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खण्ड ]
:: प्राचीन गूर्जर-मन्त्री-वंश और महाबलाधिकारी दंडनायक विमल ::
अधिक ठहरना संकटविहीन नहीं है। दंडनायक विमल चाहता तो उपद्रव खड़ा कर सकता था, जिसको शान्त करना भीमदेव के लिये सरल नहीं था और भीमदेव को भारी मूल्य चुकाना पड़ता, परन्तु धर्मव्रती एवं स्वामिभक्त विमल के लिये ऐसा सोचना भी तुच्छता थी। वह तुरन्त अपने चुने हुये योद्धाओं, पैदलों तथा सहस्रों घोड़ों और सुवर्ण और चाँदी, रत्न, जवाहरातों से भरे ऊँटों को लेकर पत्तन छोड़कर चल निकला ।* उस समय चन्द्रावती का राजा धंधुक भीमदेव की आज्ञाओं की अवहेलना कर रहा था तथा स्वतन्त्र होने का प्रयत्न कर रहा था । विमल अपना विशाल सैन्य लेकर चन्द्रावती की ओर ही चल पड़ा। चन्द्रावतीनरेश धंधुक ने जब सुना कि दंडनायक विमल मालवण तक आ पहुंचा है और चन्द्रावती पर आक्रमण करने के लिये भारी सैन्य के साथ बढ़ा चला आ रहा है, वह चन्द्रावती छोड़कर सपरिवार भाग निकला और मालवपति सम्राट भोज की शरण में जा पहुंचा । बिना युद्ध किये ही विमल को चन्द्रावती का राज्य प्राप्त हो गया। विमल जैसा पराक्रमी, शूरवीर था, वैसा ही स्वामिभक्त था। वह चाहता तो आप चन्द्रावती का स्वतन्त्र शासक बन सकता था, लेकिन ऐसा करना उसने अपने कुल में कलंक लगाना समझा। तुरन्त उसने चन्द्रावती राज्य में महाराजा भीमदेव प्रथम की -
Bhim no doubt emerged stronger through his conflict with Mahmud. In 1026 A. C. he had added Saurastra and Kachha to his dominions. Vimala, the son of Mahatma Vira, was as great minister as a military chief. V. P. 142
G. G. Part III. *भीमदेव प्रथम और दंडनायक विमल में अन्तर कैसे बढ़ता गया का वर्णन वि० प्र० सं० ६,७ में निम्न प्रकार दिया है और उससे पाठकों को केवल इतना ही तात्पर्य ग्रहण करना है कि विमल की उन्नति उसके दुश्मनों को सहन नहीं हो सकी और अन्त में विमल को पत्तन छोड़ कर जाना उचित लगा।
१-विमल के शत्रुओं ने राजा को बहकाया कि विमल आपको नमस्कार नहीं करता है, वरन् वह जब आपके समक्ष झुकता है, उस समय वह अपने दाये हाथ की अंगुलिका की अंगुठी में रही हुई जिनेश्वरदेव की चित्रमूर्ति को ही नमस्कार करता है । भीमदेव प्र० ने जांच की तो बात सत्य थी कि विमल दाँये हाथ को आगे करके ही प्रणाम करता है।
२-शत्रओं ने राजा भीमदेव प्र०को बहकाया कि विमल के घर इतनी धन-समृद्धि है कि उतनी किसी राजा के घर नहीं होगी। भीमदेव प्र० कारण निकालकर एक दिवस दंडनायक विमल के घर प्राहुत हुआ और विमल के वैभव को देख कर दंग रह गया
और भय खाने लगा कि विमल मेरा एक दिवस राज्य छीन ही लेगा; अतः उसको किसी युक्ति से मरवा डालना चाहिये । परन्तु यह काम . सरल नहीं था।
३-विमल के शत्रओं से मंत्रणा करके राजा भीमदेव प्र० ने नगर में एक भयंकर सिंह को पिंजरे में से छुड़वा दिया। यह सिंह नगर में उत्पात मचाने लगा। नगरजन स्त्री-पुरुष, बाल-बच्चे सर्व भयभीत होकर अपने २ घरों में घुस बैठे । भीमदेव प्र० ने राज्य-सभा में विमल की ओर देख कर कहा, "विमलशाह! कोई वीर है जो इस सिंह को जीवित पकड़ लावे ।" इतना सुनना था कि दंडनायक विमल उठा और सिंह के पीछे दौड़ा और सिंह को पकड़ कर राज-सभा में ला उपस्थित किया। विमल के शत्रओं के तेज ढीले. पड़ गये।
४-विमल के शत्रुओं ने विमल के लिये भीमदेव प्र० के एक महाबली मल्ल से भिड़ने का षड़यंत्र रचा । परन्तु विमल उसमें भी सफल हुआ और मल्ल विमल से परास्त हुआ।
५-विमल के शत्रों ने जब देखा कि उनके सारे यत्न निष्फल जा रहे हैं, तब अन्त में उन्होंने राजा भीमदेव को यह सम्मति दी कि वे विमल से छप्पनकोटि का कर्ज जो उसके पूर्वजों में राज्य-कोष का शेष निकलता है चुकाने को कहे। विमल जब निधन हो जावेगा, तब उसका यश, मान एवं पराक्रम अपने आप कम पड़ जावेगा। विमल ने जब यह सुना तब वह समझ गया कि राजा को मुझसे ईर्ष्या, उसन होने लग गयी है, अतः अब यहाँ रहना उचित नहीं है, ऐसा सोच कर वह पत्तन छोड़ कर चन्द्रावती की ओर चला गया।