Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

View full book text
Previous | Next

Page 383
________________ ३६४ | नानादियसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-सन्तति शब्द और ७. अक्षर द्वितय मेलन (दो अक्षरों का मेल)। सन्धित शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१ मिलित, २. सन्धि यक्त और ३. त्रिष्वासवादिक । सन्धिला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मदिरा (शराब) २. नदी और ३. सुरुङ्गा (सुरङ्ग) इस प्रकार सन्धिला शब्द के तीन अर्थ जानना चाहिये। मूल : प्रणतौ नम्रतायां च ध्वनौ स्यात् सन्ततिः स्त्रियाम् । पृष्ठस्थायिबले वृन्दे सन्नयः परिकीर्तितः ॥२११२।। आश्रये निकटे क्लीवं सन्निधानं प्रकीर्तितम् । सन्निधिः स्त्री सन्निकर्षे तद्वदिन्द्रियगोचरे ॥२११३।। हिन्दी टीका-स्त्रीलिंग सन्तति शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. प्रणति (प्रणाम) २. नम्रता . (विनय) और ३. ध्वनि । सन्नय शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. पृष्ठ स्थायिबल (पीछे रहने वाली सेना) और २. वृन्द (समूह) । नपुंसक सन्निधान शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. आश्रय और २. निकट । स्त्रीलिंग सन्निधि शब्द के भी दो अर्थ होते हैं-१. सन्निकर्ष (निकट या सम्बन्ध विशेष) और २. तद्वदिन्द्रियगोचर (सन्निकर्षयुक्त इन्द्रिय विषय) आँख वगैरह इन्द्रियों का घटादि विषयों के साथ संयोगादि सम्बन्ध को (सन्निधि-सन्निकर्ष) कहते हैं और सन्निकर्षयुक्त घटादि विषय को भी सन्निधि कहते हैं। मूल : सप्तला पाटला-चर्मकषा-गुञ्जासु कोर्तिता। सप्ताचिर्नाऽनले तद्वद् शनौ चित्रकपादपे ।।२११४।। वाच्यवत्तु स्मृतोऽसौ च क्रू र चक्षुषि कोविदः। सभासानाजिके द्यूते समितौ निवहेगृहे ॥२११५।। हिन्दी टोका-सप्तला शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. पाटला (गुलाब) २. चर्मकषा (सेहुंड़, थूहर) और २. गुजा (चनौठो-मूंगा)। पुल्लिग सप्तचिः शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. अनल (अग्नि) २. शनि (शनि ग्रह विशेष) और ३. चित्रकपादप (चीता नाप का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) किन्तु ३. क्रूरचक्षु (अत्यन्त क्रूर आँख वाला) अर्थ में सप्ताचि: शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । सभा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके पांच अर्थ माने जाते हैं-१. सामाजिक (समाज सम्बन्धी) २. द्यूत ३. समिति और ४. निवह (समूह) तथा ५. गृह (मकान) को सभा कहते हैं । मूल : सभ्यो ना सभिके साधौ सभासदि मत: सताम् । साधु-सर्व-समानेषु समो वाच्यवदीरितः ॥२११६।। समजो ना पशुवाते मूर्खवृन्दे वनेऽद्वयोः । समज्या समितौ की”उचिते तु समञ्जसम् ।।२११७।। हिन्दो टोका-सभ्य शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. सभिक (जुआ खेलाने वाला) २. साधु (मुनि महात्मा) और ३. सभासद् (सदस्य-सभा में रहने वाला)। सम शब्द १. साधु, २. सर्व (सारा) और ३. समान (सदृश-सरखा) इन तीनोंअर्यों में वाच्यवत्(विशेष्यनिघ्न) माना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412