Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 382
________________ नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित --सदाफल शब्द | ३६३ में सत्व शब्द पुल्लिंग तथा नपुंसक माना जाता है । नपुंसक सत्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. कृत (सत्ययुग - कृतयुग) २. सिद्धान्त और ३. यथार्थ ( वास्तविक ) किन्तु ४. तद्वति (यथार्थ ज्ञान युक्त) अर्थ में सत्य शब्द त्रिलिंग माना जाता है । पुल्लिंग सदस्य शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. सभ्य और २. विधि - दर्शी (विधिकाद्रष्टा देखने वाला) । पुल्लिंग सदाप्रसून शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. अकेंद्र, (ऑक का वृक्ष) २. कुन्द (कुन्द नाम का प्रसिद्ध फूल विशेष) और ३. रोहितकद्र ुम ( गुलनार या लाल करञ्ज) इस प्रकार सदाप्रसून शब्द के तीन अर्थ समझना । मूल : सदाफलो नारिकेले बिल्बे स्कन्दफले तथा । सदृशस्तुचिते तुल्ये वाच्यलिङ्ग उदाहृतः ॥ २१०६ ।। देशान्विते सन्निकृष्टे सदृशस्त्रिषु कीर्तितः । सनातनः शिव विष्णौ ब्रह्म - दिव्यमनुष्ययोः ॥ २१०७ ।। हिन्दी टीका --- सदाफल शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. नारिकेल ( नारियल) २. बिल्व ( बेल का वृक्ष) और स्कन्दफल ( गूलर वगैरह ) । सदृश शब्द वाच्यलिंग (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके दो अर्थ होते हैं ? उचित (योग्य) और २ तुल्य (सरखा) किन्तु २. देशान्वित (देशयुक्त) और ४. सन्निकृष्ट (निकट) अर्थ में सदृश शब्द त्रिलिंग माना जाता है। सनातन शब्द के चार अर्थ माने गये हैं - १. शिव (भगवान शंकर) २. विष्णु (भगवान विष्णु) और ३. ब्रह्म (परमात्मा) और ४. दिव्य मनुष्य (मुनि रामकृष्ण वगैरह ) । मूल : असौ वाच्यवदाख्यातो नित्ये तद्वत् सुनिश्चले । दुर्गायामिन्दिरायां सरस्वत्यां सनातनी ||२१०८ ।। सनाभिः स्यात् सपिण्डे ना तूल्ये स्नेहयुते त्रिषु । सन्ततिर्गोत्रविस्तार-पंक्ति - कन्या सुतेषु च ॥२१०६॥ हिन्दी टीका - १. नित्य और २. सुनिश्चल (स्थिर) अर्थ में सनातन शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । स्त्रीलिंग सनातनी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. दुर्गा (पार्वती) २. इन्दिरा (लक्ष्मी) और ३. सरस्वती । पुल्लिंग सनाभि शब्द का अर्थ १ सपिण्ड (गोतिया सगोत्र ) होता है किन्तु २. तुल्य (सदृश सरखा) और ३. स्नेहयुत (स्नेही ) अर्थ में सनाभि शब्द त्रिलिंग माना जाता है । सन्तति शब्द के तीन अर्थ होते हैं - १. गोत्रविस्तार (वंश वृद्धि) और २ पंक्ति (श्रेणी) और ३. कन्यासुत (कन्या लड़की का सुत - पुत्र) । मूल : Jain Education International सन्धिर्ना भेद-संश्लेष - सुरुङ्गामु संघ सावकाशेऽक्षर भगे तथा । द्वितयमेलने ॥ २११०॥ सन्धितो मिलिते सन्धियुक्त त्रिष्वासवादिके । सन्धिला मदिरा-नद्योः सुरुङ्गायामपि स्मृता ।।२१११।। हिन्दी टीका - सन्धि शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. भेद ( जुदा ) २. संश्लेष (मेल) ३. सुरुङ्गा (सुरङ्ग) और ४. भग (योनि) तथा ५ संघट्टन ( टकराना) एवं ६. सावकाश For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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