Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 391
________________ ३७२ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दो टीका सहित - सर्ग शब्द २. सिन्धु (समुद्र) किन्तु ३. रसिक अर्थ में सरस्वान् शब्द अभिधेयवत् ( वाच्यलिंग - विशेष्यनिघ्न) माना जाता है । सरोजिनी शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. पद्मखण्ड (कमल नाल) २. कमल और ३. कमलाकर ( कमल समूह ) । सगे शब्द पुल्लिंग है और उसके पाँच अर्थ माने जाते हैं१. निश्चय, २. अध्याय ३. स्वभाव (नेचर) और ४. सृष्टि तथा ५. मोह, इस प्रकार सर्ग शब्द के पाँच अर्थ समझना चाहिए । मूल : उत्साहेनुमतौ त्यागे मोचनेऽपि प्रकीर्तितः । सर्जः शालद्रुमे पीतशाले सर्जरसे पुमान् ॥२१६२।। सृष्टौ विसर्गने सैन्यपश्चाद्भागेऽपि सर्जनम् । अथ सर्वरसो वीणा विशेषे धूनके बुधे ॥२१६३॥ हिन्दी टीका - सर्ग शब्द के और भी चार अर्थ माने गये हैं - १. उत्साह, २. अनुमति (स्वीकार समर्थन ) ३. त्याग और ४. मोचन ( छोड़ाना) । सर्ज शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं१. शालद्र ुम ( शाखोट का पेड़ ) २. पीलशाल (पीले रंग का शाखोट शाँख) और ३. सर्जरस (विजय सार वृक्ष का रस ) । सर्जन शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं- १. सृष्टि, २. विसर्जन और ३. सैन्यपश्चाद् भाग (सेनाओं का पीछा भाग ) । सर्वरस शब्द भी पुल्लिंग है और उसके भी तीन अर्थ होते हैं - १. वीणा विशेष, २. धूनक (रुई धुनने वाला, धुनियाँ) और ३. बुध (पण्डित) । सवश्चन्द्रे सहस्रांशौ यज्ञ - सन्तानयोरपि । मूल : सवेशो वाच्यवल्लिंगो वेशान्वित समीपयोः ।। २१६४ ।। हिन्दी टीका-सव शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. चन्द्र, २. सहस्रांश (सूर्य) ३. यज्ञ और ४. सन्तान । सवे शब्द १. वेशान्वित (वेश पोशाकयुक्त) और २. समीप (निकट) अर्थ में वाच्यवत्लिंग ( विशेष्यनिघ्न) माना जाता है (विशेष्य-मुख्य के अनुसार जो विशेषण का लिंग हो उसे विशेष्यनिघ्न) कहते हैं । मूल : Jain Education International सव्यस्तु त्रिषु वामे स्यातु दक्षिण प्रतिकूलयोः । सस्यं धान्ये गुणे शस्त्रे वृक्षादीनां फलेऽपि च ।। २१६५।। साधनं मृतसंस्कारे कारके गमने वधे । उपाये दापने शिश्ने प्रमाणे सिद्धि-सैन्ययोः । २१६६ ॥ निषेधेऽनुगमे वित्ते योनौ निष्पादने जवे । साधिष्ठो वाच्यवन्न्याय्येऽत्यायें दृढ़तमेऽप्यसौ ॥२१६७॥ हिन्दी टीका - त्रिलिंग सव्य शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. वाम (वायां भाग - डावा) और २. दक्षिण (दहिना जमणा) तथा ३. प्रतिकूल (विपरीत) । सस्य शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं - १. धान्य (फसल) २. गुण (कला-हुनर ) ३. शस्त्र (तलवार) और ४. वृक्षादीनां फल ( वृक्ष वगैरह का फल ) को भी सस्य कहते हैं । साधन शब्द के सोलह अर्थ माने गये हैं- १. मृतसंस्कार (मृतक का दाहादि संस्कार ) २. कारक (निष्पादक) ३. गमन, ४. वध, ५. उपाय, ६. दापन ( दिलाना) ७. शिश्न (मूत्रेन्द्रिय) ८ प्रमाण For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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