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:: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली मूर्जर-मंत्री वश और मंत्री भ्राताओं का अमात्य-कार्य ::
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होकर लौटना पड़ा। विवश होकर वीरधवल एवं तेजपाल को उनके साथ रण में उतरना पड़ा। सांगण एवं चामुण्ड दोनों भ्राता रण में मारे गये १ । तेजपाल की सैन्य ने वामनस्थली में प्रवेश किया। दण्डनायक तेजपाल के हाथ सांगण और चामुण्ड के पूर्वजों द्वारा संचित अगणित तोला सुवर्ण, चाँदी, मौक्तिक, माणिक,रत्न लगे । चौदह सौ दिव्य एवं पाँच सहस्र अतिवेगवान घोड़े भी प्राप्त हुये२ । उन्होंने सांगण के पुत्र को वामनस्थली का राजा बनाया और प्रति वर्ष खिरणी भेजने का उससे प्रतिबंध स्वीकृत कराया। वामनस्थली में हेमकुम्भांकित चैत्य विनिर्मित करवाया तथा मन्त्री तेजपाल ने भगवान महावीर की मूर्ति उस चैत्य में प्रतिष्ठित की३ । वीरधवल और तेजपाल ने गिरनारतीर्थ के दर्शन करने की अभिलाषा से प्रेरित होकर धवल्लकपुर जाने के लिये गिरनार और द्वारिका होकर जाने का निश्चय किया। मार्ग में वाजा, नगजेन्द्र, चूड़ासमा, वालाक आदि स्थानों के ठक्करों से खंडणी५ प्राप्त की, गिरनारतीर्थ के दर्शन किये, भगवान् नेमिनाथ एवं भुवनेश्वर की प्रतिमाओं का पूजन किया और व्यय के निमित्त एक ग्राम भेट किया । इस प्रकार विजय और तीर्थ-दर्शनानन्द का लाभ प्राप्त करते हुये दोनों राजा और मन्त्री धवल्लकपुर लौट आये । धवल्लकपुर में इनका प्रवेश भारी महोत्सव के साथ हुआ और प्रतिदिन उत्सवमहोत्सव होने लगे।
. सौराष्ट्रकी विजय-यात्रा में वीरधवल और तेजपाल को इतना धन-द्रव्य प्राप्त हुआ कि धवल्लकपुर का राज्यकोष आशातीत समृद्ध हो गया, सैन्य अगणित एवं सज्ज हो गया। सौराष्ट्र में सर्वत्र शान्ति प्रसारित होगई ।
'अथ वर्धमानपुर-गोहिलवाट्यादिप्रभून् दण्डयन्तौ प्रभु-मन्त्रिणौ वामनस्थली आगताम्"""""""जयतलदेवी मध्ये प्राहेषीत् ।...." भगिनीवचः श्रुत्वा मदाध्माती पोचतुः,..." "मा स्म चिन्ता कृथाः। श्रमु' त्वत्पति हत्वापि ते चारु गृहान्तर करिष्यावः' ।
प्र० को० व० प्र०१२२) पृ०१०३-१०४ रासमाला (गुजराती) भाग २ पृ०.४३१ 'महाराज! सुराष्ट्रास, राष्ट्रसु द्विष्टचेतसः। भूभृतः सन्ति पापिष्ठा, द्रव्यकोटिमदोद्धतां ॥३५॥ 'मानेन वर्धमानाङ्ग, वर्धमानपुराधिपम् । गोहिलावलिभूपश्चि, राजान्वयभुवस्तथा ॥३८॥ 'बलेन करदीकृत्य, मोचयित्वा महद्धनम् । जगाम वामनस्थल्या, कर्षन् शल्यानि शोभितः ॥३॥
व० च० वि० प्र० पृ०१६ 'मा स्म चिन्ता कृथा भद्रे, हत्वामु त्वत्पतिं युधि । करिष्यावस्तव प्रौढ़, नव्यं भव्य ग्रहान्तरम् ॥६॥ .
व० च०वि०प्र० पृ०१७ रासमाला (गुजराती) भा०२ पृ० ४३३ १-'सबन्धु साङ्गणं हत्वा.......||१५|| २-...........""दशकोटिमितं हेम, प्रेमभिन्नृपतिर्ललो ॥२२॥ _.. 'पूर्वजैः सञ्चिताने का, मणिमाणिक्यमण्डलीः। दिन्यान्यस्त्राणि, स्थूलमुक्ताफलावलिः ॥२॥ ___ 'चतुर्दशशतान्युच्चैः श्रवःसोदरतेजसाम् । तथा पञ्चसहस्राणा, सामान्यानां च वाजिनाम् ॥२४॥ ३-'चैत्यं तस्मिन् विर्निमाय, हेमकुभांकितं नवम् । बिबं वीरजिनेन्द्रस्यातिष्ठियत्सचिवः पुनः॥२६॥ ४-'तदासनतमं श्रुत्वा, विश्वत्रितयविश्रुतम् । गिरनारमहातीर्थ, भवकोटिरजोऽपहम् ॥२७॥
..............."स ययौ मन्त्रिणा समम् ॥२८॥ ५-ततः श्री नेमिमभ्यर्च्य, भक्तितो भुवनेश्वरम् .........."
'ग्राममेकं ददौ दाये, देवपूजाकृते कृती। अगाच्च मंत्रिणा सार्क, नृदेवो देवरत्तनम् ॥४१॥ 'कुर्वन् मानगजेन्द्रादीन्, भूमिपालान्निरंकुशान् । स्वस्य देयकरान् प्रापत् , कौतुकी द्वीपपत्तने ॥४४॥
व. च० द्वि०प्र०पृ०१८-१९