसमें उपस्थित सर्व सामंत, ठक्कुर और आये हुए संघ संमिलित थे। भिन्न २ ग्रामों के श्रीसंघों को प्रतिवर्ष अष्टाह्निका-महोत्सव की व्यवस्था करने का जिस प्रकार भार सौपा गया तथा चन्द्रावती के राजकुल ने, मंत्री भ्राताओं के संबंधीकुलों ने जिस प्रकार वसहिका की सेवा-पूजा और रक्षा के कार्यों को अपने में विभाजित किया, उनका उल्लेख निम्न प्रकार है । व्यवस्थापिका समितिः
श्री लूणसिंहवसति नामक श्री नेमिनाथमन्दिर की व्यवस्था करने वाली समिति के प्रमुख सदस्यों की शुभ नामावली:१. मन्त्री श्री मल्लदेव, २. मन्त्री श्री वस्तुपाल,
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और इन तीनों भ्राताओं की परंपरित सन्तान ३. मन्त्री श्री तेजपाल
श्री लूणसिंह के मातृकुलपक्षी चन्द्रावती के निवासी प्राग्वाटज्ञातीय ठक्कुर श्री ४. मन्त्री श्री राणिग ।
सावदेव के पुत्र ठ० श्री शालिग के पुत्र ठ० श्री सागर के पुत्र ठ० श्री गागा के ५. महं० श्री लीला )
पुत्र ठ० श्री धरणिग के भ्राता तथा इनकी परंपरित संतान । ६. ४० श्री खीम्बसिंह) ७. ठ० श्री आम्बसिंह
ठ. श्री धरणिग की पत्नी ठ० श्री तिहूणदेवी के पुत्र तथा महं श्री अनुपमा८. ठ० श्री ऊदल ) देवी के भ्रातागण तथा इनकी परंपरित सन्तान । ६. मन्त्री श्री लूणसिंह ] महं श्री लीला का पुत्र तथा इसकी परंपरित सन्तान । १०. मन्त्री श्री जगसिंह ] महं श्री लीला का भ्राता तथा इसकी परंपरित सन्तान । ११. मन्त्री श्री रत्नसिंह ] " , " " " " " " "
प्रोक्त सर्व सज्जनों के कुटम्बीजन तथा वंशज इस धर्मस्थान में स्वात्रपूजा आदि सर्व प्रकार के कार्य नित्य करने और करवाने के लिये उत्तरदायी हैं।
तथा श्री नेमिनाथदेव की प्रतिष्ठा-जयन्ती प्रति वर्ष स्नात्र-पूजा आदि मंगलकार्य करके निम्न ग्रामों के अधिवासी श्रावकगण अष्ट दिवस पर्यन्त प्रति दिन क्रमशः मनावेंगेः--