Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 404
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-स्पर्शन शब्द | ३८५ अर्थ माने जाते हैं-१. सुर (देवता) २. शैल (पर्वत) ३. कार्तिकेय और ४. द्रम (वृक्ष) तथा ५. शनि (शनिग्रह) । स्थिरदंष्ट्र शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. ध्वनि, २. सर्प और ३. वराहाकृतिमाधव (शूकर अवतार रूप भगवान् विष्णु को भी स्थिरदंष्ट्र कहते हैं)। स्थेय शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विवादपक्षस्य निर्णता (विवाद पक्ष का निणय करने वाला) और २ पुरोधस् (पुरोहित)। मूल : स्पर्शनो मारुते पुंसि क्लीवं तु स्पर्श-दानयोः । हंसः सूर्ये शिवे विष्णौ निर्लोभनृपतौ गुरौ ॥२२४४।। पक्षिभेदे मन्त्रभेदे मत्सरे परमात्मनि । हंसकः पादकटके राजहंसे च तालके ।।२२४५।। हिन्दी टोका-स्पर्शन शब्द ---१. मारुत (पवन) अर्थ में पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. स्पर्श और ३. दान अर्थ में नपुंसक माना जाता है। हंस शब्द के नौ अर्थ होते हैं - १. सूर्य, २. शिव, ३. विष्णु, ४ निर्लोभनृपति और ५. गुरु, ६. पक्षिभेद (पक्षी विशेष हंस नाम का पक्षी जोकि अधिक काल मानससरोवर में रहता है और ७. मन्त्रभेद (मन्त्र विशेष) ८. मत्सर (डाह करने वाला) और ६. परमात्मा को भी हंस कहते हैं । हंसक शब्द के तीन अर्थ बतलाये गये हैं --१. पाद-कटक (नूपुर वगैरह) और २. राजहंस तथा ३. तालक (ताल) इस प्रकार हंस शब्द के नौ और हंसक शब्द के तीन अर्थ समझना। मूल : हनु: कपोलावयवे स्त्रियां पुंसि च कीर्तितः । स्त्री स्याद् हट्ट विलासिन्यां रोगेऽस्त्रे मरणेऽपि च ॥२२४६।। हरः शिवेऽनले पुंसि हरकः शिव-चौरयोः । हरिविष्णौ शिवे सूर्ये विरिञ्चौ चन्दिरेऽनले ॥२२४७।। हिन्दो टोका-१. कपोलावयव (कपोल-गाल का एकदेश) अर्थ में हनु शब्द पुल्लिग तथा स्त्रीलिंग माना जाता है किन्तु २. हविलासिनी (हट हाट में विलास करने वाली) अर्थ में और ३. रोग ४. अस्त्र एवं मरण अर्थों में हनु शब्द स्त्रीलिंग माना गया है । हर शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं -१. शिव (भगवान शंकर) और २ अनल (आग) । हरक शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. शिव और २. चौर (तस्कर) । हरि शब्द के छह अर्थ माने जाते हैं-१. विष्णु (भगवान विष्णु) २. शिव (भगवान शंकर) ३. सूर्य ४. विरिञ्चि (ब्रह्मा) ५. चन्दिर (चन्द्रमा) और ६. अनल (अग्नि) को हरि कहते हैं, इस प्रकार हरि शब्द के छह अर्थ समझना चाहिये। मूल : इन्द्रे यमेऽनिले सिहे किरणे तुरगेऽपि च । शुके भुजङ्गमे हंसे मयूरे मकंटे प्लवे ।।२२४८।। हालिके बलदेवे च प्राज्ञ हलधरः स्मृतः । हला सख्यां जले मद्ये पृथिव्यामपि कीर्तिता ॥२२४६॥ हिन्दी टीका- हरि शब्द के और भी बारह अर्थ माने जाते हैं-१. इन्द्र २. यम ३. अनिल (पवन) ४. सिंह ५. किरण ६. तुरग (घोड़ा) ७. शुक (पोपट-शूगा) ८. भुजङ्गम ६. हंस, १०. मयूर (मोर) ११. मर्कट (बन्दर) १२ प्लव (नौका बगैरह) । हलधर शब्द के दो अर्थ होते हैं.-१. हालिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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