Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 376
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित-षट्प्रज्ञ शब्द | ३५७ गजे धान्यविशेषे च कथितः षष्टिहायनः । षाडवो ना रसे गाने रागजात्यन्तरेऽपि च ।।२०६७।। हिन्दी टोका-षट्प्रज्ञ शब्द पुल्लिग है और उसके दो अर्थ माने गये हैं-१. कामुक (विषयी) और २. धर्म-कामशास्त्रज्ञ मानव (धर्म कामशास्त्र का ज्ञाता मनुष्य) । षण्ड शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ होते हैं-१. गोपति (गोस्वामी) २. वर्षवर (नपुंसक-हिजड़ा) और ३. पद्मादिसंहति (कमल वगैरह का समूह)। षष्टिहायन शब्द भी पुल्लिग है और उसके दो अर्थ होते हैं---१. गज (हाथी) और २. धान्यविशेष (सठिया धान आंसु वगैरह)। षाडव शब्द भी पुल्लिग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं-१. रस, २. गान और ३. रागजात्यन्तर (राग जाति विशेष) इस प्रकार षाडव शब्द के तीन अर्थ समझने चाहिए। मूल : संग्राही पुंसि कुटजद्रुमे त्रिषु तु धारके । संज्ञ क्लीवं पीतकाष्ठे त्रिष्वसौ लग्नजानुके ।।२०६८।। विज्ञापने मारणे च क्लीवं संज्ञपनं विदुः । संज्ञा स्यात् चेतना नाम्नो हस्ताद्यैश्चार्थसूचने ॥२०६६।। हिन्दी टीका-१. कुटजद्र म (गिरिमल्लिका) अर्थ में संग्राही शब्द नकारान्त पुल्लिग माना जाता है किन्तु २. धारक (धारण करने वाला) अर्थ में संग्राही शब्द त्रिलिंग माना गया है। संज्ञ शब्द --१. पीतकाष्ठ (पीले रंग का काष्ठ विशेष) अर्थ में नपुंसक माना जाता है किन्तु २. लग्नजानुक (संलग्न जुटे हुए जानु-घुटना वाला) अर्थ में संज्ञ शब्द त्रिलिंग माना गया है। नपुंसक संज्ञपन शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं-१. विज्ञापन (सूचित करना) और २. मारण (वध करना)। संज्ञा शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जा ते हैं-१. चेतना (चैतन्य, होश) और २. नाम तथा ३. हस्ताद्यःअर्थसूचन (हाथ वगैरह के द्वारा अर्थ-तात्पर्य को सूचित करना)। संयतो वाच्यल्लिगो बद्धे च कृतसंयमे । वाग्यते जन्तुनिवहे संयत्वर उदीरितः ॥२०७०॥ चतुः शाले व्रते बन्धे क्लीवं संयमनं स्मृतम् । संयमी ना मुनौ प्रोक्तो निगृहीतेन्द्रिये त्रिषु ॥२०७१॥ हिन्दी टीका-संयत शब्द -१. बद्ध (बंधा हुआ) और २. कृतसंयम (संयमी) अर्थ में वाच्यवत् लिंग (विशेष्यनिघ्न-त्रिलिंग) माना जाता है । संयत्वर शब्द-१. वाग्यत (वाणी का संयम करने वाला) और २. जन्तुनिवह (प्राणियों का समूह) अर्थ में पुल्लिग माना गया है । नपुंसक संयमन शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं-१. चतुःशाल (चौतरफा घर वाला स्थान) और २. व्रत तथा ३. बन्ध (बन्धन, बांधना) को भी संयमन कहते हैं। संयमो शब्द पुल्लिग है और उसका अर्थ-१. मुनि (साधु) कहा गया है किन्तु २. निगृहीतेन्द्रिय (इन्द्रिय को निग्रह-वश में करने वाला) अर्थ में त्रिलिंग माना गया है। इस प्रकार संयमी शब्द के दो अर्थ जानने चाहिए। मूल : संयोजनं तु संयोगे मैथुनेऽपि प्रकीर्तितम् । संरम्भः क्रोध उत्साह आटोपे च निगद्यते ॥२०७२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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