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* प्रथम सर्ग शरीके लिये धर्मका ही एकमात्र सहारा है। अगर गवई गांवके गँवारोंने धर्मको नहीं पहचाना, तो क्या इससे उसका महात्म्य कम हो गया? अगर दाखको देखकर ऊँट मुंह फेर ले, तो क्या इससे दाखकी मिठास कम हो जायेगी? वस्तुतः धर्म ही एक सच्चा मित्र है।” ___ यह सुन उस अधम सजनने फिर कहा,-"कुमार! तुम भी बड़े हठी हो। तुम्हारी वही हाल है, जैसा उस गाँवके छोकरेका था, जिसकी माँने उसे सिखलाया था कि बेटा! जिस चीज़को पकड़ना, उसे फिर छोड़ना नहीं । एक दिन उसने एक बड़े बलवान साँड़की पूंछ पकड़ी। साँड़ने उसे कितना हैरान किया तो भी उसने उसकी पूँछ नहीं छोड़ो। लोगोंने बारम्बार कहा कि पूँछ छोड़ दे, पर उसने नहीं छोड़ी। वैसा ही हठ तुम्हारा भी है। खैर, एक गाँवके लोगोंने वैसा कह दिया, तो क्या हुआ ? अबके दूसरे गाँवके लोगोंसे चलकर पूछा जाये, कि वे क्या कहते हैं। पर इस बार कौनसी शर्त रहेगी? अबके यह शर्त रखी जाये कि यदि दूसरे गाँववाले भी ऐसा ही कह दं, तो मैं तुम्हारी दोनों आँखें निकाल लूँगा।" ... कुमारने यह बात भी निसङ्कोच स्वीकार कर ली। दोनोंने दूसरे गांवमें जाकर वहाँके लोगोंसे भी वही सवाल किया। होनहारकी बात, इन लोगोंने भी वही राय दी। अबके उस गाँवसे बाहर निकलते ही उस नौकरने कहा, "धर्म परायणजी! सत्यवादीजी महाराज! अब कहिये, क्या कीजियेगा?"