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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
में रातोंरात पहुँचा दिया । महामात्य ने पं० हरिहर से खंभात का ज्ञानभंडार देखने की प्रार्थना की। पं० हरिहर के साथ महामात्य और सोमेश्वर भी खंभात गये । ज्ञानभंडार देखते २ पं० हरिहर ने उक्त ग्रंथ ज्योंहि देखा, उसका लज्जा से मुंह ढँक गया । अंत में पं० हरिहर ने स्वीकार किया कि वह महाकवि सोमेश्वर का गौरव सहन नहीं कर सका; इसलिये उसने सारस्वतयंत्र की शक्ति से सोमेश्वरकृत प्रशस्ति की १०८ गाथायें सुना कर सच्चे महाकवि का अपमान किया । वीरनारायणप्रासाद की प्रशस्ति सोमेश्वरकृत । इस प्रकार महामात्य ने बड़ी चतुराई से सोमेश्वर का कलंक दूर किया । सोमेश्वर राजनीति का भी धुरंधर पण्डित था । सोमेश्वर ने अपनी रचनायें संस्कृत में की हैं, जो संस्कृत-साहित्य की अमूल्य निधि हैं। सोमेश्वरकृत प्रसिद्ध ग्रंथ १ कीर्त्तिकौमुदी २ सुरथोत्सव ३ रामशतक ४ उल्लाघराघवनाटक प्रसिद्ध हैं । ५ अर्बुदगिरि पर विनिर्मित लूणसिंहवसहिका की ७४ श्लोकों की प्रशस्ति और गिरनार मंदिरों की ६ प्रशस्तियाँ भी सोमेश्वरकृत हैं । ७वीं उपरोक्त वीरनारायणप्रासाद - प्रशस्ति है । हरिहर – नैषध - महाकाव्य के कर्त्ता श्री हर्ष का यह वंशज था। संस्कृत का दिग्गज विद्वान् था । दक्षिण के अनेक राजाओं की राजसभा में इसने अनेक विद्वानों को जीता था । यह गौड़देश का रहने वाला था । महामात्य वस्तुपाल की कृपा प्राप्त करने के लिये यह धवलक्कपुर आया था। नवरत्नमणि सोमेश्वर का स्थान प्राप्त करने के लिये इसने राणक वीरधवल की भरी हुई राजसभा में सोमेश्वर की 'वीरनारायणप्रासादप्रशस्ति' नामक कृति को अन्य की कृति सिद्ध कर सोमेश्वर का भारी अपमान किया था, जिसका बदला महामात्य ने बड़ी चतुराई से लेकर सोमेश्वर का कलंक दूर किया था । महामात्य की विद्वत्सभा में यह
भर्ती हो गया था। नवरत्नों में यह भी एक अमूल्य रत्न था । हरिहरकृत कोई ग्रंथ अद्यावधि उपलब्ध नहीं हुआ, फिर भी सोमनाथ स्तुति जो इसने सोमनाथ के दर्शन करते समय बोली थी इसके महाकवि होने का प्रमाण देती है । महामात्य वस्तुपाल इसका बड़ा संमान करता था ।
मदन - यह भी संस्कृत का उद्भट विद्वान् था । इसका लिखा हुआ अभी तक कोई ग्रन्थ प्रकाश में नहीं आया है।
सम्राट्
सुभह – यह प्रसिद्ध नाटककार था । 'दूतांगद' इसका प्रसिद्ध संस्कृत नाटक है । यह नाटक पत्तन त्रिभुवनपाल की आज्ञा से खेला गया था ।
अरिसिंह
नानाक — यह भी नवरत्नों में से एक विद्वान् था । इसकी ख्याति महाराणक वीशलदेव के समय में बहुत बढ़ी हुई थी । यह नागरज्ञातीय था और इसका गोत्र कापिल्ल था । यह गुंजाग्राम का माफीदार था । इ-ठक्कुर लवणसिंह का पुत्र था । ठक्कुर लवणसिंह महामात्य के विश्वासपात्र व्यक्तियों में से एक था । अरिसिंह अद्वितीय कलाविज्ञ था | अनेक ग्रन्थों के कर्त्ता प्रसिद्ध विद्वान् अमरचन्द्रसूरि का यह कलागुरु था । अनेक फुटकल रचनाओं के अतिरिक्त 'सुकृतसंकीर्त्तन' नामक काव्य इसकी प्रमुख रचना है, जिसमें महामात्य वस्तुपाल, तेजपाल के द्वारा कृत पुण्यकर्मों का लेखा है । पाल्हण – इसने 'आबूरास' नामक ग्रन्थ लिखा है ।
'सुभटन पदन्यास सः कोऽपि समितौ कृतः । येनाऽधुनाऽपि धीराणां रामाज्यो नापचीयते' ।
की ० कौ०
वस्तुपाल तेजपाल पर इन सर्व कवि एवं श्राचायों ने अनेक ग्रन्थ, प्रशस्ति आदि लिखे हैं, जिनका परिचय यथास्थान करवा दिया गया है। उन ग्रन्थों से ही यह ज्ञात किया गया है कि मंत्री भ्राताओं का और इनका क्या सम्बन्ध था । 'मदनः, हरिहरपरिहर गर्व कविराजगजांकुशो मदनः । हरिहरः मदन विमुद्रय वदनं हरिहरचरितं स्मरातीतम्”
॥की ० कौ।