Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 397
________________ मूल : ३७८ / नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सुपर्ण शब्द सुन्दर शब्द त्रिलिंग माना गया है। स्त्रीलिंग सुन्दरी शब्द के भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१.हरिद्रा (हलदी) २. स्त्री विशेष (सुन्दरी स्त्री) और ३. द्रमान्तर (द्र म विशेष वृक्ष-विशेष को भी सुन्दरी कहते हैं) इस प्रकार सुन्दर शब्द के कुल छह अर्थ समझना। मूल : सुपर्णो गरुडे स्वर्णचूडेतु कृतमालिके । सुपर्वा ना सुरे धूमे वंशे विशिख-पर्वणोः ॥२१६८॥ सुपात्रं तु स्मृतं योग्य व्यक्तौ शोभनभाजने । सुपुष्पं क्लीव बाहुल्य-लवङ्ग-स्त्रीरजस्सु च ॥२१६६॥ हिन्दी टोका-सुपर्ण शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं -१. गरुड़, २. स्वर्णचूड (सुवर्ण की चूडा वाला) और ३. कृतमालक (मालाकार)। सुपर्वा नकारान्त पुल्लिग है और उसके पांच अर्थ होते हैं१. सुर (देवता) २. धूम (धुंआ) ३. वंश (बांस का वृक्ष) और ४. विशिख (बाण) तथा ५. पर्व (पोर)। सुपात्र शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. योग्य व्यक्ति और २. शोभन भाजन (सुन्दर बर्तन)। सुपुष्प शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. आहुल्य, २. लवङ्ग (लौंग) और ३. स्त्रीरजः (स्त्रियों का मासिक धर्म रजोदर्शन)। प्रपौण्डरीके तुलेऽसौ पुंसि स्याद् रक्तपुष्पके । हरिद्रु-राज तरुणी - शिरीषेष्वपि कीर्तितः ॥२२००॥ सिद्धो व्यासादिके योग-देवयोनि विशेषयोः । व्यवहारे गुडे कृष्ण धुस्तूरे च पुमानयम् ॥२२०१।। हिन्दी टीका-सुपुष्प शब्द के और भी छह अर्थ माने जाते हैं-१. प्रपौण्डरीक (पुण्डरीक नाम का वृक्ष विशेष) और २. तूल (रुई कपास) तथा ३. रक्तपुष्पक (लाल फूल वाला वृक्ष विशेष) ४. हरिद्र, (दारु हल्दी या पीत चन्दन) ५. राजतरुणी (राजमहिषो) और ६. शिरीष (शिरीष का वृक्ष विशेष) । सिद्ध शब्द पुल्लिग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. व्यासादिक (व्यास वगैरह) २. योग (समाधि) और ३ देवयोनि विशेष-यक्ष गन्धर्व किन्नर (विद्याधर सिद्धगण विशेष) ४. व्यवहार, ५. गुड और ६. कृष्ण धुस्तूर (काला धतूर) को भी सिद्ध कहते हैं। मूल : वायलिंगस्त्वसौ नित्ये प्रसिद्ध-परिपक्वयोः । मन्त्रसिद्धि विशिष्टे च मुक्त-निष्पन्नयोरपि ॥२२०२॥ सिद्धियुक्त सैन्धवे तु लवणे सिद्धमीरितम् । सिद्धिः स्त्री मोक्ष-सम्पत्ति-दुर्गा-निष्पत्ति बुद्धिषु ॥२२०३॥ हिन्दी टीका-१. नित्य, २. प्रसिद्ध (प्रख्यात) ३. परिपक्व (पका हुआ) ४. मन्त्रसिद्धि विशिष्ट (मन्त्र की सिद्धाई से युक्त) और ५. मुक्त तथा ६. निष्पन्न इन छह अर्थों में सिद्ध शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिध्न) माना जाता है । १. सिद्धियुक्त और २. सैन्धवलवण (सिन्धा नमक) इन दोनों अर्थों में भी नपुंसक सिद्ध शब्द का प्रयोग किया जाता है। सिद्धि शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं१. मोक्ष (मुक्ति) २. सम्पत्ति, ३. दुर्गा (पार्वती) ४. निष्पत्ति और ५. बुद्धि को भी सिद्धि कहते हैं। मूल: ऋद्धि नामौषो योगभेदेऽन्तर्धावपि स्मृता । सिन्दूरो धातकी-रक्त चेलिका रोचनीषु च ॥२२०४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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