________________
नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-उदार शब्द | ३५ हिन्दी टीका-उदार शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं. १. दाता (दानशील, देने वाला) २. महान और ३. दक्षिण (सरल सीधा स्वभाव वाला) इस तरह उदार शब्द के ३ अथ जानना उदास्थित शब्द भी पुल्लिग है और उसके ४ अर्थ होते हैं १. नष्ट संन्यास (उदासीन) २. द्वारपाल (द्वार पर रहने वाला सेवक ३. अध्यक्ष (मालिक) और ४. गढ पुरुष (गुप्तचर-सी. आई.डी.)। इस तरह उदास्थित शब्द के चार अर्थ समझना चाहिए । इसी प्रकार उद्गार शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं १. कण्ठगजन (डकारना) २ शब्द (आवाज)। इसी प्रकार उद्ग्राह शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी दो अर्थ होते हैं १. उद्धन (उल्टो-करना) और २. विद्याविचारण (विद्या सम्बन्धी विचार चर्चा)। इस तरह उद्गार शब्द के २ और उद्ग्राह शब्द के भी दो अर्थ हुये। मूल : उद्घाटनं घटीयन्त्र उत्तोलन - विकासयोः ।
उद्घातो मुद्गरे तुङ्गारम्भयोः समुपक्रमे ॥१८२॥ शास्त्रे ग्रन्थपरिच्छेदे चरणस्खलने पुमान् ।
उद्दानं वाडवे चुल्ल्यां बंधने मध्यलग्नयोः ॥१८३॥ हिन्दी टीका-उद्घाटन शब्द नपुंसक है उसके तीन अर्थ होते हैं-१. घटी यन्त्र (कंए से पानी निकालने का साधन-रेहट) २. उत्तोलन तोलना) ओर ३. विकास (उद्योग प्रगति वगैरह)। उद्घात शब्द पुल्लिग है और उसके सात अर्थ होते हैं-१. मुद्गर २. तुंग (ऊँचा) ३. आरम्भ ४. समुपक्रम (तैयारी) ५. शास्त्र ६. ग्रन्थ परिच्छेद (पुस्तक का एक-एक भाग) और ७ चरण स्खलन (गिरना-पांव का फिसलना)। उद्दान शब्द नपुंसक है और उसके पांच अर्थ होते हैं --१. वाडव (घोड़ा) २. चुल्ली (चूल्हा-सिगड़ी) ३. बन्धन (बाँधना) ४. मध्य (कमर) और ५. लग्न (सम्बद्ध-बन्धा हुआ)। इस प्रकार उद्घाटन शब्द के तीन, उद्घात शब्द के सात एवं उद्दान शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए। मूल : उद्दामो वरुणे पुंसि स्वतन्त्रे महतित्रिषु ।
उद्धवो, यज्ञवह्नौ स्यादुत्सवे यादवान्तरे ॥१८४॥ हिन्दी टीका-पुल्लिग उद्दाम शब्द का वरुण अर्थ होता है और त्रिलिंग उद्दाम शब्द के दो अर्थ होते हैं--१. स्वतन्त्र (अ-पराधीन, पराधीन नहीं, स्वाधीन) और २. महान् (विशाल)। इस प्रकार उद्दाम शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये। उद्धव शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं१. यज्ञवह्नि (याग की आग विशेष-आह्वनीय अग्नि वगैरह) २. उत्सव (महोत्सव) और ३. यादवान्तर (यादव विशेष-भगवान कृष्ण के चाचा उद्धव)। इस तरह उद्धव शब्द के तीन अर्थ समझना चाहिये । मूल : उद्भटः कच्छपे सूर्ये महेच्छे प्रवरे त्रिषु ।
उद्यान - क्लीवमाक्रीडे निर्गमे च प्रयोजने ॥१८५।। उद्रस्तु जलमार्जारेऽथोद्रेकौ वृद्धयुपक्रमौ ।
उद्वर्तनं स्याद्विलेपे घर्षणोत्पातयोः ॥१८६॥ हिन्दी टीका-उद्भट शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. कच्छप (काचवाकछुआ) २. सूर्य और ३. महेच्छा (महत्वाकांक्षा) किन्तु १. प्रवर (श्रेष्ठ) अर्थ में उद्भट शब्द त्रिलिंग माना जाता है। उद्यान शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. आक्क्रीड (बगीचा-फुलवाड़ी)
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org