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::राजमान्य महामन्त्री सामन्त ::
साघुशाखा के नाम से पुकारा जाने लगा और अन्य पक्ष में कन्या-व्यवहार नहीं करने वाले अधिक संख्या में होने के कारण उनका पक्ष समाज में सर्वत्र ही वहद्शाखा के नाम से कहा जाने लगा। दोनों में फिर मेल किये जाने के या तो प्रयत्न ही नहीं किये गये और या ऐसे किये गये प्रयत्न निष्फल ही रहे । कटुता बढ़ती ही गई और वृहद्शाखावाले और लघुशाखावाले अपने २ पक्ष की प्रसिद्धि करने के लिये तथा प्रचार करने की भावनाओं से अपनी २ शाखा के नाम लिखने लग गये । वस्तुपाल द्वारा दिये गये किसी भोज में झगड़े पर लघुशाखा के कुल वस्तुपाल के पक्ष में रहे हों और बृहद्शाखा में से भी अनेक नवीन कुल वस्तुपाल के पक्ष में रहे हों, जो अनेक ग्राम और नगरों के थे और इस प्रकार वह ही झगड़ा दोनों पक्षों को स्पष्टतः प्रकट और दूर २ तक तथा सर्वत्र जैनसमाज में और अन्य समाजों में भी धीरे २ प्रसिद्ध करने वाला हुआ हो । महान् व्यक्तियों के पीछे पड़ने वाले झगड़े भी तो महान् प्रभावक, लम्बे और विस्तृत एवं दृढ़ होते हैं, जो समस्त समाज को अनिश्चित काल के लिये या सदा के लिये समाक्रांत कर लेते हैं। अब पाठक समझ गये होंगे कि लघुशाखा और बृहशाखा जैसे पक्षों का जन्म तो जैनसमाज में अपने २ वर्ग का स्वतन्त्र अस्तित्व स्थापित करने की फूटवाली भावनाओं के साथ ही मंत्रीमाताओं के जन्म से कई वर्षों पूर्व ही हो चुका था और वे बनती भी जा रही थीं। वस्तुपाल द्वारा दिये गये किसी महान् संघ-भोजन पर उन दोनों शाखाओं में दृढ़ता आई और वे सदा के लिये अपना अलग अस्तित्व स्थापित करके विश्रान्त हुई—मेरा ऐसा मत है। बाद में लघुशाखा के कुलों में भी कन्या-व्यवहार अपने २ वर्ग के कुलों में ही सीमित हो गया।
राजमान्य महामन्त्री सामन्त
वि० सं० ८२१
यह विक्रम की नवीं शताब्दी के प्रारंभ में हुआ है । यह बड़ा ही धनी एवं जिनेश्वरदेव का परम भक्त श्रावक था। इसने भगवान् महावीर के उनत्तीसवें (२६) पट्टनायक श्रीमद् जयानंदसुरि के सदुपदेश से ६०० नव सौ जिन मन्दिरों का जीर्णोद्धार अनंत द्रव्य व्यय करके करवाया था तथा सिद्धान्तों को सुरक्षित रखने की दृष्टि से भंडारों की स्थापना की थीं।
सिरोही राज्यान्तर्गत (राजस्थान ) हम्मीरगढ़ नामक एक छोटा सा ग्राम है। यह दो सहस्र वर्ष से भी प्राचीन ग्राम है । उस समय इसका प्राचीन नाम दूसरा था। सम्राट् संप्रति का बनवाया हुआ यहाँ एक मन्दिर विद्यमान है, जिसका मंत्री सामंत ने उक्त प्राचार्य के उपदेश से वि० सं०८२१ में जीर्णोद्धार करवाया था।२
१-त. पट्टा पृ०६६. . . . २-हम्मीरगढ़ पृ० २१.