________________
३५८ | नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-संयोजन शब्द
आलोचने वशीकारे प्राज्ञैः संवेदनं स्मृतम् ।
संरोधो रोधने क्षेपे संलयः प्रलयेऽपि च ॥२०७३॥ __ हिन्दी टीका-संयोजन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं.---१. संयोग और २. मेथुन (विषयभोग)। संरम्भ शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं-१. क्रोध, २. उत्साह और ३. आटोप (आडम्बर)। संवेदन शब्द के दो अर्थ माने गये हैं-१. आलोचन (आलोचना करना) ओर २. वशीकार (वश में करना) । संरोध शब्द के भी दो अर्थ माने गये हैं - १. रोधन (रोकना) और २. क्षेप (फेंकना या आक्षेप करना) । सलय शब्द का अर्थ-१. प्रलय होता है । मूल :
संवरं सलिले दैत्यभेदे बौद्धव्रतान्तरे । जैनानां षष्ठतत्त्वे च तथैव हरिणान्तरे ॥२०७४॥ संवर्तो मुनिभेदे स्यात् कल्पे कर्षफलद्रुमे ।
मेघनायकभेदे च वारिवाहेऽपि कीर्तितः ॥२०७५॥ हिन्दी टीका-संवर शब्द के पाँच अर्थ माने गये हैं-१. सलिल (जल) २. दैत्यभेद (दैत्य विशेष --संवर नाम का राक्षस) ३. बौद्धव्रतान्तर (बौद्धों का व्रत विशेष) ४. जैनानांषष्ठतत्त्व (जैन मुनि महात्माओं का छठा तत्त्व संवर नाम का छठा तत्त्व) ५. हरिणान्तर (हरिण विशेष--मग विशेष) संवर कहा जाता है । संवर्त शब्द के भी पाँच अर्थ माने गये हैं-१. मुनिभेद (मूनि विशेष) २. कल्प (सृष्टि) ३. कर्षफलद्र म (बहेड़ा का वृक्ष) ४ मेघनायकभेद (मेघ का नायक विशेष) को भी संवर्त कहते हैं और ५. वारिवाह (मेघ) को भी संवर्त कहा जाता है । मूल : आलये संनिवेशे च संवासः सद्भिरीरितः ।
संवाहनं तु भारादिवहने ऽप्यङ्गमर्दने ॥२०७६॥ संवित्तिस्तु स्त्रियां बुद्धौ प्रतिपत्ताविपीष्यते ।
संवित् स्त्री तोषणे नाम्नि ज्ञाने संभाषणेरणे ॥२०७७।। हिन्दी टीका-संवास शब्द के दो अर्थ माने गये हैं.१. आलय (गृह) और २. संनिवेश (छोटा नगर) । संवाहन शब्द के भी दो अर्थ माने जाते हैं--१. भारादिवहन (भार वगैरह का वहन करना) और २. अंगमर्दन (हाथ पाद वगैरह अगों का मर्दन करना) । संवित्ति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके भी दो अर्थ माने जाते हैं-१. बुद्धि और २. प्रतिपत्ति (ख्याति वगैरह)। सवित् शब्द भी स्त्रीलिंग माना जाता है और उसके पाँच अर्थ होते हैं-१. तोषण (संतुष्ट करना) २. नाम (संज्ञा) ३. ज्ञान ४. संभाषण (बोलना --भाषण करना) और ५. रण (सग्राम)। मूल : प्रतिज्ञायां क्रियाकारे संकेते संयमेऽपि च ।
संवेशः सुरते पीठे निद्रायामपि कीर्तितः ।।२०७८।। सव्यानं वस्त्रमा स्यात् उत्तरीये च वाससि । संसिद्धिः स्त्रीस्वभावे स्यान्मोक्ष सिद्धिविशेषयोः ।।२०७६।।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org