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१३६ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-तमाल शब्द
हिन्दी टोका-तमाल शब्द के सात अर्थ होते हैं - १. तिलक (तिलक नाम का वृक्ष विशेष) २. खड्ग (तलवार) ३. तापिच्छ (तमाल वृक्ष) ४. वरुणदु म (वरुण नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) ५. वंशत्वक् (वांस की त्वचा-छिलका) एवं ६. कृष्णखदिर (काला कत्था) ७. वृक्षभेद (वृक्षविशेष) को भी तमालशब्द से व्यवहार किया जाता है। किन्तु १. कृष्ण खदिर, २. तिलक ३. वरुणद्र म, ४. वंशत्वक्, ५. कालस्कन्ध और ६. निस्त्रिश, इन ६ अर्थों में तमालशब्द पुल्लिग और नपुंसक माना जाता है स्त्रीलिंग नहीं माना जाता। मूल : तमिस्र तिमिरे क्रोधे तमिस्रा तु तमस्ततौ ।
दशरात्रौ तमोयुक्तरात्रिमात्रोऽपि कीर्तिता ।। ७४१ ॥ तमी रात्रौ हरिद्रायां तमोघ्नः सूर्य-चन्द्रयोः ।
नारायणे महादेवे बुद्धदेवे धनञ्जये ॥ ७४२ ।। हिन्दी टोका--तमिस्र शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. तिमिर-अन्धकार और २. क्रोध । तमिस्रा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तोन अर्थ माने जाते हैं-१. तमस्तति (घोर अन्धकार) २. दर्शरात्रि (अमावास्या) और ३. तमोयुक्त रात्रिमात्र (अन्धकार से युक्त रात्रि मात्र) को भी तमिस्रा कहते हैं । तमी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. रात्रि (रात) और २. हरिद्रा (हलदी)। तमोघ्न शब्द पुल्लिग है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. सूर्य, २. चन्द्र, ३. नारायण, ४. महादेव और ५. बुद्धदेव (भगवान बुद्ध) इस तरह तमोघ्न शब्द के पाँच अर्थ जानना।
तमोनुद भास्करे चन्द्रे दीपे वैश्वानरे पुमान् । तरोऽदन्तः पुमान् वृक्षे तरुणे जातवेदसि ॥ ७४३ ॥ तरः सान्तं बले कूले वेग-प्लवगयोरपि ।
तरङ्गो वसनेऽश्वादि-समुत्फाले जलोमिषु ॥ ७४४ ॥ हिन्दी टीका-तमोनुत् शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं--१. भास्कर (सूर्य), २. चन्द्र, ३. दीप, ४. वैश्वानर (अग्नि, आग)। अदन्तर शब्द पुल्लिग माना जाता है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वृक्ष २. तरुण, (जवान) और ३. जातवेदस् (अग्नि) । सकारान्त तरस् शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं.-१. बल, २. कूल (तट), ३. वेग, और ४. प्लवग (वानर)। तरङ्ग शब्द पुल्लिग हैं और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. वसन (वस्त्र कपड़ा) २. अश्वादि समुत्फाल (घोड़ा वगैरह का छलांग-कूदना) और ३. जलोमि (जल की लहर)। मूल : तरणं पारगमने द्रुतप्लुतगतावपि ।
तरणिः किरणे सूर्ये भेलकेऽर्कमहीरुहे ॥ ७४५ ॥ तरणी पद्मचारिण्यां कुमारी-नौकयोः स्त्रियाम् ।
तरण्डोऽस्त्री प्लवेकुम्भतुम्बी रम्भादिसंचरे ॥ ७४६ ।। हिन्दी टीका-तरण शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. पारगमन (नदी तालाब वगैरह को तैरकर पार करना) और २. द्र तप्लुतगति (अत्यन्त वेग से कूदना) । तरणि शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. किरण, २. सूर्य, ३. भेलक और ४. अर्कमहीरुह (आंक का वृक्ष)। स्त्रीलिंग-तरणी शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१.पद्मचारिणी (स्थल कमलिनी) और २. कुमारी
मूल:
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