Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 379
________________ मूल: ३६० | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संकट शब्द ४. हृति (हरण) । सखा शब्द के दो अर्थ माने गये हैं - १. मित्र (दोस्त स्नेही) और २. सहाय (मदद करने वाला) । सगर शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं - १. भूपति (राजा विशेष - सगर नाम का राजा) और २. जिन (भगवान तीर्थङ्कर)।। संकटस्त्रिषु संबाधे दुःखे तु क्लीवमीरितम् । संकरोऽग्निचटत्कारे मिश्रत्वेऽवकरे तथा ॥२०८६॥ वर्णसंकरजातौ च संकरी क्षितस्त्रियाम् । संकर्षणः प्रलम्बध्ने क्लीवन्त्वाकर्षणे स्मृतम् ॥२०८७॥ हिन्दी टोका - त्रिलिंग संकट शब्द का अर्थ--१. संबाध (विघ्न बाधा) होता है किन्तु २. दुःख अर्थ में संकट शब्द नपंसक माना जाता है। पल्लिग संकर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं--१. अग्निचटत्कार (अग्नि का चटत्कार शब्द) २. मिश्रत्व (मिलावट) ३. अवकर (कूड़ा-कचरा विष्ठा वगैरह) और ४. वर्णसंकरजाति (वर्णसंकर नाम का दूषित जाति विशेष)। स्त्रीलिंग संकरी शब्द का अर्थ--१. दूषित स्त्री (व्यभिचारिणी स्त्री) होता है । पुल्लिग संकर्षण शब्द का अर्थ-१. प्रलम्बघ्न (बलराम) होता है किन्तु २. आकर्षण (खींचना) अर्थ में संकर्षण शब्द नपुंसक माना गया है। मूल : . संकीर्णे दुर्बले मन्दे ऽस्थिरे संकसुकस्त्रिषु । संकुलं समरे वाक्ये परस्परपराहते ॥२०८८॥ संकीर्णे वाच्यवत् प्रोक्त संकोचं स्यात्तु कुंकुमे । संकोचो ना मत्स्यभेदे जडीभावे च बन्धने ।।२०८६।। हिन्दी टोका-त्रिलिंग संकसुक शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं--१. संकीणं (व्याप्त) २. दुर्बल, ३. मन्द और ४. अस्थिर (चचल)। नपुंसक संकुल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. समर (संग्राम) २ वाक्य और ३. परस्पर पराहत (आपस में पराहत) किन्तु ४. संकीर्ण अर्थ में संकुल शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) कहा गया है। नपुंसक संकोच शब्द का अर्थ-१. कुंकुम (कंकु सिन्दूर) होता है किन्तु पुल्लिग संकोच शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. मत्स्यभेद (मत्स्य विशेष) २ जड़ीभाव (स्तब्धता) और ३. बन्धन। मूल : संक्रन्दनः पुमान् इन्द्रे रोदने तु नपुंसकम् । संक्रमः क्रमणे सम्यग्राशिसंचारवस्तुनि ॥२०६०॥ सख्यं तु समरे क्लीवं संख्येये त्वभिधेयवत् । संख्यकत्वादिके बुद्धौ चर्चायां गणिते त्रिषु ।।२०६१॥ हिन्दी टोका -पुल्लिग संक्रन्दन शब्द का अर्थ - १. इन्द्र होता है किन्तु २. रोदन (रोना) अर्थ में संक्रन्दन शब्द नपंसक माना गया है। संक्रम शब्द के दो अथ माने गये हैं १.क्रमण ।चलना आक्रमण करना वगैरह) और २. सम्यग्राशिसंचारवस्तु (अच्छी तरह राशि में संचरण करने वाली वस्तु)। संख्य शब्द १. समर (संग्राम) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. संख्येय (संख्या करने योग्य) अर्थ में अभिधेयवत्-वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । स्त्रीलिंग संख्या शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं१. एकत्वादि (एकत्व द्वित्व वगैरह संख्या) २. बुद्धि और ३. चर्चा (विचारना) किन्तु ४. गणित अर्थ में साख्या शब्द त्रिलिंग माना गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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