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खण्ड ]
:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री-वंश और वस्तुपाल के महामात्य बनने के पूर्व गुजरात ::
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द्रव्य हमारे पास इस समय है, उसके साथ हमको हमारे परिवार के सहित मुक्त करेंगे तो हम दोनों भाई इस असमय में मातृभूमि गुर्जरदेश की सेवा करने को तैयार हैं।" राणक लवणप्रसाद एवं युवराज वीरधवल ने वस्तुपाल को उसकी प्रार्थना के अनुसार वचन प्रदान किया और सोमेश्वर ने मध्यस्थ का स्थान ग्रहण करते हुये अन्त में अपने को इस कार्य में साक्षी रूप स्वीकार किया । फलतः वस्तुपाल ने महामात्यपद तथा तेजपाल ने दण्डनायकपद स्वीकृत किया । सम्राट् भीमदेव द्वि० की भी वस्तुपाल तेजपाल की नियुक्ति के उपर सम्मति एवं श्रज्ञा प्राप्त कर ली गई थी । १ इस प्रकार वीरहृदय एवं नीतिनिपुण वस्तुपाल की महामात्यपद पर और रणकुशल महाबली तेजपाल की महाबलाधिकारी दंडनायक के पद पर वि० सं० १२७६ से नियुक्तियाँ हुई |२
‘१ – इमौ ग्रन्थाब्धिमन्थानौ पन्थानौ श्री समागमे । तुभ्यं समर्पयिष्यामि मन्त्रिणौ तौ तु मित्रयोः ॥५७॥
सु० सं० सर्ग० तु० पृ०२६.
' इत्युक्त्वा मुदिते वीरधवलेऽसौ घराघवः । श्राहूय तौ स्वयं प्राह नमन्मौली सहोदरौ ॥ ५८ ॥ 'युवा नरेन्द्र व्यापारपारावारे कपारगौ । कुरुता मन्त्रिता वीरधवलस्य मदाकृतेः ॥५६॥ स्वप्न स्त्री एवं पुरुषों को आते हैं, इससे तो कोई इन्कार नही कर सकता। ऐसी भी अधिकतम मान्यता है और वह अधिकतम सच्ची भी है कि जैसा चिन्तन होता है, स्वप्न भी वैसा ही न्यूनाधिक मिलता हुआ होता है। और यह भी सत्य है कि प्राचीन लोगों का स्वप्न को सा मानने का स्वभाव था । कोई इसको उपहास्य समझता है तो वह विचारहीन ही नहीं, शिथिल - जीवन है । उत्कृष्ट चिन्तनशील अवस्था में जो भी स्वप्न श्रायगा, उसमें उपस्थित समस्या का उपयुक्त हल होगा । ऐसी अनेक नहीं सहस्रों कथा, कहानियें, वार्त्तायें भारतीय प्राचीन वाङ्गमय में संग्रहित हैं । उपरोक्त मान्यताओं को दृष्टि में रखकर हम यहां भी विचार कर सकते हैं कि लवणप्रसाद या वीरधवल, जिनके ऊपर समस्त गुर्जरभूमि के उद्धार का भार था और वह भी ऐसे असमय में पड़ा जबकि सामन्त, मोडलिक, ठक्कुर स्वच्छन्द और स्वतन्त्र हो चुके थे, गूजरभूमि लूट-खसोट, चौरी, डकैती, अन्याय, अत्याचारों का प्रमुख स्थल बॅन चुकी थी, वस्तुपाल, तेजपाल को गुर्जर महाराज्य के प्रमुख सचिव बनाने का कैसे विचार नहीं करते, जबकि दोनों भ्राता उद्भट वीर योद्धा, नीतिनिपुण, न्वायशील, धर्मिष्ट, बुद्धिमान्, प्रतिभासम्पन और अनेक गुणों के भण्डार और रूपवान् थे । विशेषता इन सबके ऊपर जो थी, वह यह कि वे उस कुल में उत्पन्न हुये थे, जिस कुल ने गत चार पीढियों में गुर्जरसम्राटों की भारी सेवायें करके कीर्त्ति प्राप्त की थी और अब भी जो गुर्जर भूमि के प्रसिद्धकुलों में गिना जाता था । भीमदेव द्वि०, राणक लवणप्रसाद तथा वीरधवल भी जिससे अधिकतम परिचित थे । भला ऐसे परिचित, प्रसिद्ध एवं पीढ़ियों के सेवक कुल में उत्पन्च नरवीरों की सेवाओं को कौन समय में प्राप्त करना नहीं चाहता है ? परिणाम यह हुआ कि स्वप्न हुआ और उसमें कुलदेवी ने दर्शन दिये। प्राचीन समयों में, जब रण, संपामों की ही युग में प्रधानता थी कुलदेवी की अधिकतम पूजा और मान्यता होती थी; अतः अगर स्वप्न में कुलदेवी ने दर्शन देकर वस्तुपाल तेजपाल को मंत्री - पदों पर आरूढ करने का आदेश दिया हो तो कोई मिथ्या कल्पना या झूठ नहीं ।
की० कौ० सर्ग० २ श्लोक ८३-१०७ । व० च० प्रस्ताव प्र० श्लोक ५३-२०० । प्र० को ० प्र० २४ पृ० १०१ की० कौ० के कर्ता राक लवणप्रसाद को स्वप्न हुआ कहते हैं और व० च के कर्त्ता वीरधवल को स्वप्न हुआ वर्णन करते हैं । जहाँ तक स्वप्न का प्रश्न है, दोनों स्वप्न के होने का वर्णन करते हैं ।
की ० कौ० सर्ग० ३ श्लोक ५३-७६ ।
न० ना० नं० सर्ग० १६ श्लोक ३५ । च० वि० सर्ग० ३ श्लोक ६६-८२ । सु० सं० सर्ग ० ३ श्लोक ५७-६० । है० म० म० परि०० पृ० ८६ श्लोक ११६-११८ (सु० कौ० क०) २-‘श्रीशारदा प्रतिपचापत्येन महामात्य श्री वस्तुपालेन तथा अनुजेन (वि) सं० (१२) ७६ वर्ष पूर्वं गुर्जर मण्डले घवलक्कप्रमुखनगरेषु ।' प्रा० जै० ले० सं० मा० २ ले० ३८-४३ ( गिरनार - प्रशस्ति)
मुद्राव्यापारान् व्यापृण्वता