________________
:: प्राचीन गूर्जर-मंत्री-वंश और अर्बुदायलस्थ श्री विमलवसति ::
सदा बनी रहती है, नीचे होने से कैसा भी भयंकर भूकम्म क्यों नहीं आये, उसका उनपर कोई हानिकर. भयंकर प्रभाव नहीं पड़ पाता । यहाँ भी चिमलशाह और विमलक्सति के शिल्पियों की प्रशंसनीय विवेकला, बुद्धिमानी और दूरदर्शिता का परिचय मिलता है।
फिर भी दुश्मन के हाथों से मन्दिर पूर्णतया सुरक्षित नहीं रह सका । यवन प्रथम तो भारत्र में आक्रमणकारी ही रहे । परन्तु महमूद गौरी ने पृथ्वीराज को परास्त करके भारत का शासन छीन लिया और अपना प्रतिनिधि दिल्ली में नियुक्त कर दिया। स्थानीय शासक रहकर भी अगर कोई विधर्मी शासक अन्य धर्मों के धर्मस्थानों को तोड़े, नष्ट-भ्रष्ट करें, तो उसका तो विवशता एवं परतन्त्रता की स्थिति में उपाय ही क्या । देलवाड़े के जैन-मन्दिरों को जो स्थानीय विधर्मी शासकों ने हानि पहुँचाई, उसका यथास्थान आगे वर्णन किया जायगा।
मूलगंभारे में वि० सं० १०८८ में विमलशाह ने वर्धमानसरि द्वारा श्री आदिनाथबिंब को प्रतिष्ठित करवा कर शुभमुहूर्व में प्रतिष्ठित किया। परन्तु इस समय वह बिंब नहीं है । उसके स्थान पर वि० सं० १३७८ ज्येष्ठ कृष्णा ६ सोमवार को. माण्डव्यपुरीय संघवी सा० लाला और वीज द्वारा श्री धर्मघोषसरि के पट्टधर श्री ज्ञानचन्द्रसरि के उपड्रेन से प्रतिष्ठित अन्य पंचतीर्थी परिकर वाली श्री आदिनाथ-प्रतिमा संस्थापित है।
मूलगंभारे के बाहर सुदृढ़ चौकी है। इसमें उत्तर और दक्षिण की दिकारों में दो आलय हैं। चौकी से लगता हुआ ही गूढमण्डप है। गूढमण्डप के उत्तर और दक्षिण दिशाओं में भी द्वार हैं और चौकियाँ हैं। दोनों मोर के चौकिरने के स्कमों, स्तम्भों के ऊपर की शिला-पट्टियों में सुन्दर कलाकृतियाँ हैं । मूलगंभारे के बाहर तीनों दिशाओं में तीनों आलयों में एक-एक सपरिकर जिनप्रतिमा विराजमान हैं और प्रत्येक प्रालय के ऊपर तीन २ जिनमुर्तिक और छः २ कायोत्सर्गिक मूर्तियों की आकृतियाँ विनिर्मित हैं। इस प्रकार कुल २७ मूर्तिआकतियाँ बनी।
१-मूलगंभारे में वि० सं० १६६१ में महामहोपाध्याय श्री लब्धिसागरजी द्वारा प्रतिष्ठित श्री हीरविजयसूरि की सपरिकर प्रतिमा बाई ओर विराजमान है।
२-गृढमण्डप में प्रतिष्ठित सपरिकर प्रार्श्वनाथ भगवान् की दो कायोत्सर्मिक प्रतिमायें । प्रत्येक के परिकर में दो इन्द्र, दो भाव, ते अविकरये और चौबीमा जिनेबरों की मूर्चि-प्राकृतियाँ खुदी हुई हैं। ३-घात-मूर्तियाँ दो।
४-पंचतीर्थी परिका बाली मूर्तियाँ तीन। ५-सामान्य परिकर पाली भूर्तियाँ ४ चार । ६-परिकार हित मूर्चियाँ २१ इक्कीस : ७-संगमरमरप्रस्तुर का जिन-चौवीसी पट्ट १ एक। ८-श्रावक और श्राविकाओं की प्रतिमायें ५ पांच :
(१) गोसल (२) सुहागदेवी (३) गुणदेवी (४) मुहणसिंह (५) मीणलदेवी ह-अम्बिकाजी की प्रतिभा ? एक ।
१०-धातु-चौवीशी? एक। ११-धातु-पंचतीर्थी २ दो।
१२-धातु की छोटी प्रतिमायें २ दो। इस प्रकार गृढ-मण्डप में इस समय ३५ जिन-बिंब, २कायोत्सर्गिक-बिंब,१ चौबीसी-पट्ट, अम्बिकाप्रतिमा, २ श्रावकप्रतिमा, ३ श्राविकामूत्तियाँ हैं।
आबू भा०१पृ० ४२.