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[द्वितीय
होते हैं। इस प्रकार नि: चं० १०६ में मन्दिर का निर्माण कार्य प्रारम्भ हुमा । संसार के प्रति प्राचीनतम एवं शिल्पकला के प्रति प्रसिद्ध एवं विशाल नमूतों में विमलनसति का स्थान बहुत ऊँचा है, ऐसा भव्य जिनालय वि० सं० १०८ में बन कर तैयार हो गया । उक्त मन्दिर के बनाने में कुल १,५३,००,०००) रुपयों का सद्व्यम हुमा । १५०० कारीगर और २००० इनार मजदूर नित्य काम करते थे ऐसा लिखा मिलता है।
दण्डनायक विमलशाह द्वारा अनन्य शिल्प-कलावतार श्री अर्बुदमिरिस्थ आदिनाथ-विमलवसहि की व्यवस्था
वि० सं० १०८८ में स्नात्र-महोत्सव करके दंडनायक विमलशाह ने १८ भार (एक प्रकार का तोल) वजन में स्वामिश्रित पीत्तलमय सपरिकर ५१ एक्कावन अंगुल प्रमाण श्री आदिनाथवि को ध्वजाकलशारोहण के साथ प्रतिष्ठित करवा कर श्री विमलवसहि के मूलगर्भगृह में श्री मूलनायक के स्थान पर संस्थापित करवाया।
मन्दिर की देख-रेख रखने के लिये तथा प्रतिदिन मन्दिर में स्नात्रपूजादि पुण्यकार्य नियमित रूप से होते रहने के लिए दंडनायक विमल ने अर्बुदगिरि की प्रदक्षिणा में आये हुये मुंडस्थलादि ३६० ग्रामों में प्राग्वाटकुलों को बसाया और प्रत्येक ग्राम अनुक्रम से प्रतिदिन विधिसहित मन्दिर में स्नानादि पुण्यकार्य करें ऐसी प्रतिज्ञा से जनको अनुबंधित किया। उक्त ३६० ग्रामों में बसने वाले प्राम्याटकुलों को राज्यकर से मुक्त करके तथा अनेक मांति से उन पर परोपकार करके उनको महाधनी बनाया, जिससे वे मन्दिरजी की देख-रेख सहज और सुविधापूर्वक नित्य एवं नियमित तथा अनुक्रम से कर सकें।
तीसरी बाधा फिर यह उत्पन्न हुई कि जब मन्दिर का कार्य प्रारम्भ हुना तो उक्त स्थान पर रहने वाले बालिनाह नामक एक भयंकर यक्ष ने उत्पात मचाना शुरू किया। दिन भर में जितना निर्माण कार्य होता वह यक्ष रात्रि में नष्ट कर डालता। अन्त में बालिनाह और विमल में द्वंद्व युद्ध हुआ। उसमें बालिनाह परास्त हुश्रा और अपना स्थान छोड़ कर अन्यत्र चला गया। तत्पश्चात् निर्माण कार्य निरापद चालू रहा।
विमलशाह के समय में मजदूरी अत्यन्त ही सस्ती थी। आज के एक साधारण मजदूर को जो रोजाना मिलता है, उतना उस समय में १०० मजदूरों को मिलता था। अब पाठक अनुमान लगा लें। कितने सहस्त्र मजदूर एवं कारीगर कार्य करते होंगे। ___पं० श्री लालचन्द्रजी भगवानदासजी बालिनाह को उस भूमि का कोई ठक्कुर-भूमिपति बालिनाथ नाम का होना अनुमान
_ 'चन्द्रावतीनगरीशेन श्री विमलदण्डनायकन सक- 'बुदाचलमण्डन श्री विमलवसति मूलनायक १८ भारमितस्वर्णमिश्ररीरीमय सपरिकर ५१ अंगुल प्रमाणाऽऽदीश्वरस्य प्रत्यह स्नात्राध्वजारोपोत्सवार्थ मुण्डस्थलादि ३६० ग्रामेषु प्राग्वाट वासिताः सर्वप्रकारकरम्वेच्यनेकोपकारकरणेच महाधनाढ्याः कृत्ताः, ततः प्रत्यहं स्वचारकक्रमेण मुण्डस्थलादि श्री संधैः स्नात्रादिपुण्यानि व्यधीयन्ता ।।
इत्यर्थोपदेशः ४४॥ उ०.त० पृ० २२४