Book Title: Nanarthodaysagar kosha
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: Ghasilalji Maharaj Sahitya Prakashan Samiti Indore

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Page 372
________________ नानार्थोदयसागर कोष : हिन्दी टीका सहित - श्रावक शब्द | ३५३ १. आश्रयण अर्थ में पुल्लिंग माना जाता है किन्तु २. श्रीसम्बन्धी अर्थ में श्राय शब्द त्रिलिंग माना गया है । मूल : श्रमणोपासके काके श्रावकः श्रोतरि त्रिषु । श्रावणः पुंसि पाखण्डे मासे श्रावणिका भिधे ॥२०४२ ॥ श्रीबिल्ववृक्षे नलिने वृद्धिनामौषधौ मतौ । वृत्तार्हज्जननी - कीर्त्योः प्रभायां सरलद्रुमे ॥२०४३॥ हिन्दी टोका - पुल्लिंग श्रावक शब्द के दो अथ माने गये हैं - १. श्रमणोपासक (श्रमण- साधु का उपासक सेवक) और २. काक, किन्तु ३. श्रोता अर्थ में श्रावक शब्द त्रिलिंग माना गया है । पुल्लिंग श्रावण शब्द के दो अर्थ माने जाते हैं - १. पाखण्ड (नास्तिकता) और २. श्रावणिकाभिध मास (श्रावण मास)। श्री शब्द के आठ अर्थ माने गये हैं - १. बिल्व वृक्ष (बेल का वृक्ष) २. नलिन ( कमल) ३. वृद्धि नामौषधि ( वृद्धि नाम का प्रसिद्ध औषधि विशेष) और ४. मति (बुद्धि) तथा ५. वृत्तार्हज्जननो (भूतकालिक भगवान तीर्थङ्कर की माता) और ६. कीर्ति (यश) एवं ७. प्रभा (प्रकाश ज्योति वगैरह ) और ८. सरलद्र ुम ( देवदारु वृक्ष) इस प्रकार श्री शब्द के आठ अर्थ समझने चाहिये । मूल : सिद्धौ वृद्धौ विभूतौ च लक्ष्म्यां शोभा त्रिवर्गयोः । श्रीधरो माधवे शालग्रामेऽतीतजिनान्तरे ॥ २०४४॥ Jain Education International श्रीपतिः पृथिवीनाथे केशवेऽपि प्रकीर्तितः । श्रीपर्णी शाल्मलीवृक्षे गम्भारी कट्फलद्रुमे ॥२०४५॥ हिन्दी टीका - श्री शब्द के और भी छह अर्थ माने गये हैं- १. सिद्धि २. वृद्धि ३. विभूति ( ऐश्वर्य ४. लक्ष्मी, ५. शोभा और ६ त्रिवर्ग (धर्म- अर्थ - काम) । श्रीधर शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं १. माधव, २. शालग्राम और ३. अतीत जिनान्तर (भूतकालिक भगवान् तीर्थङ्कर ) | श्रीपति शब्द के दो अर्थ होते हैं -- १. पृथिवीनाथ ( राजा भूपति) २. केशव (भगवान विष्णु ) । श्रीपर्णी शब्द के तीन अर्थ माने गये हैं - १. शाल्मली वृक्ष (पाकर का वृक्ष) २. गम्मारी ( गम्भारि ) और ३. कट्फलद्र ुम ( काफर का वृक्ष) । मूल : हठवृक्षेऽग्निमन्द्रौ श्रीपर्णं कमलेऽपि च । श्रीमान् पुंसि शिवे विष्णौ पिप्पले तिलकद्रुमे ॥२०४६॥ असौ वाच्यवदाख्यातो मनोज्ञ े धनिके बुधैः । श्रीवत्सोऽर्हध्वजे विष्णौ तद्वक्षः स्थितलाञ्छने ॥२०४७॥ हिन्दी टीका नपुंसक श्रीपण शब्द के तीन अर्थ माने जाते हैं - १. हठ वृक्ष ( हठ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष ) २. अग्नि मन्थद्र (अग्निमन्थ नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) और ३ कमल को भी श्रीपर्ण कहते हैं । पुल्लिंग श्रीमान् शब्द के चार अर्थ माने जाते हैं -१ शित्र (भगवान् शंकर) २. विष्णु ( भगवान विष्णु ) ३. पिप्पल और ४. तिलकद्रुम ( तिलक नाम का प्रसिद्ध वृक्ष विशेष) को भी श्रीमान् कहते हैं । किन्तु ५. मनोज्ञ (सुन्दर) और ६ धनिक ( धनवान् ) अर्थ में श्रीमान् शब्द वाच्यवत् (विशेष्यनिघ्न) माना गया है । श्रीवत्स शब्द के तीन अर्थ होते हैं १. अहंध्वज (भगवान् तीर्थंङ्कर का ध्वज For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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