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: प्राग्वाट-इतिहास ::
[द्वितीय
लिखे हुये हैं, १०-न्यायकंदली (टीका), ११-वस्तुपाल-प्रशस्ति आदि अनेक प्रबन्धग्रंथों में इनके लिखे
हुये सुभाषित एवं स्तुति-काव्य मिलते हैं । नरेन्द्रप्रभसूरि—ये नरचन्द्रसूरि के शिष्य थे। ये महान् परिश्रमी एवं स्वाध्यायशील थे । प्रथम श्रेणी के पंडित होते
हुये भी ये अत्यन्त विनयशील और निरभिमानी थे । इनके रचे हुये ग्रन्थ इस प्रकार हैं:१ अलंकारमहोदधि इस ग्रंथ की रचना महामात्य वस्तुपाल की प्रार्थना से नरचन्द्रसूरि की आज्ञा से वि० सं० १२८२ में की गई थी। २ विवेकपादप, ३ विवेककलिका ( सुक्तिसंग्रह ), ४ वस्तुपालप्रशस्ति (दो काव्य अ० म० परि० पृ० ४०४-४१६), ५ काकुत्स्थकेलि (नाटक), ६ सं० १२८८
की वस्तुपाल तेजपाल सम्बन्धी गिरनारतीर्थ की प्रशस्तियों में एक लेख इनका है । बालचन्द्रसूरि-चन्द्रगच्छीय हरिभद्रसूरि के ये शिष्य थे। छन्द, अलंकार, भाषा के ये प्रकाण्ड पंडित थे। इनका
आचार्यपदोत्सव महामात्य ने करवाया था। इनके ये ग्रंथ अत्यधिक प्रसिद्ध हैं:१-करुणाबजायुध नामक नाटक-यह नाटक शत्रुजयतीर्थ के उपर महामात्य द्वारा निकाले गये एक संघ के अवसर पर खेला गया था । २-वसन्तविलासकाव्य (वस्तुपालचरित्र)-यह जैत्रसिंह की प्रेरणा
से लिखा गया था । ३-विवेकमंजरी टीका वि० सं० १२६८ । ४-उपदेशकंदलीटीका । जयसिंहसूरि —ये संस्कृत, प्राकृत के प्रसिद्ध विद्वान थे । 'हम्मीरमदमर्दन' नामक नाटक इतिहास और साहित्य की
दृष्टि से इनकी एक अमूल्य रचना है। अर्बुदाचल पर विनिर्मित लूणसिंहवसहिका की वस्तुपाल
तेजपाल सम्बन्धी ७४ श्लोकों की प्रशस्ति भी इनको प्रसिद्ध विद्वान् होना सिद्ध करती है। माणिक्यचन्द्रसूरि —ये राजगच्छीय सागरचन्द्रसूरि के शिष्य थे। ये संस्कृत और विशेष रूप से अलंकार विषय के
सुप्रसिद्ध पंडित थे। इन्होंने महापंडित मम्मट की लिखी हुई 'काव्यप्रकाश' नामक कृति पर अति प्रसिद्ध १-'संकेत' नामक टीका लिखी है । २-शान्तिनाथ-चरित्र । ३-वि० सं० १२७६ में पार्श्व
नाथचरित्र, जो उच्चकोटि का महाकाव्य है, इन्होंने लिखा है। जिनभद्रसूरि - महामात्य वस्तुपाल के पुत्र जैत्रसिंह के श्रेयार्थ इन्होंने सं० १२६० में 'प्रबन्धावली' नामक ग्रन्थ
लिखा है । ये नागेन्द्रग० उदयप्रभसूरि के शिष्य थे।
अतिरिक्त इनके दामोदर, जयदेव, वीकल, कृष्णसिंह, शंकरस्वामि आदि अनेक कवि एवं चारण समाश्रित थे । महामात्य वस्तुपाल स्वयं महाकवि एवं प्रखर विद्वान् था । १-नरनारायणानन्द नामक महाकाव्य, २-श्री आदीश्वरमनोरथमयंस्तोत्र उसकी अमूल्य रचनायें हैं, जो उसको उस समय के अग्रणी विद्वानों में गिनाने के लिये पर्याप्त हैं। वह कवियों में 'कविचक्रवती' कहलाता था और आश्रयदाताओं में 'लघुभोजराज' कहा जाता था।
अ०म० परि० ४ पृ० ४०१-४०३, ४०४-४१६ वस्तुपालनु विद्यामण्डल अने बीजा लेखो पृ०१ से ३४
'भलंकारमहोदधि' By नरेन्द्रप्रभसरिजी (गायकवाड ओरियन्टल सीरीज XCV व्यो० निकला है) की पं० लाल चन्द भगवानदास द्वारा लिखित प्रस्तावना ।
श्रीजिमरत्नकोष ग्रन्थविभाग प्रथमः Vol.1 B. O. R. I. Poona