Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 360
________________ नानार्थोदयसागर कोष हिन्दी टीका सहित - शीतल शब्द | ३४१ : विशेष कगहिया) २. काकोली (काकोली नाम की प्रसिद्ध औषधि लता विशेष ) । शीतल शब्द नपुंसक है। और उसके सात अर्थ होते हैं - १. पुष्पकासीस (पुष्पकासीस नाम का वृक्ष विशेष) २. शैत्य ( ठण्डक ) और ३. वीरणमूल (डाँगर घास का मूल भाग ) ४. मौक्तिक (मुक्ता) ५. पद्मक ( कमल वगैरह ) ६. शीतशिव ( शैलेय नाम गन्ध द्रव्य - रन्दूच - छलिया ) और ७. श्रीखण्ड चन्दन । इस प्रकार शीतल शब्द के सात अर्थ जानना । मूल : शीतल: पुंसि कर्पूरप्रभेदे चम्पकेऽशनपर्यां च चन्द्रे राले व्रतान्तरे चासौ त्रिषु शीतगुणान्विते । शीता मन्दाकिनी - दूर्वा ऽतिबला जानकीषु च ॥१६६६ ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग शीतल शब्द के आठ अर्थ माने जाते हैं - १. कर्पूरप्रभेद (कर्पूर विशेष ) २. बहुबारक (बहुआर वगैरह ) ३. चम्पक ४. असनपर्णी, ५. चन्द्र और ६. तीर्थंकरान्तर (तीर्थंकर विशेष ) ७. राल (राल धूप) और 5. व्रतान्तर (व्रत विशेष ) किन्तु ७. शीत गुणान्वित (ठण्डा) अर्थ में शीतल शब्द त्रिलिंग माना गया है । शीता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ होते हैं - १. मन्दाकिनी ( आकाश गंगा) २. दूर्वा (दूभी) ३. अतिबला और ४. जानकी (सीता) । मूल : बहुवार | तीर्थंकरान्तरे ॥ १८६८ ॥ Jain Education International कुटुम्बिनी शिल्पिकाSSख्य तृणयो हेलपद्धतौ । शीनं त्रिषु घनाऽऽज्यादौ वैधेयेऽजगरे पुमान् ॥१६७०॥ शीर्णं स्थौणेयके क्लीवं वाच्यवत् कृश - शुष्कयोः । शीर्णपत्रः कर्णिकारे पट्टिकालोध्र - निम्बयोः ॥१६७१॥ हिन्दी टीका - शीता शब्द के और भी तीन अर्थ होते हैं - १. कुटुम्बिनी, २. शिल्पिकाssख्यतृण और ३. हलपद्धति (सिराउर ) । त्रिलिंग शीन शब्द के दो अर्थ होते हैं - १. घनाऽऽज्यादि ( जमा हुआ घी वगैरह) २. वैधेय (मुर्ख) किन्तु ३. अजगर अर्थ में शीन शब्द पुल्लिंग माना जाता है। नपुंसक शीर्ण शब्द का अर्थ १. स्थौणेयक (कुकरौन्हा या गठिवन ) किन्तु २. कृश ( पतला ) और ३. शुष्क अर्थ में शीर्ण शब्द विशेष्यनिघ्न माना जाता है । शीर्णपत्र शब्द का अर्थ - १. कर्णिकार (कनैल) और २. पट्टिकालोध्र तथा ३. निम्ब होता है । मूल : मस्तके च शिरोऽस्थनि । शिरो रक्षणसन्नाहे जय-पराजयपत्रे शीर्षकं ना विधुन्तुदे ॥ १६७२ ॥ शीर्षण्यं शीर्ष रक्षेऽसौ पुल्लिंगो विशदे कचे । शीलं भावे ब्रह्मचर्ये रागद्वेष विवर्जने ॥ १९७३ ॥ हिन्दी टीका - नपुंसक शीर्षक शब्द के चार अर्थ होते हैं - १. शिरोरक्षणसन्नाह (टोप) २. मस्तक, और ३. शिरोऽस्थि ( मस्तक की हड्डी) तथा ४. जयपराजयपत्र ( हार जीत सूचक प्रमाण पत्र ) किन्तु ५. विधुन्तुद (राहु) अर्थ में शीर्षक शब्द पुल्लिंग माना जाता है । नपुंसक शीर्षण्य शब्द का अर्थ१. शीर्ष रक्ष (टोप) होता है किन्तु २. विशद (स्वच्छ ) और ३. कच ( केश) अर्थ में शीर्षण्य शब्द पुल्लिंग माना गया है । नपुंसक शील शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं- १. भाव (स्वभाव) २. ब्रह्मचर्य और ३. रागद्वेषविवर्जन ( रागद्वेष को छोड़ना) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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