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:: प्राचीन गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसति ::
जिनमूर्ति के दोनों ओर हंस तथा घोड़े पर देव या मनुष्य बैठे हैं और उनके हाथ में फल अथवा
कलश और चामर हैं। ,, ४६-प्रथम मण्डप (३५) के नीचे की चारों ओर की पट्टियों के बीच २ में एक २ प्रभुमूर्ति है। उत्तर
दिशा की प्रभुमूर्ति के दोनों ओर एक २ कायोत्सर्गस्थ मूर्ति है। प्रत्येक प्रभुमूर्ति के आस-पास श्रावक पुष्पमालायें लेकर खड़े हैं । द्वि० मण्डप (३६) में नरसिंह द्वारा हिरण्यकश्यप के वध करने का दृश्य है ।
देवकुलिका के द्वार के बाहर दोनों ओर शिल्पकाम साधारण ही है। दे० कु. ४७-प्रथम मण्डप (३७) में छप्पन दिक्कुमारियाँ भगवान् का जन्माभिषेक कर रही हैं। प्रथम वलय में
भगवान् की मूर्ति है । दूसरे और तीसरे वलयों में देवियाँ कलश, पंखा, दर्पण आदि सामग्री लेकर खड़ी हैं। अतिरिक्त इन दृश्यों के तृतीय वलय में एक ओर देवियाँ भगवान् अथवा उनकी माता का स्नेह-मर्दन कर रही हैं, दूसरी ओर स्नान कराने का दृश्य है। चारों ओर की नीचे की आधार-पट्टियों के मध्य में चारों दिशा की पंक्ति में दो कायोत्सर्गिक मूर्तियाँ बनी हैं। इनके आस-पास में श्रावकमस पुष्प-मालायें लेकर खड़े हैं। द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ । द्वार के बाहर का भाग
साधारण है। ,,,, ४८-प्रथम मण्डप की रचना साधारण है । वृक्ष और पुष्पों के दृश्य हैं। दि० मण्डप (३८) के केन्द्र में
अति सुन्दर शिल्पकाम है। यह वीस खण्डों में विभाजित है। प्रत्येक खण्ड में अलग २ कृतकाम है । एक खण्ड में भगवान् की मूर्ति और एक दूसरे अन्य खण्ड में उपाश्रय का दृश्य है । आसन पर
आचार्य बैठे हैं, एक शिष्य एक हाथ शिर पर रख कर पंचांग नमस्कार कर रहा है, अन्य दो शिष्य
हाथ जोड़ कर खड़े हैं। ,,, ४६-देवकुलिका सं० ४८ के अनुसार ही इसके प्रथम मण्डप में बीस खण्ड हैं और उनमें भिन्न २ प्रकार
का शिल्पकौशल दिखाया गया है। ,, ५०, ५१-कृतकाम की दृष्टि से दोनों देवकुलिकाओं के दोनों मण्डप अति सुन्दर है। ,, ५२-प्रथम मण्डप में काचलाकृतियाँ । द्वि० मण्डप के प्रथम वलय में शृंखलायें । द्वि० वलय में गुलाब
के पुष्प तथा नीचे की पट्टी पर हाथ जोड़े हुये मनुष्यों की मूर्तियां और नीचे के अष्टभुजाकार आधारों
पर प्रासादस्थ देवियाँ। ,,, ५३-प्रथम मण्डप (४०) के नीचे की पट्टी में एक ओर भगवान् कायोत्सर्गावस्था में मूर्तित हैं। उनके
आस-पास श्रावक खड़े हैं। दूसरी ओर प्राचार्य महाराज बैठे हैं, उनके समीप में ठवणी है और श्रावक हाथ जोड़ कर खड़े हुये हैं। द्वि० मण्डप में काचलाकृत्तियाँ । अष्टभुजाकार आधार की पट्टियों पर
प्रासादस्थ देवियाँ । इसके नीचे चारों कोणों में लक्ष्मीदेवी की एक सुन्दर मूर्ति और अन्य देवियाँ । ,, ,, ५४-प्रथम मण्डप (४१) नीचे की पंक्ति में चारों ओर हाथियों का देखाव है। तत्पश्चात् उत्तर
दिशा की नीचे. की पंक्ति में एक कायोत्सर्गिक मूर्ति है। आस-पास में. श्रावक पूजा-सामग्री