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:: प्राग्वाट - इतिहास ::
[ द्वितीय
लेकर खड़े हैं । मण्डप के केन्द्र में काचलाकृतियाँ । वृत्ताकार आधार-वलय में हस्तिदल । नीचे के भाग पर विविध स्त्री-नृत्य । द्वि० मण्डप में आठ देवियों का देखाव है :
देवकुलिका ४८, ४६, ५०, ५१ और ५२, ५३, ५४ के द्वारों के बाहर के दोनों ओर के शिल्पकाम क्रमशः सुन्दर और अति सुन्दर हैं ।
इस वसति का संक्षेप में वर्णन इस प्रकार है :
१ - सशिखर मूलगंभारा और उसके द्वार के बाहर की चौकी ।
२ - विशाल गुम्बजदार गूढ़मण्डप, जिसके उत्तर और दक्षिण में दो चौकियाँ ।
३ - नवचौकिया जिसमें दो झरोखे ।
४ - नवचौकिया से चार सीढ़ी उतर कर सभा मण्डप |
५ - सभा - मण्डप में अति सुन्दर बारह तोरण |
६ - बावन देवकुलिका और एक अम्बिकादेवी की कुलिका तथा एक मूलगंभारा - कुल ५४ । इनमें देवकुलिका सं० १, २, ३, ११, ४१, ४४, ५२, ५३, ५४ के द्वारों के बहिर भाग अति सुन्दर शिल्पकाम अलंकृत हैं।
देवकुलिका सं० ६, ७, २३, २४, २५, २६, २७, २८, ३५, ३६, ३८, ३६, ४०, ४२,४३,४८, ४६, ५०, ५१ के द्वारों के बहिर भाग सुन्दर शिल्पकाम से सुशोभित हैं। शेष कुलिकाओं के द्वारों के बहिर भाग और उनके स्तंभ साधारण बने हैं ।
७- ११६ मण्डप हैं |
३ – गूढ़मण्डप १ और उसके उत्तर तथा दक्षिण की चौकियों के । १६–सभामण्डप १ और उसके उत्तर ६, दक्षिण ६, पूर्व में भ्रमती में ३ ।
६ - नवचौकिया के ।
६१ - देवकुलिकाओं के ।
८-५६ गुम्बज छत पर बने हैं :
६ - नवचौकियों के ।
३ - गूढ़ मण्डप के ऊपर और दोनों चौकियों के ऊपर | १६ – सभामण्डप का १ और भ्रमती के ऊपर १५ । १२ - पूर्व दिशा की पश्चिमाभिमुख देवकुलिकायें सं ०१, २, ३, ५२, ५३, ५४ के मंडपों के ऊपर दो-दो ।
३ - सिंहद्वार १ और उसके भीतर २ । ४ - देवकुलिका १६, २०वीं ।
८ - पश्चिम पक्ष पर देवकुलिकाओं के । १– देवकुलिका ३३वीं ।
६ - २१३ स्तंभ हैं, जिनमें से १२१ संगमरमर के हैं:
८- गूढ़मण्डप में । ८- दोनों चौकियों के । १२ - नव चौकिया के । १८ – सभामण्डप के ] अति सुन्दर । ६१ - देवकुलिकाओं की मुखभित्ति के । ८७ - देवकुलिकाओं के मण्डपों के (५०+३७ । १२ - देवकुलिका १६, २०वीं । ३ - अंबिका कुलिका के भीतर । ४- सिंहद्वार और चौकी
साधारण ।