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:: प्राग्वाट-इतिहास::
[द्वितीय
रक्षार्थ पहुँचे । महमूद भीमदेव की इस चेष्टा से अत्यन्त कुपित हुआ । भीमदेव सोमनाथ से लौटकर खान्दादुर्ग में पहँचा और महमद से युद्ध करने की तैयारी करने लगा। महमूद भी अपने धर्मान्ध सैन्य को लेकर उक्त दुर्ग की ओर बढ़ा और उसको चारों ओर से घेर लिया। अन्त में महमद की विजय हई। परन्तु महमद के हृदय पर गूर्जरसैन्य के पराक्रम का भारी प्रभाव पड़ा और भीमदेव से सन्धि करके वह गजनी लौट गया। इन रणों में गूर्जरमहाबलाधिकारी दंडनायक विमलशाह का पराक्रम एवं शौर्य कम महत्व का नहीं रहा होगा ।१
महमूद गजनवी के सोमनाथ के आक्रमण के समय भीमदेव प्र० का राज्य मात्र कच्छ, सौराष्ट्र और सारस्वत तथा सतपुरामण्डल पर ही था । महमूद गजनवी जब गजनी लौट गया तो भीमदेव ने दंडनायक विमल२ की तत्त्वावधानता में गूर्जरसैन्य को लेकर सिंध के राजा पर आक्रमण किया और उसको परास्त किया और फिर तुरन्त सौराष्ट्र और कच्छ के माण्डलिकों को जो महमूद गजनवी के सोमनाथ-आक्रमण का लाभ उठाकर स्वतन्त्र हो चुके थे, परास्त कर डाला और उनके राज्यों को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया। इससे भीमदेव प्र० का राज्य और सम्पत्ति अतुल बढ़ गई। महाबलाधिकारी दंडनायक विमल ने इन रणों में भारी पराक्रम प्रदर्शित किया । जिसके फलस्वरूप उसको अपार धनराशि भेंट तथा पारितोषिक रूप में प्राप्त हुई। इस प्रकार भीमदेव प्र. के लिये यह कहा जा सकता है कि महमूद गजनवी के आक्रमणों से उसको अर्थ-हानि होने के स्थान में लाभ ही पहुंचा और इसका अधिक श्रेय उसके योग्य मन्त्रियों को है जिनमें महामात्य नेढ़ और दंडनायक विमल भी है।
दंडनायक विमल की बढ़ती हुई ख्याति, शक्ति एवं समृद्धि को प्रतिस्पर्धी मन्त्रीगण एवं अन्य राजमानीता व्यक्ति सहन नहीं कर सके । भीमदेव प्र० को उन लोगों ने विमलशाह के विरुद्ध बहकाना, भड़काना प्रारम्भ किया । अन्त में विमलशाह को पता हो गया कि भीमदेव के हृदय में उसके प्रति डाह उत्पन्न हो गई है और पत्तन में अब
१-भारतवर्व में आज तक लिखे गये प्राचीन, अर्वाचीन समस्त इतिहास केवल मात्र राजपुत्रों, राजाओं एवं सम्राटों तथा उनके परिजनों के इतिहास मात्र रहे हैं। अन्य वर्ण, वर्ग, ज्ञाति, गोत्रों के महापराक्रमी पुरुषों का वर्णन इनमें आज तक किसी ने नहीं किया है। अतः अगर गुर्जरमहाबलाधिकारी दण्डनायक विमल की वीरता का वर्णन हमको उक्त इतिहासों में तथा ऐसे अन्य ऐतिहासिक ग्रंथों में नहीं मिलता है तो कोई आश्चर्य की बात नहीं। महाबलाधिकारी-पद से ही हम सहज समझ सकते हैं कि उक्त पद का अधिकारी कोई अद्वितीय रण निपुण, महापराक्रमी अजेय योद्धा ही हो सकता है और वह किसी भी प्रबल शत्रु के द्वारा किये गये आक्रमण को विफल करने के लिये किसी भी यत्न में अनुपस्थित नहीं रह सकता है । विमल के पराक्रम की पुष्टि एक इस घटना से भी हो जाती है कि विमलशाह ने रोमनगर में बारह सुलतानों को एक साथ परास्त किया था। इस घटना का वर्णन प्रसंगवश आगे किया जायगा।
M. I. by Ishwariprasad P. 102-107 २-येन सिंधुधराधीश संग्रामे दारुणे पुनः । व्यधायि वीररत्नेन, सहारयं निजभूभुजः ॥१५॥
व० च० प्र०८ (i) In 1025 A.C...............Bhim was just a vassal king ruling over Sarasvata and Satyapura Mandalas, and Kachha and parts of Saurastra, V. P. 135.
Bhim was one of the leaders of the pursuing army and obtained a victory over the king of Sind. VI. P. 141.
: His dominions had grown rich in money and architecture, for, it was in 1030 A.C. that his minister Vimala built the world famous temples at Abu. V. P. 136
- G. G. Part III.