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खण्ड ]
:: प्राचीन गूर्जर-मन्त्री - वंश और महाबलाधिकारी दंडनायक विमल ::
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था । अद्वितीय धनुर्धर विमल की ख्याति को गुर्जरसम्राट् भीमदेव तक पहुंचने में अधिक समय नहीं लगा । सम्राट् भीमदेव ने विमल को गूर्जर - महासैन्य का महाबलाधिकारी दंडनायक नियुक्त किया ।*
गुर्जरसम्राट भीमदेव प्र० के समय में महमूद गजनवी के आक्रमणों का प्रकोप, जो उसके पिता सम्राट् दुर्लभराज के समय में उत्तर भारत में प्रारम्भ हो चुका था, अत्यन्त बढ़ गया और गूर्जर भूमि महमूद गजनवी के महमूद गजनवी और भीम- क्रमणों की भयंकरता से त्रस्त हो उठी । वि० सं० २०८२ में महमूद अजमेर को देव में प्रथम मुठभेड़ जीतकर, गूर्जर भूमि में होता हुआ सोमनाथ की विजय को बढ़ा। मार्ग में गूर्जरसम्राट् भीमदेव ने अपनी महाबलशाली सैन्य को लेकर महमूद का सामना किया, परन्तु महमूद की प्रगति को रोकने में असफल रहा। महमूद जब सोमनाथ मन्दिर पर पहुंचा, तब भी भीमदेव महागुर्जर सैन्य को लेकर सोमनाथ की
*नव यौवन नवलु संयोग, देषी देवइ वंबई भोग । कूं और कहइ परनारी नीम अणपरणिइ कुहू मानूं किम ॥७१॥ शील लगइ तूठी अम्बिका, त्रिणि वर दीधा पोतइ थेका । बांण प्रमाण गाउ ते पंचे, हय लक्षेणनां लक्ष प्रपंच ॥ ७२ ॥ नव नव रूपे निरतई निर्मला, त्रीजी अद्भुत अक्षर कला । ॥७३॥
विमल जब १३ वर्ष का था, तब आरासणनगर की अम्बिकादेवी ने उसके रूप पर मुग्ध होकर उसके शील की परीक्षा करनी चाही। अम्बिका ने एक परम रूपवती कन्या का रूप धारण किया और विमल के आगे केली-क्रीड़ा करके उसको विमोहित करने लगी । परन्तु विमल अपने ब्रह्मचर्यव्रत में अडिग रहा। अन्त में देवी ने प्रसन्न होकर विमल को तीन वरदान दिये कि वह बाणविद्या, अक्षर-कला एवं अश्वपरीक्षा में अद्वितीय होगा । उक्त किंवदन्ती से हमको मात्र इतना ही आशय लेना चाहिये कि विमल सुरबालाओं को विमोहित करने वाले अद्वितीय रूप-सौन्दर्य का धारक था। वह जैसा रूपवान था, वैसा अद्वितीय धनुर्धर एवं सफल अश्वारोही था । विमल का बाण बहुत दूर २ तक जाता था ।
अर्बु'दगिरिस्थ विमलवसति नामक जगविख्यात आदीश्वरचैत्य में दंडनायक विमल ने भारासण की खान का आरासण नामक प्रस्तर का उपयोग किया है । नारासणस्थान वहां पर अवस्थित अम्बिकादेवी के कारण अत्यन्त प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक है । प्रादीश्वरचैत्य के बनाने में श्रारासण की अम्बिकादेवी ने विमल की सहायता की थी। क्योंकि बिना किसी देवी- सहायता के ऐसा अलौकिक, अद्भुत देवों से भी दुर्विनिर्मित चैत्य कैसे बनाया जा सकता है, ऐसा उस समय के तथा पीछे के लोगों ने अनुमान किया है। अनेक देशों के महापराक्रमी राजाओं को जीतने में भी विमल को अवश्य किसी दैवीशक्ति का सहाय रहा हुआ होगा, ऐसी कल्पना करना भी उस समय के या पीछे के लोगों के लिये सहज था। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि लोगों ने पराक्रमी विमल के विषय में उसके बचपन से ही यह अनुमान लगा लिया कि आरासण की अम्बिका उसको अपने ब्रह्मचर्यव्रत में अडिग देखकर उस पर अत्यन्त प्रसन्न हुई और विमल जब तक जीवित रहा, उस पर उसकी कृपा सदा एकसी बनी रही।
एक दिवस गुर्जर सम्राट भीमदेव प्र० अपने अजेय योद्धाओं की बाणकला का अभ्यास देख रहे थे। अनेक योद्धाओं के बाण निशानें तक नहीं पहुँच रहे थे । अनेक बाण निशान के इधर उधर होकर निकल जाते थे। स्वयं सम्राट भी निशाना बँधने में असफल रहे । विमल यह सब दूर खड़ा खड़ा देख रहा था और हँस रहा था। सम्राट् ने विमलशाह को निकट बुलाया और निशाना बंधने का आदेश दिया । त्रिमल ने बात की बात में निशाना बँध दिया। इस पर सम्राट अत्यन्त प्रसन्न हुआ और यह जान कर कि विमल का बा १० मील तक जाता है और वह पत्र-बींधन, कर्णफूल- छेदन जैसे महा कठिन कलाभ्यासों में भी प्रवीण है, उसने विमल को पांच सौ अश्व और एक लक्ष रुपयों का पारितोषिक देकर महाबलाधिकारी पद से विभूषित किया ।
विमल-प्रबन्धकर्त्ता ने वि० प्र० खं० ६ के पद्य २१, २७ में पृ० १८२, १८३ पर उक्त घटना का वर्णन किया हैं । हमको उक्त घटना से केवल यह ही अर्थ लेना है कि विमल धनुर्विद्या में अद्वितीय कलावान था और उसमें साहस, निडरता, स्वाभिमान जैसे वे समस्त गुण थे, जो एक सफल सैनाधीश में होने चाहिए ।
विमल की माता का विमल को लेकर अपने पिता के घर जाकर रहना, वहाँ विमल का पशु चराना और ऐसी ही अन्य बातें लिख देना - ये सब विमल प्रबन्ध के कर्ता की केवल कविकल्पना है। जिसका वंश ही मंत्री-वंश हो और जिसका ज्येष्ठ भ्राता महामात्य हो, उसको इतना निर्धने लिख देना कितना सत्य-संगत हो सकता है - विचारणीय है ।