Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 409
________________ ३६० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित-क्षवणु शब्द पांच अर्थ माने जाते हैं-१. लय, २. गृह, ३. कास रोग (कास श्वास दमा) और ४. अपचय (ह्रास) तथा ५. वर्ग । नपुंसक क्षर शब्द को अर्थ १. जल होता है और पुल्लिग क्षर शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. मेघ और २. नश्वर वस्तु (विनाशी पदार्थ) पुल्लिग क्षव शब्द के तीन अर्थ होते हैं-१. क्षुधाभिजनन (भूख लगना) २.क्षत (छींक) और ३. कास (कास श्वास दमा रोग) को भी क्षव कहते हैं इस प्रकार क्षव शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये । मूल : कण्ठकण्डूयने कासे क्षुतेऽपि क्षवथुः पुमान् । क्षारः स्यात् टङ्कणे धूर्ते गुडे काचे च भस्मनि ॥२२७६॥ लवणे सजिका क्षारे रसभेदेऽप्यसौ पुमान् । क्लीवं विड्लवणे तद्वद् यवक्षारेऽपि कीर्तितम् ॥२२७७॥ हिन्दी टोका-क्षवथु शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ बतलाये गये हैं—१. कण्ठकण्डूयन (गला को खुजलाना) २. कास (दमा) और ३. क्षुत (छींक)। क्षार शब्द पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ माने गये हैं—१. टङ्कण, २. धूर्त (वञ्चक) ३. गुड और ४. काच और ५ भस्म (राख)। पुल्लिग क्षार शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं-१. लवण (नमक) २. सजिकाक्षार (सज्जी क्षार सोचरखार क्षार विशेष को सजिका क्षार कहते हैं) और ३. रसभेद (रस विशेष) को भी क्षार कहते हैं किन्तु नपुंसक क्षार शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विड्लवण और २. यवक्षार (जवाखार) को भी क्षार कहते हैं । मूल : क्षारको जालके पक्षिमत्स्यादि पिटकेऽपि च । क्षितिर्वासे क्षये भूमौ रोचनायांलये स्त्रियाम् ॥२२७८॥ क्षिप्तः स्याद् वाच्यवत् त्यक्ते वायुग्रस्तेऽप्यसौ मतः। क्षीरं स्यात् सलिले दुग्ध-सरलद्रव्ययोरपि ॥२२७६।। हिन्दी टोका-क्षारक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं--१. जालक (जाल) और २. पक्षिमत्स्यादिपिटक (पक्षी और मछली वगैरह का पिटक-पिटारो)। क्षिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं-१. वास (वासा) २ क्षय नाश) ३. भूमि, ४. रोचना और ५. लय । क्षिप्त शब्द १. त्यक्त और २. वायु ग्रस्त (वात रोग वाला) अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न, माना जाता है । क्षीर शब्द के तीन अर्थ बतलाये जाते हैं-१. सलिल (जल) २. दुग्ध (दूध) और ३ सरलद्रव (धूप) । क्षुण्णं स्यात् वाच्यवत् चूर्णीकृत-प्रहतयोरपि । क्षुद्र स्त्रिषु लघौ क्र रे दरिद्रे कृपणेऽधमे ।।२२८०॥ क्षुद्रा स्याद् स्त्री नटी हिंस्रा-व्यङ्ग वादर तासु च। गवेधौ मक्षिका मात्र-कण्टकारि कयोरपि ॥२२८१॥ हिन्दी टोका-क्षुण्ण शब्द १. वूर्णीकृत (चूर्ण किया हुआ) और २. प्रहत (मारा गया) अर्थ में वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहलाता है। त्रिलिंग क्षुद्र शब्द के पाँच अर्थ माने जाते हैं --१. लघु (हलका आदमी) २. क्रू र (दुष्ट विचार वाला) ३. दरिद्र (गरीब) और ४. कृपण (कजूस) तथा ५. अधम (नीच) । स्त्रीलिंग क्षुद्रा शब्द के सात अर्थ माने गये हैं-१. नटी, २. हिंस्रा (घात करने वाली) और ३. व्यङ्गा (अङ्गविकल-विकल अङ्ग वाली) और ४. वादरता (वाद-विवाद में रत-लीन रहने वाली) तथा ५. गवेधु (मुनियों का अन्न विशेष) एवं ६. मक्षिकामात्र (मधुमक्खी वगैरह) और ७. कण्टकारिका (रेंगणी कटैया वगैरह) को भी क्षुद्रा कहते हैं। मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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