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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-मोक्ष शब्द | २५७ हिन्दी टोका-मोक्ष शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं-१. पाटलिवृक्ष (पाढला, पाढर वृक्ष विशेष) २. मुक्ति, ३. मृत्यु और ४. मोचन (छोड़ाना)। मौलि शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं-१. किरीट (मुकुट विशेष) २. धम्मिल्ल (केश'पाश) किन्तु ३. चूडा (मस्तक) अर्थ में मौलि शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना गया है। म्रक्षण शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं-१. स्नेहन (चिक्कण) २. तैल और ३. राशीकरण (इकट्ठा करना) । म्लेच्छ शब्द भी पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं—१. अपभाषण (अपशब्द बोलना) २. पापरक्त (पापलीन) और ३. पामरभेद (कायर विशेष)। मूल : यतिजितेन्द्रियग्रामे निकारे विरतौ पुमान् ।
यतिः स्त्री पाठविच्छेदे विधवा-रागयोरपि ॥१४६४॥ यन्ता हस्तिपके सूते प्रोक्तो विरतिकारके ।
यन्त्रं देवाद्यधिष्ठाने दारुयन्त्रे नियन्त्रणे ॥१४६५।। हिन्दी टोका-पुल्लिग यति शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं --१. जितेन्द्रियग्राम (जितेन्द्रिय का समुदाय अथवा इन्द्रियों को जीतने वाला) २. निकार (पराभव) और ३. विरति (विराग)। स्त्रीलिंग यति शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं - १. पाठविच्छेद (पाठ का विच्छेद) २. विधवा स्त्री और ३. राग (अनुराग वगैरह) । यन्ता शब्द पुल्लिग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हस्तिपक (महतवाहफिलमान) २. सूत (सारथि)और ३. विरतिकारक (विच्छेद करने वाला) । यन्त्र शब्द नपुंसक है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. देवादि अधिष्ठान (देव वगैरह का मन्दिर) २. दारुयन्त्र (लकड़ी का यन्त्र विशेष) और ३. नियन्त्रण (नियन्त्रण करना)। मूल: यमो दण्डधरे ध्वाङक्षे संयमे यमनेऽपि च ।
यमक: संयमे शब्दालंकारे यमजे त्रिषु ॥१४६६॥ यवनो जातिभेदे स्याद् वेग-वेगाधिकाश्वयोः ।
प्लक्षवृक्षे जटामांस्यां वंशे यवफलो मतः ॥१४६७॥ हिन्दी टीका-यम शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं-१ दण्डधर (दण्डधारो) २. ध्वाङक्ष (काक) ३. संयम (धारणा ध्यान समाधि वगैरह) और ४. यमन (बांधना)। पुल्लिग यमक शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं -१. संयम (नियमपूर्वक रहना) और २. शब्दालंकार (यमक नाम का शब्दालंकार) किन्तु ३. यमज (एक साथ पैदा होने वाला) अर्थ में यमक शब्द त्रिलिंग माना जाता है। यवन शब्द के भी तीन अर्थ माने गये हैं-१. जातिभेद (जाति विशेष—यवन जाति-मुसलमान) २. वेग और ३. वेगाधिकाश्व (अधिक वेगशाली घोड़ा)। यवफल शब्द के भी तीन अर्थ होते हैं—१. प्लववृक्ष (पाकर का पेड़) २. जटामांसी (जटामांसी नाम की औषधि विशेष) ३. वंश (वांस)। मूल : दुरालभायां खदिरे यवासः कण्टकी क्षुपे ।
यशः शक्रगृहे श्रीदे गुह्यके धनरक्षके ॥१४६८॥ याज्ञिको दर्भभेदे स्यात् पलाशे यज्ञकर्तरि । उपायोत्सवयोर्यात्रा प्राणने यापने गतौ ॥१४६६॥
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