Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 386
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित--समिति शब्द | ३६७ और २. समुच्चय (अधिक) । समाहित शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. समाधिस्थ (समाधि में लगा हुआ) २. निष्पन्न (सम्पन्न) और ३. आहित (स्थापित किया हुआ)। मूल : प्रतिज्ञातोक्तसिद्धान्त निर्विवादी कृतेष्वपि । आयोधने सभायां च संगेऽपि समितिः स्त्रियाम् ।।२१३०॥ समीरणो मरुवके पथिके मातरिश्वनि । सम्प्रेक्षणे सांख्य शास्त्रे समीक्षणमितीरितम् ॥२१३१॥ हिन्दी टोका--समिति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने गये हैं- १. प्रतिज्ञात (प्रतिज्ञा का विषय) २. उक्तसिद्धान्त (कथित सिद्धान्त) और ३. निर्विवादीकृत (विवाद रहित वाला) तथा ४. आयोधन (संग्राम) एवं ५. सभा और ६. संग । समीरण शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. मरुवक (मयनफल या मरुवा) २. पथिक (राहगीर) और ३. मातरिश्वा (पवन)। समीक्षण शब्द के दो अर्य माने गये हैं-१. संप्रेक्षण (देखना) और २. सांख्यशास्त्र (कपिल मुनि कृत सांख्य शास्त्र)। मूल : समीक्षा धिषणायां स्यात् तत्वे यत्ने निभालने । पर्यालोचन - मीमांसा शास्त्रयोरप्युदीरिता ॥२१३२॥ समुच्छ्य-समुच्छायौ विरोधोत्सेधयोः स्मृतौ । समुद्गमे दिने युद्धे वृन्दे समुदयः स्मृतः ॥२१३३।। हिन्दी टोका-समीक्षा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके छह अर्थ माने जाते हैं--१. धिषणा (बुद्धिमेधा २. तत्व (वास्तविकता) ३. यत्न (उद्योग अध्यवसाय) ४. निभालन (देखना-समीक्षा करना) ५. पर्यालोचन (आलोचना करना) और ६. मीमांसाशास्त्र (जैमिनी मुनि कृत मीमांसा शास्त्र) । समुच्छ्य और समुच्छ्राय शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. विरोध (विरोध करना) और २. उत्सेध (परिधि-विस्तार वगैरह)। समुदय शब्द पुल्लिग है और उसके चार अर्थ होते हैं-१. समुद्गम (प्रादुर्भाव) २. दिन, ३. युद्ध (संग्राम) और ४. वृन्द (समूह)। मूल : समुदायः समूहे स्यात् पृष्ठस्थायिबले रणे । समुद्धतः समुद्गीर्णे दुविनीतेऽपि वाच्यवत् ॥२१३४॥ समुद्धतं समुत्कीर्णा - पनीतोत्थापिते त्रिषु । समुद्रनवनीतं तु चन्द्रमस्यमृते स्मृतम् ।।२१३५॥ हिन्दी टोका-समुदाय शब्द पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं-१. समूह २. पृष्ठस्थायिबले (पीछे से रहने वाली सेना) और ३. रण (संग्राम)। समुद्धत शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है और उसके गे अर्थ माने गये हैं--१. समुद्गोण (उगला हुआ) और २. दुर्विनील (शठ) समुद्ध त शब्द त्रिलिंग है और उसके तीन अर्थ होते हैं -१. समुत्कीर्ण (खोदा गया) २. अपनीत (हटाया गया) और ३. उत्थापित (उठाया गया)। समुद्रनवनीत शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. चन्द्रमा और २. अमृत (सुधा)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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