Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 398
________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित - सिद्धि शब्द | ३७६ सिन्धः पुंसि समुद्रे स्यात् सिन्दुवारे नदान्तरे । रागे देशविशेषे च वमथौ श्वेतटङ्कणे ।।२२०५।। हिन्दी टीका - सिद्धि शब्द के और भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. ऋद्धिनामऔषध (ऋद्धि नाम का औषध विशेष) २. योगभेद (योग विशेष) और ३ अन्तद्धि ( अन्तर्धान-तिरोधान ) । सिन्दूर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. धातकी (धव या धवा) २. रक्तचेलिका (लाल वस्त्र विशेष) और ३. रोचनी (सफेद निशोथ ) । सिन्धु शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ होते हैं - १. समुद्र, २. सिन्दुकर (सिन्दुआर - निर्गुण्डी) और ३. नदान्नर (नद विशेष, बड़ी झील ) ४. राग (सिन्धु नाम का राग विशेष ) ५. देशविशेष (सिन्ध देश) और ६. वमथु (वमन उलटी) तथा ७. श्वेत टङ्कण (पत्थर को फोड़ने वाला टङ्क विशेष वगैरह ) को भी सिन्धु कहते हैं । मूल : मतङ्गज मदे नद्यां त्वसौ स्त्रीलिंगतां गतः । सिप्रो निदाघसलिले धर्म-चन्द्र मसोरपि ॥२२०६ ॥ सीता स्यात् जानकी-गंगा भेदयो हेलपद्धतौ । सीरः पुंसि हले सूर्ये तद्वदर्क महीरुहे ||२२०७॥ हिन्दी टीका - सिन्धु शब्द १. मतङ्गज मद (हाथी का मद) और २. नदी इन दोनों अर्थों में सिन्धु शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है। सिप्र शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. निदाघसलिल (गर्मी ऋतु का पानी) २. धर्म (गर्मी) और ३. चन्द्रमस् ( चन्द्रमा) । सीता शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. जानकी ( जनक नन्दिनी) २. गंगाभेद (गंगा विशेष) और ३. हल पद्धति (सिरारु - हल जोतना) । सीर शब्द पुंलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हल २. सूर्य और ३. अर्क महीरुह (ऑक का वृक्ष) । मूल : Jain Education International सुकुमारस्तु पुण्ड्रेक्षौ श्यामाके वनचम्पके । क्षवे दैत्यविशेषे ना कोमले त्वभिधेयवत् ॥२२०८ ॥ कदली-मालती-जाती - पृक्कासु भणिता स्त्रियाम् । सुकृतं स्यात् शुभे पुण्ये क्लीवं सुविहिते त्रिषु ॥ २२० ॥ हिन्दी टीका - पुल्लिंग सुकुमार शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं - १. पुण्ड्र ेक्षु (गन्ना विशेष ) २. श्यामाक (शामा ) ३. वनचम्पक ४. क्षव (छीक) और ५. दैत्यविशेष किन्तु ६ कोमल अर्थ में सुकुमार शब्द अभिधेयवत् (वाच्यलिङ्ग - विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । १. कदली (केला) २. मालती ३. जाती (मल्लिका जूही ) तथा ४. पृक्का (असवरग - अस्यरग एक प्रकार का शाक विशेष) इन चारों अर्थों में सुकुमारी शब्द स्त्रीलिंग माना जाता है । नपुंसक सुकृत शब्द के दो अर्थ माने गये हैं- १. शुभ और २. पुण्य (धर्म) किन्तु ३. सुविहित अर्थ में सुकृत शब्द त्रिलिंग है । मूल : सुखाशो राजतिनिशे वरुणे सुखभोजने । सुगन्धं चन्दने क्षुद्रजीरक - ग्रन्थिपर्णयोः ।।२२१०।। नीलोत्पले गन्धतृणे क्लीवं पुंसि तु गन्धके । सुप्तिः स्त्री स्पर्शता - स्वाप - विश्रम्भ- शयनेषु च ।।२२११।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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