Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 362
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-शुक्ल शब्द | ३४३ मूल : असौ वाच्यवदाख्यातः सद्भिः शुक्लगुणान्विते । शुक्लपक्षे श्वेतवर्णे शुक्लकः परिकीर्तितः ॥१६८०॥ रजते नवनीते ऽक्षिरोगे शुक्लं नपुंसकम् । शुक्लो ना धवले शक्रयोगाऽतिस्वच्छपक्षयोः ॥१९८१॥ हिन्दी टोका- शुक्लगुणान्वित (शुक्ल गुणयुक्त) अर्थ में शुक्ल शब्द वाच्यवद् (विशेष्यनिधन) माना जाता है। शुक्लक शब्द के दो अर्थ माने गये हैं—१. शुक्लपक्ष और २. श्वेतवर्ण । नपुंसक शुक्ल शब्द के तीन अर्थ होते हैं--१. रजत (चाँदी) २. नवनीत (मक्खन) और ३. अक्षिरोग (आँख का रोग विशेष भाग) को भी शुक्ल शब्द से व्यवहार किया जाता है। पुल्लिग शुक्ल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. धवल (सफेद) २. शक्रयोग (इन्द्रयोग विशेष) और ३. अतिस्वच्छपक्ष (अत्यन्त सफेदयुक्त पक्षशुक्लपक्ष) इस प्रकार पुल्लिग और नपुंसक शुक्ल शब्द के छह अर्थ समझने चाहिए । मूल : श्वेतैरण्डे ध्यानभेदे त्रिषु शुक्लगुणान्विते । शुक्ला विदार्यां काकोली-भारती-शर्करासु च ॥१६८२॥ स्नुह्यां धवलवर्णायां शुङ्गस्तु वट-शूकयोः । आम्रातकेऽथ शुङ्गा स्यात् प्लक्ष धान्यादिशूकयोः ॥१६८३॥ हिन्दो टोका-त्रिलिंग शुक्ल शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. श्वेतैरण्ड (सफेद एरण्डदीबेल) २. ध्यानभेद (ध्यान विशेष-शुक्लध्यान) और ३. शुक्लगुणान्वित (श्वेत गुणयुक्त)। स्त्रीलिंग शुक्ला शब्द के छह अर्थ माने गये हैं-१. विदारी (कृष्ण भूमि कूष्माण्ड-कोहला कुम्हर) २. काकोली नाम की प्रसिद्ध औषधि विशेष) ३. भारती (सरस्वती) ४. शर्करा (खांड शक्कर चीनी) ५. स्नुही (सेहुण्ड) और ६. धवलवर्णा (सफेद वर्ण वाली वस्तु) । शुङ्ग शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. वट (वटवृक्ष) २ शूक (शूङ) और ३. आम्रातक (आमड़ा)। स्त्रीलिंग शुङ्गा शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं१. प्लक्ष (पाकर) और २. धान्यादिशूक (धान वगैरह का शूङ) को भी शुङ्गा कहते हैं। मूल : नवपल्लव कोश्यां च शुङ्गी-प्लक्षे वटेऽपि ना। शुचि ीष्मे ज्येष्ठमासे सौराग्नौ चित्रकद्रुमे ॥१९८४॥ शुद्धमन्त्रिणि शृङ्गाररसे भास्कर-चन्द्रयोः । आषाढ़मासे शुक्र च शुक्लवर्णे द्विजन्मनि ॥१६८५॥ हिन्दी टोका-स्त्रीलिंग शुङ्गी शब्द का अर्थ-१. नवपल्लवकोशी (नूतन पल्लव का कोश) किन्तु २. वट और ३. प्लक्ष (पाकर) अर्थ में शुङ्ग शब्द पुल्लिग माना जाता है। शुचि शब्द पुल्लिग है और उसके बारह अर्थ होते हैं-१. ग्रीष्म, २. ज्येष्ठमास (जेठ महीना) ३. सौराग्नि (सूर्य सम्बन्धी अग्नि) और ४. चित्रकद्र म (चीता नाम का वृक्ष) तथा ५. शद्धमन्त्री (पवित्र विचार वाला मन्त्री) और ६. शङाररस तथा ७. भास्कर (सूर्य) एवं ८. चन्द्र ६. आषाढ़मास, १०. शुक्र (वीर्य वगैरह) ११. शुक्लवर्ण और १२. द्विजन्मा (ब्राह्मण वगैरह द्विजाति) को भी शुचि कहते हैं। मूल : शुद्धेऽनुपहते शुक्लवर्णयुक्त शुचि स्त्रिषु । शुण्डा नलिन्यां कुट्टन्यां मदिरा-वारयोषितोः ।१६८६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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