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१२]
: प्राग्वाट-इतिहास ::
[द्वितीय
दे० कु. १३-प्रथम मण्डप की छत में देवी-आकृतियाँ और आधार-पट्टियों पर अश्वारोहीदल तथा उनके नीचे नृत्य
' प्रदर्शन के दृश्य हैं । द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और सिंहदल । दे० कु०१४-प्रथम मण्डप में काचलाकृतियाँ, देवी-नृत्य का दृश्य और दूसरे वलय में प्रमुख देवियाँ और आधार
पट्टियाँ पर सिंह-दल । द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और सिंहदल । दे० कु. १५-साधारण । दे. कु०१६-प्रथम मण्डप (२०A) में पंच-कल्याणक का दृश्य है। प्रथम वलय के मध्य में जिनप्रतिमा सहित
समवशरण की रचना है। दे० कु० १७–प्रथम मण्डप की आधार-पट्टियों पर सिंहाकृतियाँ, उनके नीचे प्रासादस्थ देवियाँ और काचलायुक्त
रचना । द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और अश्वारोहियों की घुड़दौड़। दे० कु. १८-साधारण ।
देवकुलिका सं० ८ से १८ तक की में एक कुलिका सं० ११ का द्वार का बहिर भाग अति सुन्दर शिल्पकाम से अलंकृत है। अन्य कुलिकाओं के द्वारों के बहिर भाग शिल्पकाम की दृष्टि से साधारण ही है।
केसर घोटने का स्थान–देवकुलिका अट्ठारहवीं के पश्चात् दो देवकुलिकाओं के स्थान जितनी जगह खाली है, अन्य कुलिकाओं के बराबर का स्थान खुला छोड़ कर दो कोठरियाँ बनी हैं। खाली
स्थान में केसर घोटी जाती है । दे० कु. १६-द्वि० मण्डप में नीचे की पट्टी में बीच-बीच में पाँच स्थानों पर जिनबिंब खुदे हैं और उनके आस-पास
श्रेणी में श्रावकगण चैत्यवंदन करते हुये, हाथों में पूजा की विविध सामग्री जैसे पुष्पमाला,
कलश, फल, फूल, चामरादि लिये तथा विविध प्रकार के वायंत्र लेकर बैठे हैं । दे० कु. २०-यह एक बड़ा गंभारा है। शिल्पकाम की दृष्टि से इसमें कोई अंग उल्लेखनीय नहीं है । भिन्न २
कालों के प्रतिष्ठित अनेक बिंब इसमें विराजमान हैं। दे० कु० २१-इसमें अंबिकादेवी की प्रतिमा है। शिल्पकाम बिल्कुल नहीं है। "" २२-साधारण । ,,, २३-प्रथम मण्डप (२०B) में अन्तिम वृत्ताकार पंक्ति के नीचे उत्तर और दक्षिण की दोनों सरलरेखाओं के
मध्य में भगवान् की एक-एक प्रतिमा खुदी है। उनके पास में पुष्पमालादि लेकर श्रावकगण खड़े
हैं। अवशिष्ट भाग में प्रथम वलय में वतकें और द्वि० वलय में नाटक-दृश्य वाद्यंत्र आदि खुदे हैं । . मण्डप के केन्द्र में काचलाकृतियाँ हैं । ,,, २४-काचलाकृतियाँ । प्र० वलय में मल्ल-युद्ध और आधार-पट्ट में नाटक-दृश्य । " , २५–काचलाकृतियाँ । प्र० वलय में नृत्य । द्वि० वलय में अश्वारोहीदल और त. वलय ने हस्तिदल ।