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:: प्राचीन गूर्जर-मंत्री-चंश और महामात्य महात्मा वीर ::
चावड़ावंशीय सम्राट् गूर्जर-साम्राज्य को जमाने में सफल हो सके। लहर ने क्रमशः पाँच गूर्जर सम्राटों की सेवायें की। निन्नक और लहर की सेवाओं का गूर्जरभूमि एवं गूर्जर-सम्राटों पर अद्वितीय प्रभाव पड़ा और परिणाम यह हुआ कि निन्नक के वंशज उत्तरोत्तर गूर्जर सम्राट् कुमारपाल के शासनकाल तक अमात्य तथा दंडनायक जैसे महोत्तरदायी पदों पर लगातार आरूढ़ होते रहे।
दंडनायक लहर का वीर नामक पुत्र था। लहर के समय में ही वह योग्य पद पर आरूढ़ हो चुका था। अपने पिता के समान ही वीर भी शूरवीर, नीतिज्ञ एवं दीर्घायु हुआ । इसने चालूक्यवंशीय प्रथम गूर्जर-सम्राट दंडनायक विमल के पिता मूलराज से लेकर उसके पश्चात् गूर्जरभूमि के राज्यसिंहासन पर आरूढ़ होने वाले सम्राट महात्मा वीर
चामुण्डराज, वल्लभराज एवं दुर्लभराज की दीर्घकाल तक सेवायें की।
और देखिये! गुजरेश्वर सम्राट कुमारपाल के महामात्य पृथ्वीपाल के अर्बुदगिरिस्थ विमलवसतिगत वि०सं०१२०४ के लेख से भी बौर मंत्री लहर का पुत्र था और लहर निनक का पुत्र था सिद्ध होता है।
पृथ्वीपाल और दशरथ में से एक या दोनों ने अपने क्रमशः पितामह धवल और लालिग को देखा होगा और धवल और लालिग में से एक या दोनों ने अपने दीर्घायु पितामह वीर को देखा होगा और वीर के मुंह से उन्होंने निचक और लहर को कीर्तिकथानों का कभी वर्णन सुना ही होगा और अपने पौत्र पृथीपाल और दशरथ को उनकी कौर्तिकथायें कभी कही ही होंगी। भाज भी अगर हम किसी प्रौढ़ समझदार व्यक्ति से उसके कुछ पूर्वजों के नाम पीढ़ीकम से पूछना चाहें तो शायद ही कोई व्यक्ति मिलेगा जो क्रमशः अपने ४-५ पीढियों में हुये परंपरित पूर्वजों के नाम नहीं बता सकता हो। यह बात केवल साधारण श्रेणी के पुरुषों के लिये है। असाधारण प्रतिभासम्पन पुरुषवरों के लिये क्रमशः अपने असाधारण पराक्रमी ५-६ पीढियों में उत्पन हुये पूर्वजों के नाम जानना कोई जाचर्य की बात नहीं। इतना अवश्य मानना पड़ेगा और सिद्ध भी हो जाता है कि दीर्घायु लहर निनक का अन्तिम पुत्र था और लहर का वीर अन्तिम पुत्र, जिसका जन्म लहर की सौ वर्ष की आयु पश्चात् हुना होगा । इस विषमकाल में आज भी कोई न कोई ऐसे दीर्घायु पुरुष मिल ही जावेंगे, जिनकी आयु १५० वर्ष के लगभग होगी। अतः मुनिराज साहब जयंतविजयजीका अपनी 'अ० प्रा० ० ले० संदोह' के अवलोकन भाग पृ० २७१ की चरणपंक्तियों में यह लिखना कि 'मै० वीर लहर नो खाश पुत्र नहीं, पण तेमना वंश मा अमुक पेढीये उत्पच थयैल मानी शकाय'-इतने प्राचीन लेख, प्रशस्ति श्रादि की विद्यमानता पर केवल कल्पना प्रतीत होती है। इतिहासकारों के निकट अर्वाचीन कल्पनाओं की अपेक्षा प्राचीन शिलालेख एवं प्रशस्तियों का मूल्य अधिक है।
विमल-प्रबन्ध के कर्ता ने लिखा है 'नीन मंत्रि गांभू जाणीउ, बेटा लहिर सहित भाणीउ। यह लिखना कि निबक जब महामात्यपद पर आरूढ़ हुभा था, लहर उत्पन्न हो चुका था-अमान्य है। विमलप्रवन्ध के कर्ता का उद्देश्य केवल चरित्रनायक की कीर्चि ग्रंथित करने का था; अतः अगर ऐतिहासिक तत्त्वों की ऐसे प्रसङ्गों पर अवहेलना हो जाती है तो सम्भाव्य है।
वगततुरयघट्टस्स विझगिरिसंनिवेसपत्तस्स । समग्गगहियकुंजरघडस्स तह निययपुरसमुह ॥ श्रागमिरस्स रिजहिं तग्गयगहणूसुएहिं सह समरे । जस्सेह विझवासिणीदेवी धणुहम्मि अवाना ॥ ता पत्तसत्तविजएण तेण सा विझवासिणीदेवी। पणयजणपूरियासा ठविया रू (सं) डत्थलग्गामे ॥ मह लच्छि-सरस्सईओ सद्धम्मगुणाणुरंजियाओ च । जस्सुझियईसाउ मुचंति न संनिहाणं पि॥ तह सिरिवलो बद्धो वित्तपड़ो जेण टकसालाए । संठविभो लच्छी उण निवेसिया सयलमुद्दासु ।।
D.C. M. P.(G.O. V. LXXVI.) P. 254. (चन्द्रप्रमस्वामी-चरित्र) लंणइ लहिर लहिर पापणी, वेगि गयु बंध्याचल भणी । 'गरथ बडई गज घट ल्यावीउ', तु राजा सम्मुख मानीउ ॥४४॥
वि० प्र० ख०३ पृ०१०० चिह्नित पंक्ति का अर्थ लालचन्द्र भगवानदास यह करते हैं कि 'गरथ वड़े गज घटा लाव्या' परन्तु, अर्थ यह है कि 'गज घटा रूपी बृहद् द्रव्य को लाया' । उक्त प्रकार विमल-प्रबन्ध के कर्ता विद्याचल के संनिवेश में से हाथियों के लाने की घटना का ही वर्णन करते है।