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नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संग शब्द | ३६१ मूल : संग: स्याद् मेलने रागे संगतिर्ज्ञान - संगयोः ।
नद्यादिमेलके संगे संगमोऽस्त्री प्रकीर्तितः ।।२०६२।। संगरोऽङ्गीकृतौ युद्धे क्रियाकारे च संविदि ।
गरले संगरं तु स्यात् शमीवृक्ष फलेऽद्वयोः ॥२०६३॥ हिन्दी टोका-पुल्लिग संग शब्द के दो अर्थ माने गये हैं.-१. मेलन (मिलाना) और २. राग (आसक्ति) । संगति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भो दा अर्थ होते हैं-१. ज्ञान और २. संग (सम्पर्क)। संगम शब्द पुल्लिग तथा नपुंसक माना जाता है और उसके भी दो अर्थ माने गये हैं-१. नद्यादिमेलक (नदी वगैरह का संगम) और २. संग (सम्पर्क वगैरह)। पुल्लिग संगर शब्द के चार अर्थ माने गये हैं१. अङ्गीकृति (अङ्गीकार-स्वीकार) २ युद्ध (संग्राम) ३. क्रियाकार और ४. संविद् (ज्ञान) किन्तु ५. गरल (विष जहर) अर्थ में सगर शब्द नपुंसक माना गया है और ६. शमीवृक्षफल (शमी वृक्ष का फल) अर्थ में भी संगर शब्द नपुंसक ही माना जाता है। मूल : संगुप्तो बुद्धभेदेना त्रिषु संगोपनाश्रये ।
संग्रहो ग्रहणे मुष्टौ महोद्योगे समाहतौ ॥२०६४॥ बृहत संक्षेपयोरङ्गीकृतौ संचय-तुङ्गयोः ।
संघट्टोऽन्यविमर्दे स्याद् गठनेऽपि निगद्यते ॥२०६५।। हिन्दी टीका पुल्लिग संगुप्त शब्द का अर्थ-१. बुद्धभेद (बुद्ध विशेष) किन्तु २. संगोपनाश्रय (गुप्त रखने लायक) अर्थ में संगुप्त शब्द त्रिलिंग माना जाता है। संग्रह शब्द के नौ अर्थ माने गये हैं१. ग्रहण करना) २. मुष्टि ३ महा उद्योग (बड़ा उद्योग धन्धा) और ४. समाहति (आघात मारना) ५. बृहत् (बड़ा) ६. संक्षेप (छोटा करना) और ७. अङ्गीकृति (अंगीकार-स्वीकार करना) तथा ८. संचय (इकट्ठा करना) एवं ६. तुङ्ग (ऊँचा) । संघट्ट शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. अन्यविमर्द (ठहराना) और २. गठन-संगठन)। मूल: संघाटिका युगे घ्राणे कुट्टिन्यां जलकण्टके ।
संघातो हनने वाते कफे च नरकान्तरे ॥२०६६।। सचिवः कृष्ण धत्तूरे सहाये मन्त्रिणि स्मृतः।
सन्नद्धे निभृते सज्जो वाच्यवत् संभृतेऽपि च ॥२०६७॥ हिन्दी टीका-संघाटिका शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं..-१. युग (जोड़ा) २. घ्राण (नाक) ३. कुट्टिनी (व्यभिचार के लिए मिलाने वालो) और ४. जलकण्टक । संघात शब्द के भी चार अर्थ माने जाते हैं -१. हनन (मारना) २. वात (समूह) और ३. कफ (जुखाम) तथा ५. नरकान्तर (नरक विशेष)। सचिव शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं--१. कृष्णधत्तर (काला धतर) ३. मन्त्री । पुल्लिग सज्ज शब्द के दो अर्थ होते हैं-१. सन्नद्ध (सावधान तैयार। और २. निभृत (अत्यन्त निर्भर) किन्तु ३. संभृत (भेंट या पूरा) अर्थ में सज्ज शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना जाता है ।
सज्जा वेशे च सन्नाहे संचयः संग्रहे गणे। संचारो गमने दुगसंचरे ग्रहसंक्रमे ॥२०६८।।
मूल:
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