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:: प्राचीन गूर्जर-मंत्री वंश और अर्बुदाचलस्थ श्री विमलवसति ::
दे. कु. २६-काचलाकृतियाँ । प्रथम वलय में बतकें । गोल आधार-पट्ट में नृत्य । . ,,, २७-काचलाकृतियाँ । प्र० वलय में बतकें । आधार-पट्ट में अश्वारोहीदल । ,, ,, २८-काचलाकृतियाँ । गोल आधार-वलय में सिंह-दल । ,, ,, २६-प्रथम मण्डप (२१) में कृष्ण-कालीयअहिदमन का दृश्य है। केन्द्र में कालीय सर्प भयंकर फण करके
खड़ा है। कृष्ण उसके कन्धे पर बैठकर उसके मुँह में नाथ डाल रहे हैं और उसका दमन कर रहे हैं। सर्प थक कर विनम्रभाव से खड़ा है। उसके आस-पास उसकी सात नागिनियाँ खड़ी २ हाथ जोड़ रही हैं। मण्डप के एक ओर कोण में पाताल लोक में श्री कृष्ण शय्या पर सो रहे हैं, लक्ष्मी पंखा झल रही है, एक सेवक चरणसेवा कर रहा है । इस दृश्य के पास में कृष्ण और चाणूर नामक माल का द्वन्द्व-युद्ध दिखाया गया है। दूसरी ओर श्रीकृष्ण, राम और उनके सखा गेंद
डण्डा खेल रहे हैं। ,,, ३०-३१-काचलाकृतियाँ । मण्डप के चारों कोणों में प्रासादस्थ एक-एक देवी-आकृति । दोनों देवकुलि
कायें एक ही कोण के दोनों पक्षों पर बनी हैं, अतः दोनों का मण्डप भी एक ही है । ,,, ३२-काचलाकृतियाँ । नीचे की चतुर्भुजाकार पट्टियों में उत्तर दिशा की पट्टी पर विविध नाट्य-दृश्य और
शेष तीन ओर की पट्टियों पर राजा की सवारी का दृश्य है। , ३३-काचलाकृतियाँ। मण्डप के प्र० घलय में विविध अंगचालन-क्रियायें। द्वि० वलय में भिन्न २
प्रासादों में बैठी हुई देवियों की आकृतियाँ। द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और चतुर्भुजाकार
आधार पट्टियों पर हस्तिदल का देखाव।। ,, ,, ३४-प्र० मण्डप (२२) में नीचे की पूर्व दिशा की शिलपट्टी के मध्य में एक कायोत्सर्गस्थ प्रतिमा ।
द्वि० मण्डप (२३) में चारों आधार-पट्टियों के मध्य में भगवान् की एक-एक प्रतिमा और उसके आसपास पूजा-सामग्री लिये हुये श्रावकगणों का देखाव । - देवकुलिका १६ से ३४ तक की में सं० २३ से २८ के द्वारों के बाहर दोनों ओर सुन्दर शिल्प
काम है। शेष कुलिकाओं के द्वारों के बाहरी भाग शिल्पकाम की दृष्टि से साधारण ही हैं । दे० कु. ३५-प्रथम मण्डप (२४) के नीचे की चारों ओर की पंक्तियों के मध्यभागों में एक-एक कायोत्सर्गस्थ
प्रतिमा है। प्रत्येक के आस-पास पूजा सामग्री लेकर श्रावकगण खड़े हैं। द्वि० मण्डप (२५) में
सोलह भुजाओं वाली एक सुन्दर देवी की आकृति लगी है। , ३६-काचलाकृतियाँ । अनेक देवियों की प्राकृतियाँ। द्वि० मण्डप में काचलाकृतियाँ और प्रासादस्थ
देवी-मूर्तियाँ। ,, ३७–प्र० मण्डप में काचलाकृतियाँ और नृत्य का देखाव । द्वि० मण्डप में नीचे की आधार-पट्टियों में
प्रासादस्थ देवी-आकृतियाँ।