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२६० | नानार्थोदयसागर कोष: हिन्दी टीका सहित
-रक्त शब्द
कुसुम्भपुष्पे लाक्षायां मञ्जिष्ठायाञ्च किंशुके । रक्तबीजो दाडिमे स्यात् शुम्भासुर चमूपति ॥ १४८१ ॥
हिन्दी टीका - रक्त शब्द के और भी पाँच अर्थ माने जाते हैं - १. सिन्दूर, २. कुंकुम, ३. हिंगुल ( हींग ) ४. कुसुम्भ (कुसुम-वरें कमलगट्टा) और, ५. हिज्जल ( जलबेंत ) । रक्तवर्ण शब्द पुल्लिंग है और उसके सात अर्थ माने गये हैं- १. दाडिम (अनार - बेदाना) २. बन्धूक (दोपहरिया फूल ) ३. निशाद्वय ४. कुसुम्भ पुष्प (कुसुम का फूल ) ५. लाक्षा ( लाख) ६. मञ्जिष्ठा ( मजीठा रंग) और ७. किंशुक ( पलाश) । रक्तबीज शब्द पुल्लिंग है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. दाडिम (अनार, बेदाना) और २. शुम्भासुरचमूपति (शुम्भ नाम के असुर का सेनापति) को भी रक्तबीज कहते हैं ।
मूल :
रक्ताङ्गो मत्कुणे किञ्च प्रवाते मंगलग्रहे । रक्ताक्षो महिषे क्रूरे पारावत-चकोरयोः ॥ १४८२ ॥ सारसे रक्तवर्णाक्षे मानवे वायलिंगवान् । रजो रजोगुणे क्लीवं परागार्तव रेणुषु ।।१४८३ ||
हिन्दी टीका - रक्ताङ्ग शब्द पुल्लिंग है और उसके तीन अर्थ माने गये हैं - १. मत्कुण (माकण, खटमल - उरीस) २. प्रवात और ३. मंगलग्रह | रक्ताक्ष शब्द पुल्लिंग है और उसके चार अर्थ माने जाते हैं - १ महिष, २. क्रूर (घातक) ३. पारावत ( कपोत कबूतर ) और ४ चकोर । रक्ताक्ष शब्द के और भी दो अर्थ माने गये हैं - १. सारस (सारस नाम का पक्षी विशेष ) किन्तु २. रक्तवर्णाक्षमानव ( लाल आँख वाला मनुष्य) अर्थ में रक्ताक्ष शब्द वाच्यलिंगवान् (विशेष्यनिघ्न ) माना जाता है । रजस् शब्द नपुंसक है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रजोगुण, २. पराग (पुष्परज) और ३. आर्तवरेणु ( मासिक धर्म - रजस्वला स्त्री के रजःकण) ।
मूल :
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रजतं धवले रूपये हृदे हारे च शोणिते ।
शैले स्वर्णे हस्तिदन्ते शुक्लवर्णानि तु त्रिषु ॥ १४८४ ॥ रागे गुह्ये रते कामपत्न्यामपि रतिः ।
रत्नं मुक्ताद्यश्मजातौ स्वजातिप्रवरेऽपि च ।। १४८५ ।। रथ्या रथसमूहे स्यात् प्रतोल्यामपि चत्वरे ।
रन्तुः स्त्री वर्त्मसरितो रदो दन्ते विलेखने ॥ १४८६॥
हिन्दी टीका - रजत शब्द नपुंसक है और उसके आठ अर्थं माने गये हैं - १. धवल (सफेद) २. रूप्य (रूपा) ३. ह्रद (तालाब) ४. हार (मुक्ताहार वगैरह ) ५. शोणित ६. शैल (पर्वत) ७. स्वर्ण (सोना) और ८. हस्तिदन्त (हाथी का दाँत ) किन्तु ६. शुक्लवर्णी (सफेद वर्णयुक्त) अर्थ में रजत शब्द त्रिलिंग माना जाता है । रति शब्द स्त्रीलिंग है और उसके चार अर्थ माने गये हैं - १. राग, २. गुह्य (रहस्य) ३. रत (रति, भोग-विलास) और ४. कामपत्नी (कामदेव की स्त्री) । रत्न शब्द नपुंसक है और उसके दो अर्थ माने जाते हैं - १. मुक्तादि - अश्मजाति (मुक्ता वगैरह पत्थरजाति विशेष) और २. स्वजातिप्रवर (पद्मरागमणि हीरा जवाहरात वगैरह ) । रथ्या शब्द स्त्रीलिंग है और उसके तीन अर्थ माने जाते हैं - १. रथसमूह
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