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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
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३८ - प्र० मण्डप (२६) के नीचे की चारों पंक्तियों के मध्य में भगवान् की एक-एक प्रतिमा है । एक ओर एक जिनप्रतिमा के दोनों पक्षों पर एक-एक कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा है । प्रत्येक जिनप्रतिमा के दोनों पक्षों पर एक-एक कायोत्सर्गिक प्रतिमा है । प्रत्येक जिनप्रतिमा के आस-पास पूजा सामग्री लेकर श्रावकगण खड़े हैं । द्वि० मण्डप (२७) में देव - देवियों की सुन्दर मूर्तियाँ हैं ।
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०कु० ३६ - प्र० मण्डप का देखाव साधारण । काचलाकृतियाँ और प्रासादस्थ द्वि० मण्डप ( २८ ) में हंसवाहिनी सरस्वतीदेवी तथा देवियाँ । गजवाहिनी लक्ष्मीदेवी की मूर्तियाँ हैं ।
द्वि० मण्डप (२६) के बीच लक्ष्मीदेवी की मूर्ति है । उसके आस-पास अन्य देव - देवियों की आकृतियाँ हैं । मण्डप के नीचे की चारों ओर की पंक्तियों के बीच २ में एक २ कायोत्सर्गिक मूर्त्ति, प्रत्येक कायोत्सर्गिक मूर्त्ति के आस-पास हंस और मयूर पर बैठे हुये विद्याधर हैं, जिनके हाथों में कलश और फल हैं। घोड़ों पर मनुष्य अथवा देव, हाथों में चामर लिये हुये हैं । देवकुलिका सं० ३५ से ४० में से सं० ३७ के द्वार के बाहर का शिल्पकाम साधारण और अन्य कु० के द्वार के बाहर सुन्दर हैं 1 दे०कु० ४१ - इस देवकुलिका के द्वार-चतुष्क, स्तंभ तथा इन दोनों के मध्य का अन्तर भाग आदि अति सुन्दर शिल्पकाम से मंडित है । मण्डप के केन्द्र में विकसित कमल-पुष्प और कमलगट्टों के दृश्य हैं । प्र० वलय में विविध देवी - नृत्य हैं। दोनों मण्डपों के नीचे की आधार पट्टियों में प्रासादस्थ देवियों के देखाव हैं।
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,, ४० - प्र० मण्डप में विकसित कमल-पुष्प । प्र० वलय में हाथ जोड़ी हुई मनुजाकृतियाँ । द्वि० वलय में मन्दिरों के शिखर । तृ० वलय में गुलाब के पुष्प हैं ।
,, ४२- प्र० मण्डप
'देवी नृत्य के दृश्य और अश्वारोही दल हैं । द्वि० मण्डप (३०) के नीचे की दोनों ओर की पट्टियों पर अभिषेक सहित लक्ष्मीदेवी की सुन्दर मूर्त्तियाँ खुदी हैं ।
,, ४३, ४४, ४५ - इन तीनों देवकुलिकाओं के प्रथम मण्डप तो साधारण बने हैं । प्रत्येक के द्वितीय मण्डप (३१, ३२, ३३) में १६ सोलह भुजावाली एक २ देवी की सुन्दर मूर्त्ति खुदी है । कुलिका ४४ के द्वार का बाहिर भाग भी अति सुन्दर है । कुलिका ४२, ४३ का सुन्दर और ४५ का साधारण है ।
४३ प्र० मण्डप में काचल्ला कृतियाँ । नीचे की पट्टी में प्रासादस्थ देवियाँ और उनके नीचे वृक्षाकृतियाँ ।
४४ प्र० मण्डप में चारों ओर आधार- पट्टियों पर अश्वारोहीदल और उनके नीचे चौवीस प्रासादों में चौवीस देवियों की अलग २ मूर्त्तियाँ ।
कुलिका ४५वीं के प्रथम मण्डप (३४) के नीचे को चारों पंक्तियों के बीच २ में भगवान की एक २ मूर्ति है । पूर्वदिशा की जिनप्रतिमा के दोनों ओर एक २ कात्सर्गिक मूर्ति है । प्रत्येक