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प्राग्वाट-इतिहास:
[द्वितीय
विषम प्रदेश में पहुँचा। अनेक हाथियों को पकड़ा और उनको लेकर अपने देश को लौटा । लहर को इस प्रकार हाथियों को ले जाता हुआ सुनकर, देखकर अनेक नरेन्द्रों ने लहर पर आक्रमण किये । परन्तु महापराक्रमी लहर और उसके वीर एवं दुर्जेय योद्धाओं के समक्ष किसी शत्रु का बल सफल नहीं हुआ। इस प्रकार लहर अनेक उत्तम हाथियों को लेकर अपने प्रदेश गूर्जर में प्रविष्ट हुआ । सम्राट वनराज ने जब सुना कि दंडनायक लहर अनेक उत्तम हाथियों को लेकर सकुशल पा रहा है, वह भी अणहिलपुरपत्तन से लहर का सम्मान करने के लिये संडस्थलनगर पहुंचा । लहर के इस साहस पर सम्राट् वनराज अत्यन्त मुग्ध हुआ और लहर को जागीर में संडस्थलनगर और टंकशाल-अधिकार प्रदान किया। दंडनायक लहर ने संडस्थलनगर में एक विशाल मन्दिर बनवाया और उसमें लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियाँ प्रतिष्ठित करवाई। इससे यह भी सिद्ध हो जाता है कि वह जैसा लक्ष्मी का पुजारी था, वैसा ही अनन्य पुजारी सरस्वती का भी था । दंडनायक लहर को उपरोक्त विजययात्रा में विपुल द्रव्यसमूह की भी प्राप्ति हुई थी। उसने अपनी टंकशाल में उक्त द्रव्य की स्वर्ण-मुद्रायें बनवाकर उन पर लक्ष्मी की मूर्ति अंकित करवाई।
लहर दीर्घायु था और वह लगभग डेढ़ सौ (१५०) वर्ष पर्यन्त जीवित रहा. तथा लगभग १३० वर्ष वह दंडनायक और अमात्यपद जैसे महान् उत्तरदायी पदों पर रहकर गूर्जर-भूमि एवं गूर्जर-सम्राटों की अमूल्य सेवा करता रहा । महामात्य निन्नक तथा दंडनायक लहर की दीर्घकालीन एवं अद्वितीय सेवाओं का ही प्रताप था कि
- *चावड़ावंश के शासकों के नामों में तथा उनके शासनारूढ़ होने के संवतों में जो भ्रम है, वह तब तक दूर नहीं होगा, जब तक कोई अधिक प्रकाश डालने वाला आधार प्राप्त नहीं होगा। फिर भी जैसा अधिक इतिहासकार कहते हैं कि चावड़ावंश का राज्य वि० सं०८०२ से वि० सं०६६३ तक रहा, मैं भी ऐसी ही मान्यता रखता हूँ। वनराज चावड़ा का महामात्य निन्नक, नानक नाम वाला पुरुष था, जिसको मैंने निचक करके वर्णित किया है। महामात्य निनक का अन्तिम पुत्र लहर और लहर का अन्तिम पुत्र वीर था । बनराज वि० सं०८०२ में शासनारूढ़ हुआ और बालक मूलराजचालूक्य वि० सं० ६६३ में । इस १६१ वर्ष के अन्तर में केवल निनक
और लहर का ही अमात्यकाल प्रवाहित रहा, यह कुछ इतिहासकारों को खटकता है। वनराज की आयु जब ११० वर्ष और उसके पुत्र योगराज की आयु १२० वर्ष की थी, तब समझ में नहीं आता इतिहासकार लहर को दीर्घायु मानने में क्यों शंका करते हैं। 'History stands on its own legs and not others' provided'. वनराज के अन्तिमकाल में लहर ने अपने पिता निनक का अमात्यभार सम्भाल लिया था। लहर ने लगभग वि० सं०८६० में अमात्यपद ग्रहण किया और वह इस पद पर आरूढ़ होने के पश्चात् लगभग १३० वर्ष पूर्ण महामात्य रहा हो तो कोई आश्चर्य नहीं, अगर हम उसकी आयु १५० वर्ष के लगभग मानने में आश्चर्य नहीं करते है तो।
वे इतिहासकार जो लहर को इतना दीर्घायु होना नहीं मानते, वीर को लहर का पुत्र होना भी नहीं मानते हैं, क्योंकि वीर मूलराज चालूक्य का महामात्य था, जो वि० सं०६६८से शासन करने लगा था।
श्री हरिभद्रसूरिविरचित 'चन्द्रप्रभस्वामी चरित्र' के अन्त में दी हुई श्री विमलशाह के वंश की प्रशस्ति वि० सं० १२२३ के अनुसार भी वीर लहर का पुत्र सिद्ध होता है, क्योंकि इस प्रशस्ति में लहर और वीर के बीच किसी अन्य पुरुष का वर्णन नहीं है। अर्बुदगिरिस्थ विमलवसति में वि० सं०१२०१ का दशरथ का शिलालेख है। जिससे सिद्ध है कि दशरथ वीर मंत्री के पौत्र का पौत्र (प्रपौत्र-पुत्र) था और वीर मंत्री का शरीरान्त वि० सं०१०८५ में हुश्रा । इस प्रकार वीर से पांचवीं पीढ़ी में दशरथ हुआ है। दशरथ जैसा प्रतिभासम्पन्न पुरुष सौ वर्ष से कम पूर्व हुये अपने प्रपितामह के विश्रत पिता और प्रपितामह के नामों को नहीं जाने या अपनी अति विश्रत मात्र पांच या छः पीढ़ियों के क्रमवार नाम उत्कीर्ण करवाने में भूल कर जाय अमाननीय है । वीर जब चालूक्य मूलराज का, जो वि० सं०६८ में शासन चलाने लगा था, महामात्य है और वह वि० सं०१०८५ में स्वर्गवासी हुभा, तथा वह लहर का पुत्र था, सहज सिद्ध हो जाता है कि लहर दीर्घायु था और उसका अमात्यकाल १३० एक सौ तीस वर्ष पर्यन्त रहा है ।