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प्राग्वाट-इतिहास:
[ द्वितीय
धवल्लकपुर में अभिनव राजतन्त्र की स्थापना
जब से सम्राट भीमदेव द्वि० ने महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद और युवराज वीरधवल के कन्धों पर गुर्जरसाम्राज्य का भार रक्खा, तब से ही दोनों पिता-पुत्र गुर्जरभूमि में फैली हुई अराजकता का अन्त करने, निरंकुश हुये सामन्त एवं माण्डलिकों को वश करने की चिंताओं में ही डुवे रहने लगे। पत्तन में राजकर्मचारी आये दिन नित नवीन षड़यन्त्र, विश्वासघात के कार्य और मनमानी कर रहे थे। अन्त में दोनों पिता-पुत्रों ने सम्राट भीमदेव की सम्मति से पत्तन से दूर धवल्लकपुर में नवीन राजतन्त्र की स्थापना करने का दृढ़ निश्चय किया और अभिनव राजतन्त्र की शीघ्रतर स्थापना करने का प्रयत्न करने लगे। राजगुरु सोमेश्वर ने तथा धवल्लकपुर के नगरसेठ यशोराज ने इस नव कार्य में पूरा २ सहयोग देने का वचन दिया। दोनों पिता-पुत्रों ने अपने विश्वासपात्र सामन्त एवं सेवकों का संगठन किया और धवल्लकपुर में जाकर रहने लगे। जैसा लिखा जा चुका है, दोनों मंत्री भ्राताओं की जब महामात्यपद और दंडनायक पदों पर नियुक्ति हो गई. अभिनव राजतन्त्र के संचालन करने के लिये समिति का निर्माणकार्य पूर्ण-सा हो गया। दोनों मन्त्री भ्राताओं के सामने गर्जरसाम्राज्य के शासनकार्य के अतिरिक्त गुर्जरभूमि में फैली अराजकता का अन्त करने का कार्य प्रथम आवश्यक था । महामात्य वस्तुपाल, दंडनायक तेजपाल, महामण्डलेश्वर लवणप्रसाद, युवराज वीरधवल और राजगुरु सोमेश्वर, नगरसेठ यशोराज आदि ने एकत्रित होकर नवराजतंत्र का निम्न प्रकार का कार्य-क्रम निश्चित किया ।
१-युवराज वीरधवल को 'राणा' पद से सुशोभित करना ।
२-सर्व प्रथम स्वार्थी एवं स्वामीविरोधी ग्रामपतियों को वश करना तत्पश्चात् निरंकुश जीर्णाधिकारियों को दण्डित करके तथा नव राजकर्मचारियों की नियुक्तियाँ करके शासन-व्यवस्था को सुदृढ़ करना और राजकोष को समृद्ध बनाकर शासन-व्यवस्था का सुचारुरूप से संचालन करना । ___ ३–स्वतन्त्र बने हुए अभिमानी ठक्कुर, सामन्त, माण्डलिकों को क्रमशः अधीन करना और सर्वत्र गुर्जरभूमि में पुनः सम्राट भीमदेव द्वि० की प्रभुता प्रसारित करनी ।
४-मालवा, देवगिरि एवं दिल्लीपति यवन-शासकों की बढ़ी हुई राज्य एवं साम्राज्य-लिप्सा का ग्रास बनती हुई गुर्जरभूमि की रक्षा के निमित्त सबल सैन्य का निर्माण करना ।
५-पड़ोसी मरुदेश के छोटे बड़े राजाओं, सामन्तों एवं माण्डलिकों, ठक्कुरों को पुनः मित्र अथवा अधीन करना।
महामात्य वस्तुपाल ने अभिनव राजतन्त्र के कार्यक्रम के अनुसार कदम बढ़ाने के पूर्व सम्राट भीमदेव को उक्त कार्यक्रम से परिचित करवा कर उनका अनुमोदन प्राप्त कर लिया, जिससे सम्राट के समक्ष धूर्ती, चालाकों एवं राजद्रोही, चाटुकारों की युक्तियाँ सफल नहीं हो सके । सम्राट का अनुमोदन प्राप्त हो जाने पर महामात्य वस्तुपाल ने ऊपरलिखित व्यक्तियों की एक समरसमिति का निर्माण किया । उक्त समिति में वह ही व्यक्ति,