________________
]
:: प्राचीन गूर्जर मंत्री सफर ड्रेसर और दशरथ ::
[ ७६
मे उमेठ पुत्र साकार्जुन के श्रेय के लिये करवाई। नाना के कविष्ट पुत्र नागपाल से अपनी माता त्रिभुवनदेवी के तालीसवीं देवकुलिका में वि० सं० १२४५ वैशाख ० ५ गुरुवार को श्री महावीरविज श्रम खि सूरि के करकमलों से स्थापित करवाया तथा पुत्र आसवीर के श्रेयार्थ श्रीमद् देवचन्द्रसूरि के द्वारा नेमनाथशतिमा को प्रतिष्ठित करवाया ।
मंत्री लालिग का परिवार और उसके यशस्वी पौत्र हेमरथ, दशरथ
जैसा ऊपर कहा जा चुका है कि महामात्य नेढ़ का लालिंग छोटा पुत्र था । यह भी अपने far एवं ज्येष्ठ भ्राता के सदृश उदारचेत्ता, धर्मात्मा, दीनबन्धु, नीतिनिपुण और अत्यन्त रूपवान था । लालिम लालिग और उसका पुत्र का अधिकतर मन सुकृत करने में ही लगता था । लालिग का पुत्र महिंदुक भी अति महिंदुक धर्मात्मा, सत्संगी, महोपकारी एवं अनेक उत्तम गुणों की खान था । वह जिनेश्वरदेव एवं साधु-साध्वियों का परम भक्त था। महिंदुक ने अपने पापकर्मों का क्षय करने के लिये अनेक सुकृत किये और विपुल यश प्राप्त किया ।
महिंदुक के दो यशस्वी पुत्र उत्पन्न हुये । बड़ा पुत्र हेमरथ अत्यन्त विवेकवान, शान्त, अत्यन्त दयालु, निस्पृह, शरणवत्सल, सदाचारी एवं सुविचारी, उच्चकोटि का आगम - रहस्य को समझने वाला जैन श्रावक था । छोटा पुत्र दशरथ भी सर्वगुणसम्पन्न, दृढ़ जैनधर्मी, गम्भीर दानी, सद्पुरुषार्थी एवं कुलदेवी अम्बिका का परम भक्त था । उसने विमलवसति की सर्वश्रेष्ठ दशमी देवकुलिका का जीर्णोद्धार करवाया और उसमें अपने और अपने ज्येष्ठ भ्रातृ हेमरथ के श्रेयार्थ वि० सं० १२०१ ज्येष्ठ माह की [कृ० या शु०] एकम शुक्रवार को भगवान नेमिनाथ की अत्यन्त मनोहर प्रतिमा तथा एक मन्त सुन्दर मूर्त्तिषट जिसमें निमक, लहर, वीर, नेढ़, विमल, लालिंग तथा हमरथ और स्वयं दशरथ की मूर्तियाँ अंकित हैं, स्थापित करवाये । दशस्थ पथमि पहिलपुरपचन में रहता था, परन्तु अपने पूर्वजों की मातृभूमि प्रसिद्ध ऐतिहासिक नगरी श्रीमालपुर को नहीं भूला था। श्रीमालपुर नगरी के प्रति उसके हृदय में वही सम्मान था, जो एक सच्चे मातृभूमिभक्त के हृदय में होता है । इस देवकुलिका में
हेमरथ और दशरथ और उनके द्वारा दशवी देवकुलिका का जीर्णोद्धार और उसमें जिनबिंब और पूर्वजपट्ट की स्थापना
ऋ० प्रा० जे० ले० सं० भ० २ ० १५३, १६६, १४४.
० प्रा० जे० ले० सं० भा० २ ० ५१ [ बिमलवसहि की प्रसिद्ध प्रशस्ति ]
स्व० मुमिराज जयन्तविजयजी और पं० लालचन्द्र दास गांधी का यह मत है कि उक्त प्रशस्ति के द्वितीय लोक के. प्रथम चरण की आदि में 'श्रीमाल कुलोथ के स्थान पर 'श्रीमालपुरीख' चाहिए था । मुनिराज जयन्तविजपची फिर इस शंका में भी रखते प्रतीत होते हैं कि मंत्री बिक की मस्ता श्रीमाल ज्ञाति की थी और पिता पोरवाड्ज्ञाति के थे। वे कहते हैं कि माता कौ ज्ञाति के नाम से कुल और पिता की ज्ञाति के नाम से बेस के नाम पड़ते हैं। इस दृष्टि से 'श्रीमाल कुलोत्थ' का प्रयोग संगत ही प्रतीत