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::.प्राग्वाट-इतिहास::
[द्वितीय
भान प्रबर्ता दी और महाराजा भीमदेव के पास पत्तन में यह शुभ समाचार अपने दूत द्वारा भिजवा दिया। महाराजा भीमदेव विमल की स्वामिभक्ति पर अत्यन्त ही मुग्ध हुआ और उसने अपने मन्त्रियों को बहुमूल्य उपहारों के साथ चन्द्रावती भेजा और चन्द्रावती-राज्य का शासक दंडनायक विमल को ही बना दिया ।१ दंडनायक विमल तो धर्मव्रती श्रावक था, वह किसी अन्य के धन, राज्य का उपभोक्ता कैसे बनता । चन्द्रावती-नरेश धंधुक को, जो मालवपति भोज की शरण में था बुलाकर और समझा-बुझाकर उसे पुनः महाराजा भीमदेव की आधीनता स्वीकार करवाने और चन्द्रावती का राज्य उसको पुनः सौंप देने का विचार रखता हुआ दंडनायक विमल महाराजा भीमदेव के प्रतिनिधि के अधिकार से चन्द्रावती के राज्य पर शासन करने लगा। नाडोल के राजा ने विमलशाह को स्वर्णसिंहासन अर्पण किया और जालोर, शाकंभरी के राजाओं ने भी अमूल्य मेंटें भेजकर विमलशाह की प्रसन्नता प्राप्त की। विमल यवनों का कट्टर शत्रु था। महमूद गजनवी के यद्यपि आक्रमण अब बन्द हो गये थे। फिर भी उसकी कुछ फौजें, जो हिन्दुस्तान में रह रही थीं, उत्पात करती थीं और लोगों को हैरान करती थीं।२ १-अह भीमएव नरवइवयोण गहीयसयलरिउविहवो। चड्डावल्लीविसयं स पहुवलद्धं ति भुजंतो ।'
___D.C. M. P. (G. O. V. LXX. VI) P. 254. (चन्द्रप्रभस्वामी-चरित्र) He (Vimala) is credited with having quelled a rebellion of Dhandhuka, the Paramara king of Candravati near Abu.
___G. G. Part III VI. P. 152. 'जै मन्दिरि सामहणी करी, साढ़ि सोलसिई सोविन भरी। पक्खरि पंचसया असवार, बीजा पंच सहस तोषार ॥१४॥ पायक सहस मिल्या दस सार, अवर अनेरा वर्ण अढ़ार । पोताना गज सथिई लीध, बीजा तुरी अडाणी कीद्ध ॥१५॥'
-वि० प्र० ख०७ पृ०२१२ 'चन्द्रावती को प्राकृत में चड्डावली कहते हैं। 'चड्डावलीविसयं स पहुवलद्धं ति मुँजंतो।'
D.C.M. P. (G.O. V. LXXVI.) P.254 (चन्द्रप्रभस्वामी-चरित्र) चन्द्रावती-प्रदेश को अर्बुदप्रदेश, अष्टादशशत (ती) मंडल-अष्टादशशतग्राम-मण्डल भी कहते हैं। जिसका अर्थ यह है कि चन्द्रावती-राज्य में १८०० ग्राम, नगर थे।
चन्द्रावती सम्बन्धी न्यूनाधिक वर्णन, परिचय हरिभद्रसरिकृत चन्द्रप्रभस्वामि-चरित्र के अन्त में दी गई विमल-प्रशस्ति में, विमल-चरित्र में, हेमद्वयाश्रय में, विनयचन्द्रसूरिकृत काव्य-शिक्षा में, प्रभाचन्द्ररिकृत प्रभावक-चरित्र में विमलवसति के तथा लणिगवसति के अनेक लेखों में तथा अन्य अनेक ग्रंथों में मिलता है। ...
अन्य प्राचीन ग्रंथ एवं पन्द्रहवीं शताब्दी के अन्त में रची गयी तीर्थमाला के आधार पर यह कहा जा सकता है कि चन्द्रावती अत्यन्त विशाल एवं समृद्ध नगरी थी। इस में ८४ चौटा थे, महा विशाल एवं भोयरावाले अट्ठारह जिन मन्दिर थे। 'बम्बई सरकार की भोर से वि० सं०१८८७ में प्रकाशित 'गुजरातसर्वसंग्रह' के आधार पर जाना जाता है कि चन्द्रावती अर्बुदाचल से १२ माईल के अन्तर पर वसी हुई थी। पांचवी शताब्दी से लगाकर १५वी शताब्दी तक यह अत्यन्त समृद्धिशाली नगरी रही है। पन्द्रहवीं शताब्दी में सुल्तान अहमदशाह ने चन्द्रावती के भव्य एवं विशाल. भवनों को तोड़ कर, प्राप्त सामग्री का उपयोग अहमदाबाद को रमणीक नगर बनाने में किया था । यह परमार राजाओं की राजधानी रही है । व्यापार, धन, समृद्धि, रमणीकता आदि अनेक बातों से यह अति प्रसिद्ध नगरी थी।
.. -वि० प्र० ख० ७. २-रोमनगर के युद्ध की घटना को इतिहासकार एक दम सच्ची नहीं मानते हैं । इसका एक ही कारण यह है कि रोमनगर नाम तो पाश्चात्यशैली का नाम है और इस नाम का नगर अभी तक सुनने में भी नहीं आया है। दूसरा कारण यह है कि जब यवनों का राज्य १२वीं शताब्दी में जमने लगा था, उसके बहुत पूर्व ११वीं शताब्दी में हिन्दुस्तान में यवनसुल्तानों का होना और वह एक नहीं बारह