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खण्ड]
:: मंत्रीभ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और दिल्ली के दरबार में महामात्य का सम्मान ::
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चाल चली । वह खम्भात पहुँचा और युक्ति से बादशाह की वृद्ध माता का द्रव्य चोरों द्वारा लुटवा लिया। बादशाह की वृद्धा माता ने महामात्य वस्तुपाल को खम्भात आया हुआ जानकर वस्तुपाल के पास अपने द्रव्य का चोरों द्वारा लूटा जाने का समाचार भेजा। यह तो महामात्य की स्वयं की चाल थी। उसने तुरन्त द्रव्य सुधवा मंगवाया और बादशाह की माता के पास स्वयं लेकर पहुँचा । वृद्धा माता अपने खोये हुये द्रव्य को देखकर अत्यन्त प्रसन्न हुई और वस्तुपाल को आशीर्वाद देने लगी। महामात्य ने अपनी ओर से मक्कातीर्थ के लिये एक तोरण भेंट किया और अपने चुने हुए संरक्षक देकर बड़े सम्मान के साथ बादशाह की माता को मक्का को रवाना किया। वृद्धा माता हज करके पुनः खम्भात लौटी । महामात्य वस्तुपाल भी तब तक वहीं उपस्थित था। उसने उसका बड़ा सत्कार किया और आप स्वयं दिल्ली तक पहुँचाने गया।
बादशाह की वृद्धा माता जब राजधानी दिल्ली में पहुंची और अपने पुत्र बादशाह अल्तमश से मिली तो उसने वस्तुपाल की महानता, भक्ति एवं उदारता का वर्णन किया। महामात्य वस्तुपाल को अपनी माता के साथ महामात्य का बादशाह के आया हुआ तथा नागपुरवासी पूनड़ श्रेष्ठि के यहाँ ठहरा हा जान कर बादशाह दरबार में स्वागत और अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसको राजसभा में बुला कर उसका भारी सम्मान किया। स्थायी सन्धि का होना बादशाह वस्तुपाल की बातों एवं मुखाकृति से अत्यन्त प्रभावित हुआ और वस्तुपाल को कुछ माँगने का आग्रह किया। बादशाह के पुनः पुनः आग्रह करने पर महामात्य ने बादशाह से दो बातें. माँगी। प्रथम-गूर्जरभूमि के सम्राट के साथ बादशाह की स्थायी मैत्री हो और द्वितीय-शत्रुजयतीर्थ के ऊपर मंदिर बनवाने के लिये बादशाह अपने साम्राज्य में से वस्तुपाल को मम्माणीखान के पत्थर ले जाने की आज्ञा प्रदान करें। बादशाह ने दोनों बातें स्वीकार की। महामात्य लौटकर धवल्लकपुर आया और महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद और राणक वीरधवल को दिल्लीपति के साथ हुई सन्धि के समाचार सुनाये। उन्होंने महामात्य का भारी सम्मान किया और दशलाख स्वर्णमुद्रायें पारितोषिक रूप में प्रदान की। इस प्रकार गूर्जरभूमि को यवनों के आक्रमणों का अब भय नहीं रहा और सुख और समृद्धि की अधिकाधिक वृद्धि होने लगी।
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अल्तमश का नाम जैन ग्रन्थों में मउजुद्दीन लिखा मिलता है। G.G. Pt. III Page 216 प्र० को०२४ व० पृ०१४२) पृ०११७ M. I. Ps. 176 to 178. प्र० को०२४ व०प्र०१४३) पृ०११८ । व०च०स०प्र०श्लोक २१ से पृ० १०८ से ११०. प्र० को २० प्र.१४४) पृ० ११६। पु० प्र० सं० व०ते० प्र० श्लोक १४२) पृ० ६७ १५४) पृ० ७० व-च०स० प्र० श्लोक २०६६ पृ०११० से ११२। प्रचि० ०० प्र०१६१) पृ०१०३
यह घटना उक्त और अन्य ग्रन्थों में थोड़े २ अन्तर से मिलती हुई उल्लिखित है । अधिक ग्रन्थों में बादशाह की वृद्धामाता द्वारा की गई हजयात्रा का उल्लेख है । प्रबधचिन्तामणि में लिखा है कि बादशाह के गुरु मालिम ने मक्का की यात्रा की। किसी ग्रन्थ में पत्तनपुर और किसी में खंभात में नौनितिक के घर में बादशाह की माता का या मालिम गुरु का ठहरना, चोरी होना, महामात्य वस्तुपाल. द्वारा उनका सत्कार किया जाना लिखा है। बात वस्तुतः यह है कि हजयात्रा बादशाह की वृद्धा माता ने ही की थी और साथ में मालिम मौलवी भी थे। दिल्ली से खंभात के मार्ग में पत्तनपुर पड़ता है । चतुर महामात्य ने वृद्धामाता को पत्तन में पधारने के लिये अवश्य प्रार्थना की ही होगी। अल्तमश क्रीत गुलाम था। अतः इस कारण को लेकर यह मान लेना कि दिल्ली में उसकी माता कहाँ से आ सकती थी पूर्ण सत्य तो नहीं है।