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* पार्श्वनाथ-चरित्र * कहा,--"अरे दुष्ट ! तेरा सजन नाम बिलकुल व्यर्थ है। तू केवल दुष्ट बुद्धि सिखलाता है, इसलिये तू व्याधसे भी बुरा है।"
व्याधकी कथा। किसी वनमें एक व्याध–शिकारी एक हरिणीपर निशाना किये कानतक बाण खींचे हुए उसे मारने दौड़ा। उसे देख मृगीने कहा,- "हे व्याध! थोड़ी देर ठहर जाओ। मैं अपने भूखे प्यासे बच्चोंको, जो मेरी राह देख रहे होंगे, दूध पिलाकर तुरत तुम्हारे पास चली आऊँगी। यदि न आऊ, तो मुझे ब्रह्महत्या आदि पाँच महापातक लगें।” यह सुन व्याधने कहा,"इस शपथका मुझे विश्वास नहीं।" मृगी फिर बोली,“हे व्याध! यदि मैं न लौटूं, तो मुझे वही पाप लगे, जो विश्वाससे कोई बात पूछने वालेको दुष्ट बुद्धि देनेवालेको लगता है।" यह सुन उस व्याधने मृगीको छोड़ दिया और वह भी अपने बच्चोंको दूध पिलाकर लौट आयी और व्याधसे पूछने लगी,–“हे भाई ! मैं किस तरह तुम्हारी मारसे बच सकती हूँ ?" यह सुन उस व्याधने सोचा,-"जब पशु भी दुष्ट बुद्धि देते हुए डरते हैं, तब मैं क्योंकर इसे झूठी बात बतलाऊँ ?” यही सोचकर उसने कहा,-“यदि तुम मेरी दाहिनी तरफसे निकल जाओ, मैं तुम्हें छोड़ दूंगा।” उस मृगीने ऐसा ही किया और उसकी जान बच गयी । इसलिये विपत्तिमें पड़ने पर भी सन्तजन कभी पापके पास नहीं फटकते। हँस भूखे मर जायेगा; पर कभी कुत्ते की तरह कीड़े-मकोड़ोंको नहीं खायेगा। गुण रहित और क्षण भंगुर