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खण्ड ]
:: मंत्री भ्राताओं का गौरवशाली गूर्जर-मंत्री वंश और वस्तुपाल के महामात्य बनने के पूर्व गुजरात :: [ १११
वस्तुपाल के महामात्य बनने के पूर्व गुजरात
__ महमूद गजनवी के आक्रमणों से समस्त उत्तर भारत की शांति भङ्ग हो चुकी थी। वि० सं० १०८१-२ (ई. सन् १०२५) में सोमनाथ के मन्दिर पर जो महमूद गजनवी का आक्रमण हुआ था वह उत्तर भारत के समस्त राजाओं का पराजय था१ । गूर्जरभूमि ने सम्राट् कर्ण, सिद्धराज, कुमारपाल जैसे महापराक्रमी नरवीर उत्पन्न किये थे, जिन्होंने पुनः गूर्जरप्रदेश को समृद्ध और सुखी बनाया। अणहिलपुरपत्तन इन सम्राटों के काल में भारत के प्रति समृद्ध एवं वैभवशाली प्रमुख नगरों में गिना जाता था । परन्तु सम्राट् कुमारपाल के पश्चात् गूर्जरभूमि के सिंहासन पर अजयपाल और मूलराज राजा आरूढ़ हुये, वे अधिक योग्य नहीं निकले । गुजरात की दशा बराबर बिगड़ती गई । योग्य मन्त्रियों का भी अभाव ही रहा । सामन्त एवं माएडलिक राजागण धीरे २ स्वतन्त्र हो गये । इसके उपरान्त वि० सं० १२४६ (ई० सन् ११६२) में मुहमदगौरी के हाथों तहराइन के रणक्षेत्र में हुई पृथ्वीराज की पराजय का कुप्रभाव सर्वत्र पड़ा। दिल्ली यवनों के अधिकार में आ गया और मुसलमान आक्रमणकारियों का आतंक एवं प्रभुत्व द्रुतवेग से बढ़ चला। कुतुबुद्दीन ऐबक ने भीम द्वि० के समय में वि० सं० १२५४ (ई. सन् ११६७) में गूर्जरभूमि पर भारी आक्रमण किया । सम्राट भीमदेव द्वितीय उसके आक्रमण को निष्फल नहीं कर सके । अणहिलपुरपत्तन पर यवनों का आधिपत्य स्थापित हो गया । इस प्रकार कुतुबुद्दीन ने भीमदेव द्वि० के हाथों हुई मुहमदगौरी की पराजय का पुनः बदला लिया । कुतुबुद्दीन समस्त गूर्जरभूमि को नष्ट-भ्रष्ट कर दिल्ली लौट गया। सैन्य एकत्रित करके भीमदेव द्वि० ने वि० सं० १२५६ (ई. सन् ११६६) में यवनों पर पुनः आक्रमण किया और उन्हें परास्त करके गूर्जरभूमि से बाहर निकाल दिया ।
सम्राट भीमदेवर और उनके सामन्त जब पत्तन में स्थित यवनशासक को परास्त कर चुके तो यवनशासक पत्तन छोड़कर अपना प्राण लेकर भागा। सम्राट ने उस समय पत्तन के राजसिंहासन पर बैठकर आनन्द एवं हर्ष मनाने के स्थान में यह अधिक उचित समझा कि यवनों को गूर्जरभूमि से ही बाहर निकाल दिया जाय । यह कार्य अभी जितना सरल है, यवनों के पुनः सशक्त एवं संगठित हो जाने पर उतना ही कठिन हो जायगा । ऐसा विचार करके सम्राट ने पत्तन में जयन्तसिंह नामक विश्वासपात्र सामन्त को अपना प्रतिनिधि बनाकर उसको पत्तन की रक्षा का भार अर्पित किया और पत्तन में कुछ सैन्य छोड़कर, सम्राट अपनी विजयी सैन्य के सहित पलायन करते हुये यवनों के पीछे पड़ा और कठिन श्रम एवं अनेक छोटे-बड़े रण करके यवनों को अन्त में वह गूर्जरभूमि से बाहर निकालने में सफल हुआ । गूर्जरभूमि से यवनों को बिलकुल बाहर निकालने के उक्त प्रयत्न में कुछ समय लग ही गया। इस अन्तर में सामन्त जयंतसिंह ने, जिसको सम्राट ने यवनों का पीछा करने के लिये जाते समय अपना प्रतिनिधि बनाकर पत्तन में नियुक्त किया था, पत्तन का सिंहासन हस्तगत कर बैठा और उसने राजसिंहासन पर बैठकर अपने को गूर्जरसम्राट् घोपित कर दिया। सम्राट भीमदेव द्वि० यवनों को गूर्जरभूमि से बाहर करके जब
१-H. M. I. (III edi.) P. 22, 102, 148, 154. २-G. G. Part III P. 204,207.