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: प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीय
बनवाई। प्रस्तर विनिर्मित ४००० चार सहस्र मठ बनवाये । प्रसिद्ध मंदिरों के नाम नीचे अनुसार हैं:
शत्रुञ्जयपर्वत पर नेमनाथ और पार्श्वनाथ नामक चैत्यालय । गिरनारपर्वत पर आदिनाथ, सम्मेतशिखर, अष्टापद और कपर्दियक्ष नामक चैत्यालय । धवलकपुर में ऋषभदेव-चैत्यालय । प्रभास में अष्टापद-मन्दिर। अर्बुदपर्वत पर नेमिनाथ, मल्लदेव, आदिनाथ नामक चैत्यालय । खम्भात में वकुलादित्य और वैद्यनाथ के शिव मन्दिरों के अनेक अंश नवनिर्मित करवाये ।
वनस्थली और द्वारका में कई मन्दिर बनवाये । २-६०००००० नवीन जैन बिंब तथा १००००० शैव लिंग स्थापित करवाये । ३–जीर्णोद्धार-२००३ (२३००) ३३००) जीर्ण मंदिरों का उद्धार करवाया। जिनमें अणहिलपुरपत्तन में
पंचासरपार्श्वनाथदेवालय का तथा धवलक्कपुर में राणक-भट्टारक मंदिर का उद्धार अधिक प्रसिद्ध है । खंभात में वकुलादित्य और वैद्यनाथ के शिवमंदिरों का जीर्णोद्धार भी कम प्रसिद्ध नहीं है। तीर्थस्थान एवं नगर, ग्रामों के अनुक्रम से यथाप्राप्त निर्माण-उल्लेख निम्नवत हैं:पत्तन में- वनराज के द्वारा विनिर्मित पंचाशरपार्श्वनाथमंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।
धवलक्कपुर में आदिनाथमंदिर बनवाया। दो उपाश्रय बनवाये । भट्टारकजी का राणक नामक मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। बावड़ी खुदवाई । प्रपा बनवाई।
शत्रुजयपर्वत पर-आदिनाथमंदिर के आगे इन्द्रमंडप बनवाया तथा उसको तोरणों से सुसज्ज किया । पर्वत पर मार्ग बनवाया । स्वरस्ती की मूर्ति बनवायी । पूर्वजों की मूर्तियां बनवायीं । अपने पुत्र जैत्रसिंह, तेजपाल
और महाराणक वीरधवल इन तीनों की तीन मूर्तियां बनवा कर गजारूढ़ की। गिरनारपर्वत के चार शिखर अवलोकन, अंब, शांच और प्रद्युम्न का प्रतिरूप करवाया। भरौंच के सुव्रतस्वामी, साचौर के महावीरस्वामी (सत्यपुरतीर्थावतार) के मंदिर बनवाये । आदिनाथबिंब के नीचे बहुमूल्य प्रस्तर और स्वर्ण का सुन्दर पट्ट लगवाया। गूढमण्डप में स्वर्ण तोरण बनवाया ।
पालीताणा-क्षेत्र में ललितसरोवर बनवाया । एक उपाश्रय बनवाया। प्रपा बनवाई । अंकवालिया ग्राम में-सरोवर बनवाया।
स्तंभननगर में—भट्टादित्यमंदिर के आगे उत्तानपट्ट बनवाया और उसका शिखरस्वर्णमयी बनवाया। मंदिर में कुआ खुदवाया । अशातनाओं से बचाने के लिये Sour Milk के लिये ऊँची दिवारोंवाला एक हौज बनवाया। दो उपाश्रय बनवाये । आनंदभवन बनवाया, जिसमें दोनों ओर दिवारों में गोलाकार-खिड़कियां थीं। पार्श्वनाथमंदिर का पुनरोद्धार करवाया और उसमें आपकी और पुत्र जयंतसिंह की दो सुन्दर प्रतिमायें स्थापित की। पाषाण के अस्सी सुन्दर एवं विविध तोरण बनवाकर विभिन्न जैनमंदिरों में लगवाये । श्री शांतिनाथजिनालय के गर्भमण्डप का जीर्णोद्धार करवाया । सुभट लूणपाल की स्मृति में लूणपालेश्वरप्रासाद बनवाया। चालुक्यराजा द्वारा विनिमित श्री आदिनाथचैत्य में एक कंचनस्तंभ बनवाया और वहौत्तर दण्ड सहित स्वर्णकुंभ स्थापित किये । अन्य जिनालयों
सु०सं०। प्रा० ० ले० सं० ले० ५४३