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: प्राग्वाट-इतिहास::
[द्वितीय
यह बारह स्तम्भों पर बना वसति का सबसे बड़ा मण्डप है । बारह स्तम्भों पर बारह तोरण लगे हैं। मण्डप मैं पारह वलय हैं, जो पाठ स्तम्मों पर आधारित हैं । मण्डप में विशेष उल्लेखनीय भिन्न २ आयुध-शस्त्र और नाना सामण्डपं और उसके दृश्यों प्रकार के वाहनों पर पारूढ़ सोलह विद्यादेवियाँ भिन्न २ मुद्रात्रों में खड़ी हैं। केन्द्र में का वर्णन
एक लटकन और उसके पास के दूसरे वलय में काचलों से बने चतुष्कोणक्षेत्रों में भिन्न २ बारह लटकन लटक रहे हैं। मण्डप के नैऋत्य कोण में अम्बिकादेवी की सुन्दर मूर्ति बनी है (५C) अन्य तीन कोणों में भी ऐसी ही सुन्दर देवी-मूर्तियाँ बनी हैं। प्रत्येक स्तम्भ के सबसे नीचे के भाग में अद्भुत और आनन्ददायी बाव्य करती हुई स्त्री-आकृतियाँ हैं । यह मण्डप अधिकतम कलापूर्ण और शिल्पविशेषज्ञों की प्रतिभा और टांकी की नौंक और उसकी क्रिया का ज्वलंत उदाहरण है। तोरण और स्तम्भों की कोरणी इतनी उत्तम है कि सभामण्डप इन्द्रसभा-सा प्रतीत होता है। सचमुच नवचौकिया और सभामण्डप दोनों मिलकर इन्द्र के बैठने के स्थान और देवों के बैठने की सुसज्ज देवसभा का स्थान पूर्णरूपेण धारण किये हुये-से इन्द्रसभा की साक्षात् प्रतिमा ही हैं। देख कर मूक सहसा जिह्वायुक्त हो जाता है और इतना आनन्दविभोर और आत्मविस्मृत हो जाता है कि वाह-वाह विखे बिना रह ही नहीं सकता।
सभामण्डप, नवचौकिया, गूढमण्डप और मूलगंभारा के चारों ओर फिरती भ्रमंती बनी है । सभामण्डप के उत्तर, दक्षिण और पूर्व पक्षीं पर यह गुम्बजवती छतों से ढकी है ; शेष खुली है। उपरोक्तं तीनों पक्ष की छतों ग्रंमती और उसके दृश्य में तीन-तीन गुम्बज हैं।
सभामण्डप के उत्तर पक्ष की भ्रमती के मध्यवर्ती (५A) गुम्बज की उत्तर दिशा की भींत में सरस्वती की सन्ति और दक्षिण पक्ष की भ्रमती के मध्यवर्ती (B) गुम्बज की दक्षिण दिशा की मीत में लक्ष्मीदेवी की मूर्ति खुदी है और इनके इधर-उधर नाटक के पात्र विविध नाट्य कर रहे हैं। उपरोक्त दोनों मूर्तियाँ एक-दूसरे के ठीक
सामने-सामने है।
(६) सभामण्डप के पूर्व पक्ष की भ्रमती के मध्यवर्ती गुम्बज के बड़े खण्ड में भरत-बाहुबली के बीच लुपै युद्ध का दृश्य है । वह इस प्रकार है :. दृश्य के आदि में एक ओर अयोध्या (६A) नगरी का देखाव है और देसरी ओर तक्षशीला नगरी (६B) का देखाव है । अयोध्यानगरी (६०) की प्रतोली में अलग २ पालकियों में बैठी हुई क्रमशः भरत की बहिन ब्राह्मी, माता सुमंगलादि समस्त अन्तःपुर की स्त्रियों, जिनमें प्रमुखा स्त्रीरत्न सुन्दरी है का देखाव है। प्रत्येक स्त्री-प्राकृति पर उस स्त्री का नाम लिखा हुआ है। इसके पश्चात् संग्राम करने के लिये रवाना होती हुई चतुरंगिणी सैन्य का देखाव है, जिसमें पाटहस्ति विजयगिरि और उस पर बैठा हुआ वीरवेश में महामात्य मंतिसागर, सेनापति सुसेन
और.श्री भरत चक्रवर्ती श्रीदि की मूर्तियाँ सनाम खुदी हुई हैं। तत्पश्चात हाथी, घोड़े, रथ, पैदलसैन्यों का प्रदर्शन है।
अम्बिकादेवी की मूर्ति को ५ से चिह्नित किया हुआ है। .
-आबू