Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

View full book text
Previous | Next

Page 410
________________ मूल: नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-क्षुद्रा शब्द | ३६१ चाङ्ग रिकायां वेश्यायां सरघायामपीष्यते । क्षुपः शैलान्तरे कृष्णपुत्रे क्षुद्रद्रुमे पुमान् ॥२२८२।। क्षुभितश्चलिते भीते वायलिंगः प्रकीर्तितः। क्षुमाऽतसी लताभेद-नीलिकासु शणे स्त्रियाम् ॥२२८३॥ हिन्दी टोका-क्षुद्रा शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. चाङ्गेरिका (नोनी शाक विशेष-चुकशाक) २. वेश्या (रण्डी) ३. सरघा (मधुमक्खी) । क्षुप शब्द पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. शैलान्तर (शैल विशेष-पर्वत विशेष) और १. कृष्ण पुत्र (भगवान् कृष्ण का पुत्र) और ३. क्षुद्रद्रम (छोटा वृक्ष) को भी क्षुप कहते हैं। क्षुभित शब्द १. चलित (चलायमान) और २. भीत (डरा हुआ) अर्थ में वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । क्षमा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. अतसी (अलसी तीसी) २. लताभेद (लता विशेष) को भी क्षुमा कहते हैं तथा ३. नीलिका (नीली) और ४. शण को भी क्षुमा कहते हैं। मूल : क्षुरः शफे कोकिलाक्षे गोक्षुरे क्षुरकः पुमान् । क्षुल्लकस्त्रिषु निस्खेऽल्पे कनिष्ठे पामरे खले ॥२२८४॥ हिन्दी टोका-क्षुर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं-१. शफ (खुर-खरी) और २. कोकिलाक्ष (ताल मखाना) और ३. गोक्ष र (गोखरू) अर्थ में क्ष रक शब्द पुल्लिग माना जाता है । क्ष ल्लक शब्द त्रिलिंग माना जाता है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं --१. निस्ख (गरीब) २. अल्प (थोड़ा) ३. कनिष्ठ (छोटा) ४. पामर (कायर-अधम) और ५. खल (दुष्ट) को भी क्ष ल्लक कहते हैं, इस प्रकार क्ष ल्लक शब्द का पांच अर्थ मानना चाहिये। दुःखिते नीचक क्षुद्रे कोशज्ञ : परिकीर्तितः। क्षेत्रं शरीरे नगरे सिद्धस्थाने च वेश्मनि ।।२२८५॥ तथा कलत्रे केदारे प्राज्ञः प्रोक्त नपुंसकम् । क्षेत्रज्ञः पुंसि कृषके छेके वटुकभैरवे ॥२२८६।। देहाधिदैवते शेषद्वयार्थे त्वभिधेयवत् । क्षेपः स्यात् पुंसि विक्षेपे निन्दायां च विलम्बने ।।२२८७॥ हिन्दी टीका-क्ष ल्लक शब्द के और भी तीन अर्थ माने गये हैं--१. दुःखित २. नीचक (नीचअधम) और ३. क्ष द्र (संकुचित विचार वाला) । क्षेत्र शब्द नपुंसक है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं-१. शरीर २. नगर ३. सिद्ध स्थान (सिद्ध पीठ) ४. वेश्म (घर) ५. कलत्र (स्त्री) और ६. केदार (खेत) । क्षेत्रज्ञ शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. कृषक (किसान, खेरुत) २. छेक (घर में पाले हुए तोता-मैना मोर वगैरह पक्षी) ३. वटुक, भैरव तथा ४. देहाधिदैवत (देह की अधिदेवता)। किन्तु ५. शेषद्वयार्थ (शेषनाग और अनन्त) इन दो अर्थों में क्षेत्रज्ञ शब्द अभिधेयवत् (वाच्यवत्-विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । क्षेप शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. विक्षेप (फेंकना) २. निन्दा और ३. विलम्बन (विलम्ब करना) इस प्रकार क्षेप शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल: लंघने प्रेरणे गुच्छे लेपने गर्व-हेलयोः । क्षेपणं यापने यन्त्रविशेषे प्रेरणेऽपि च ॥२२८८।। मूल : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 408 409 410 411 412